वास्तुकला विशेषज्ञ ये नन्हें प्राणी

June 1980

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डाँ. ‘फ्रेजडाफिलन’ जीव विज्ञानी के रुप में प्रख्यात है। जीव-जन्तुओं पर शोध कार्य के लिए एक बार वे जावा एवं श्रीलंका के जंगलों में गये। वहाँ उन्होनें ‘इकोफाइला प्रगति’ की चीटियों को वृक्षों के शिखर पर पक्तियों से घोंसला बनाते देखा। कुछ दिनों पूर्व तक यह एक रहस्य का विषय बना था कि इतनी उँचाई पर सुन्दर ढंग से घोंसला बनाने वाला कौन सा जीव है। यह देखकर वे आर्श्चयचकित रह गये। आर्श्चय का कारण यह था कि इन चीटियों को जमीन पर घूमते हुए कभी भी बुनाई का काम करते नहीं देखा गया था। उनकी बुराई का कार्य भी कम आकर्षक एवं विचित्र न था। जिस सूझ-बूझ का परिचय वे इस कार्य में दे रही थी, उसे देखकर लगता था कि उन्हे किसी विश्वविद्यालय से इनकी इन्जीनियरिंग का विधिव प्रशिक्षण दिया गया हो। मुँह से निकलने वाले ............को धागे के रुप में परिवर्तित कर वे पंक्तियों को आपस में इन धागों से सी देती थी, जिस प्रकार पुल, मकान आदि के निर्माण में विभिन्न तरह के व्यक्तियों का ग्रुप बटा होता है तथा सभी अपनी-अपनी भूमिका सम्पादित करते है। कोई ईंट ले आने का कार्य करता है तो कोई जोड़ने काँ कोई गारा लाता उसी प्रकार इन चीटियों का भी गु्रप बना थाँ अपने 6 पाँव का सहारा लिए एक गु्रप पत्ते को पकडे़ रहता तो दूसरा गु्रप सिलाई का कार्य सम्पन्न करता तीसरा चीटियों का समूह मुँह से लार निकालकर रेशनी धागे बनाने का कार्य सम्पन्न कर रहा था।

चींटियों की वास्तुशिल्प विशेषता उनके अपने सीमित क्षेत्र में भी कुशल इन्जीनियर होने का प्रमाण देती है मनुष्य को तो इस प्रकार की विशेषता अर्जित करने के लिए विधिवत् प्रशिक्षण लेना पड़ता है किन्तु इन छोटे-छोटे कीड़ों को नैसर्गिंक रुप में प्राप्त है। परमात्मा ने मनुष्य को शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमताओं से युक्त करके भेजा है। किन्तु अन्य प्राणियों जीव-जन्तुओं को भी वे क्षमताएँ विशेषताएँ दी है जिनसे वे अपना जीवन-यापन कर सके। मनुष्य सर्वश्रेष्ठ होने का अहकार करता है तो उसका ऐसा सोचने मिथ्या है। कौशल, कला, बुद्धि के क्षेत्र में अन्य प्राणी मनुष्य से किसी भी प्रकार कम नहीं हैं।

बच्चों की देख-रेख एवं सुरक्षा की व्यवस्था में मनुष्य अपने स्नेह, सद्भाव का परिचय देता है। भोजन, चिकित्सा विकास के सारे सरंजाम जुटाता है। आवश्यकता पड़ने पर बच्च्ो के लिए बडे़ से बड़ा त्याग करने में भी न ही चूकता। अपनी सुविधाओं, सुखो को बच्चें की सुविधाओं के समक्ष गौढ़ मानता है। यह विशेषता मात्र मनुष्य जाति में ही नहीं वरन् अन्य क्षुद्र प्राणियों में भी देखी जाती है। ‘स्फेम्स’ जाति का एक पतंगा अपने अण्डों की सुरक्षा एवं पोषण की व्यवस्था में जिस कौशल का परिचय देता, उसे से पतंगे की भाव संवेदना एवं बुद्धिमत्ता का पता लगता है। सुरंग बनाने का कार्य यह अपनी पतली सूँड़ से लेता है। डेढ़ से लेकर दो इन्च तक गहरी लम्बाकार सरंग बनाता है। पत्येक सुरंग में वह अपने अण्डे के पास एक कीडे़ का सुन्न करके रख देता है। अण्डे से जैसे ही बच्चा पतंगा निकलता है। माँ के द्वारा रखा गया आहार उसे तत्काल उपलब्ध हो जाता है। सुरंग से बाहर जब भी मादा बाहर निकलती है अपना सूँड़ से मिट्टी को नरम करके सुरंग के दरबाजे को बन्द कर देती है जिससे सुरंग का वातावरण गर्म बना रहे और बाहर जीव-जन्तु हमला न कर सके। सुरंग पर ही एक छोटा सा छेद बना देती है, ताकि अण्डे तक शुद्ध हवा पहुँचती रहे। अपने सिर एवं सूँढ़ से यह नन्हा जीव किस प्रकार एक उपकरण का कार्य लेता है उसे देखकर आर्श्चयचकित रह जाते है प्रकृति पदत्त क्षमता एवं कौशल का यह जन्तु भरपूर उपयोग करता हैं।

जीव जन्तुओं की दुनिया में इस प्रकार के उदाहरण भरे पड़े है जो हमें इनके बुद्धि चातुर्य का परिचय देते है। मनुष्य किसी भी वस्तु अथवा निर्माण का कार्य बिना टे्रनिंग प्राप्त किये तथा औजारों के बिना नहीं कर सकता। जबकि पशु-पक्षी अपनी आवश्यकतानुसार निवास की व्यवस्था अपनी अन्तःप्रेरणा से बना लेते है। लोमड़ी विलाव, श्रृंगाल आदि के छोटे किन्तु सुरक्षित निवास कक्ष देखने योग्य होते है। क्या का घोंसला मधुमक्खी का छत्ता एवं मकड़ी के जाले को देखकर यही कहना पड़ता है कि उस सत्ता ने इन क्षुद्र समझे जाने वाले जीवों को भी अनेकों प्रकार के कला कौशल से युक्त बुद्धि देकर पूरा-पूरा न्याय किया है। इनकी शिल्पकला की बारीकियों को देखकर तो कुशल शिल्पज्ञों को भी ईर्ष्या होने लगती है।

किसी विचारक का कथन है कि कोई भी वैज्ञानिक उपलब्धि किसी भी वैज्ञानिक की मौलिक देन नहीं है बल्कि प्रकृति एवं विभिन्न जीव-जन्तुओं की नकल मात्र है। उदाहरणार्थ पक्षियों की उड़ान के सिद्धान्त से अभिप्रेरित विचारों ने हवाई जहाज बनाने की प्रेरणा दी तो मछलियों की स्वछन्द पानी में विचरण से पानी के जहाज बनाने की परिकल्पना मानव मस्तिष्क में आई। इन उपलब्धियों को पक्षियों, जीव जन्तुओं की मौलिक विशेषताओं की नकल मानना चाहिए।

आस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला पक्षी ‘इन्म्यूवेटवर्ड जब घोंसला बनाता है तो उसका वास्तुशिल्प देखने योग्य होता है। चिकित्सालयों में प्रयुक्त होने वाला ‘इन्म्यूवेटर’ के निर्माण की प्ररेणा उस पक्षी के घोसलें को देखकर प्राप्त हुई। नर, मादा मिलकर साढे़ चार मीटर उँचा व 10 मीटर व्यास का रेतीली मिट्टी का घोंसला बनाते है। उपरी हिससे में एक छेद करके उसे मुलायम घास से ढक देते है तथा उसके उपर मिट्टी से लेपकर ढ़क देते है। इस पं्रकार यह गर्म कमरा पूरी तरह बच्चों की सुरक्षा करता हैं कक्ष का तापक्रम 33 सेन्टीग्रेड के निकट बना रहता हैं। यदि कमरा अधिक गरम हो जाता है तो यह पक्षी उपर के हिस्से में कुछ छिद्र बना देता है जिससे बाहर की ठण्डी हवा प्रविष्ट कर अन्दर के तापमान को कम कर सके। कमरे का तापक्रम कम होने अथवा ठण्डा होने पर उपरी हिस्से पर बड़ी सफलता से वह मिट्टी की परत चढ़ा देता है इस प्रकार भीतर का तापक्रम बढ़ जाता है। नर इन्म्यूवेटर पक्षों को तापक्रम के कम एवं अधिक होने की पूरी जानकारी उसी प्रकार मिलती है जैसे थर्मामीटर। जब तक अनुकुल तापक्रम नहीं हो जाता नर मादा को अण्डे नहीं देने देता। एक परिचारिका चिकित्सक एवं शिल्पज्ञ की भूमा पूरी मुस्तैदी के साथ यह पक्षी निभाता है।

दीपक पर विशिष्ट अध्ययन करने वाले प्रो. ‘हीय’ इनकी व्यवस्था बुद्धि को देखकर लिखते है कि “यद्यपि दीमक एक छोटा कीड़ा है किन्तु सार्वजनिक जीवन में जिस कुशलता व्यवस्था बुद्धि का परिचय देता है उससे मनुष्य को प्रेरणा एवं शिक्षा लेनी चाहिए। ईश्वर प्रदत्त विशिष्ट क्षमताओं अनुदानों को भी उपयोग यदि मनुष्य अपना पारिवारिक पोषण तक ही करता तो वे वह इन जीव जन्तुओं से भी पीछे है।”

नन्हे जीव जन्तुओं की विशेषताओं पर डाँ. ‘विलीले’ अपनी पुस्तक सेलेमेर्ण्डस एण्ड अदर वर्ण्डस में लिखते है कि मनुष्य यह सोचता है कि अन्य जीव जन्तु उसकी तरह बोल नहीं सकते तो उनके अन्दर विचार करने की क्षमता का भी सर्वथा अभाव होगा। किन्तु यह सोचना गलत है। परमात्मा ने इनको भी बुद्धि दी हैं। अपने सीमित क्षेत्र में मिली बौ0िक क्षमता का ये भरपूर उपयोग करते देखे जाते है जबकि परमात्मा ने मनुष्य को अनेकों विशेषताएँ एवं क्षमताएँ प्रदान की है। शारीरिक बौद्धिक, भावनात्मक, प्रत्येक क्षेत्र में वह चेतन जगत नेतृत्व करता है। यदि मानव इन क्षमताओं का उपयोग मात्र जीने खाने तक ही सीमित रखता है तो वह इन क्षुद्र कीड़ों से किसी भी प्रकार श्रेष्ठ नहीं है।

इन छोटे जीव जन्तुओं के व्यवस्थित अनुशासित एवं उल्लसित जीवन से मानवजाति मो प्ररेणा लेनी चाहिए। ईश्वर प्रदत्त अतिरिक्त अनुदानों एवं विशेषताओं का सदुपयोग पारिवरिक सीमाओं से आगे बढ़कर प्राणी मात्र के लिए किया जाना चाहिए। मानवी गरिमा को महत्ता एवं मिली क्षमताओं की उपयोगिता भी इसी में निहित है।


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