ब्रहमाण्ड में विद्यमान, विकसित सभ्यताएँ

June 1980

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सृष्टि का विस्तार असीम है। जितनी जानकारियाँ अब तक मिल पायी है वे इतनी अल्प है कि उनके आधार पर सब कुछ जानने का दावा नहीं किया जा सकता। सीमित बुद्धि अपनी प्रतिभा, योग्यता एवं वर्चस्व का गुणगान भले ही कर ले पर इतने मात्र से वह सर्वज्ञ नहीं हो सकती है। कितने ही तथ्य एवं रहस्य ऐसे है जिनके सर्न्दभ में मनुष्य अब भी कुछ नहीं जान सका है। बुद्धि बल एंव विज्ञान भी उनको समझ सकने में असमर्थ रहा है। अपनी सभ्यता के लिए भी वह अभिमान नहीं कर सकता न ही इस बात की घोषणा की जा सकती है कि चेतन प्राणियों का अस्तित्व मात्र पृथ्वी तक सीमित है। जो प्रमाण मिले है उनसे पता लगा है कि अन्यान्य ग्रहों पर भी जीवन है। ब्रहमाण्ड में पृथ्वी से अधिक विकसित सभ्यताओं की सम्भावना भी की जा रही है।

सम्भव है अन्य ग्रहों के जीवों का आकार प्रकार जीवनयापन का तरीका पृथ्वीवासियों से सर्वथा भिन्न हो। आवश्यक नहीं है यहाँ की परिस्थितियाँ जीवित रहने के लिए पृथ्वी जैसी हो। उनकी आवश्यकताएँ तथा अभिरुचियाँ भिन्न भी हो सकती है। जीवित रहने के लिए आँक्सीजन जीवधारियों के लिए आवश्यक है। पर अन्य ग्रहों पर स्थिति उल्टी भी हो सकती है। जरुरी नहीं है कि वे इन आँखों से दिखाईही पड़े। मिआयाभिक दृश्य जगत से उनकी स्थिति अलग भी हो सकती है। सम्भव है वे सशरीर अन्य ग्रहों से पृथ्वी आदि की ....लेने के लिए भी उतरते हो। हमारी आँखें उनको देख पाने में असमर्थ हो।

यह मात्र कल्पना नहीं वरन् एक तथ्य है। समय-समय पर दिखाई पड़ने वाली उड़नतस्तरियों के प्रमाण उस तथ्य की पुष्टि करते है। उड़नतस्तरियों की वनावट अचानक प्रकट होकर लुप्त हो जाना कुशल वैज्ञानिक मस्तिष्क एवं विकसित सभ्यता का प्रमाण देती है। सैकड़ों वर्षों से वैज्ञानिक यह जानने का प्रत्यन्न कर रहे है कि ये अचानक कहाँ से प्रकट होती तथा कहा चली जाती है पर उनके ये प्रयत्न असफल ही सिद्ध हुए है। मात्र उनकी संरचना एवं मिले प्रमाणों के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि जहाँ से उड़नतस्तरियाँ आती है, वहाँ की सभ्यता पृथ्वी की तुलना में कही अधिक विकसित है।

उड़नतस्तरियाँ अनेकों बार देखी गई है ...अपने रहस्यों को साथ समेटे देखते-देखते आँखों से ओझल हो गई है। सन् 1947 अमेरिका के पश्चिमी तट ....के निकट मोटर बोट में बैठे दो रक्षक एच.एत्र ....एवं फ्रैड एल क्रैसवैल समुद्र तट की निगरानी कर रहे थे। अचानक डहल ने दो हजार फीट की उँचाई आकाश में छै फुटवाल की तरह गोल आकृति की मशीन को घूमते हुए देखा, पाँच मशीनें एक के चारों ओर रही थी। वे क्रमशः नीचे उतरने लगी और साकगर मात्र 500 फुट की उँचाई पर आकर रुक गई। तटरक्षक डहल ने अपने साथी की सहायता से अपने ...से एक फोटो खींचने का प्रयत्न किया। अभी कैमरे स्वीचि दबाया ही था कि आकाश में जोर का ...हुआ। मोटर बोट में सवार अंग रक्षक छलाँग ...कर पास की एक गुफा में घुस गये। पर उनके साथ कुत्ता वही मर गया। कुछ देर बाद बाहर निकले देखा आकाश में उड़न वाली वस्तुओं का नमों निशान नहीं है। विस्फोट से फटी मशीन के टुकड़े तट पर थे जो चमकीले एवं गरम थे। दुर्घटना की सूचना रक्षकों ने मोटर बोट में लगे ट्रान्समीटर द्वारा देनी ...पर उन्हें यह देखकर आर्श्चय का ठिकाना नहीं....... किसी ने रेडियोंलाजीकल मशीन से मोटर बोट....ट्रान्समीटर को जाम कर दिया है।

निरीक्षण को आये अनुसन्धान दल ने वाशिंगठन उक्त टापू मरे पर लगभग 20 टन धातु के टुकड़े .....किए। परीक्षा पर मालूम हुआ कि धातु के टुकड़ों में अन्य सोलह धातुओं का सम्मिश्रण है तथा उनके उपर कैल्शियम की मोटी चादर चढ़ी है। वैज्ञानिकों को यह जानकर विशेष आर्श्चय हुआ कि इन धातुओं में से एक भी पृथ्वी पर नहीं पाई जाती। वे इनके नाम तक बता पाने में असमर्थ रहे। उन्होंने संभावना व्यक्त की कि अन्तरिक्षयान विशेष शक्तिशाली आणविक यन्त्रों से संचालित था।

लेकन हीथ (इग्लैंड) 13 अगस्त 1956 को रात्रि तीन बजे रायल एयरफोर्स के दो राडार स्टेशनों से तेज गति से उड़ती हुई उड़नतस्तरियों को देखा। पृथ्वी से मात्र 1100 मीटर की उँचाई पर साढ़े तीन हजार किलोमीटर प्रति घन्टा की गति से ये विचित्र संरचनाएँ पश्चिम दिशा की ओर उड़ रही थी। रायल एयरफोर्स के एक लड़ाकू विमान ने इनका पीछा किया किन्तु देखते-देखते वे अदृश्य हो गई।

10 अक्टूबर 1966 को सायं 5 बजकर 20 मिनट पर ‘न्यूटन इलिनाय’ (अमेरिका) में पृथ्वी से मात्र 15 मीटर की उँचाई पर एक यान जैसी वस्तु उड़ती दिखाई दी। देखने वालों ने बताया कि वह मात्र 6 मीटर लम्बी 2 मीटर व्यास वाली ‘सिगार’ की शक्ल जैसी थी। जो अल्युमिनियम जैसी किसी चमकीली धातु से बनी प्रतीत होती थी। अग्रभाग का छिद्र प्रवेश द्वारा जैसा लगता था उड़ती हुई वस्तु के चारों ओर हलकी नीली रंग की धुग्ध छाई थी। यान से किसी प्रकार की ध्वनि तो नहीं सुनाई पड़ी रही थी। पर वातावरण में एक विचित्र प्रकार के कंपन का आभास मिल रहा था। कुछ मिनटों के बाद यह वस्तु गायब हो गई।

पिछले दिनों भारत में भी उड़नतस्तरियाँ देखी गई। अप्रैल 1978 को अहमदाबाद में उदयपुर विश्व विद्यालय के प्रो. दिनेश भारद्वाज ने रात्रि नौ बजे तस्तरी जैसी पिछले दिनों भारत में भी उड़नतस्तरियाँ देखी गई। अप्रैल 1978 को अहमदाबाद में उदयपुर विश्व विद्यालय के प्रो. दिनेश भारद्वाज ने रात्रि नौ बजे तस्तरी जैसी वस्तु को उड़ते देखाँ। वह प्रकाश पुन्ज जैसी दिखाई पड़ रही थी जिसके पीछे पाँच या सात मीटर लम्बी पूँछ जैसी संरचना थी। उक्त अग्नि के ज्वाला जैसी वस्तु को राजस्थान, महाराष्ट्र एवं आन्ध्र प्रदेश में भी सैकड़ों व्यक्तियों ने उड़ते देखा। बंगलौर के दो व्यक्तियों का कहना है कि कुछ देर तक तो दो चमकीली वस्तुएँ समानान्तर एक साथ उड़ती रही। पर अचानक एक दूसरे के विपरित दिशा की ओर मुड़ गई तथा कुछ देर बाद लुप्त हो गई। वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें उल्का पिण्ड नहीं माना जा सकता क्योंकि उल्का पिंड अपनी इच्छानुसार दिशा नहीं बदल सकते। उहें किसी कुशल मस्तिष्क द्वारा संचालित माना जाना चाहिए।

अपने अन्दर अनेकों रहस्य छिपाये हुए वैज्ञानिकों को चुनौती देती हुई ये उड़नतस्तरियाँ समय-समय पर दिखाई पड़ती है। पृथ्वीवासियों की वैज्ञानिक क्षमता, बुद्धि का उपहास करते हुए आँखों से ओझल हो जाती हैं उनकी शक्ति, सामर्थ्य का अनुमान इन बात से लगता है। अनेकों बार प्रयत्न किए जाने के बाद भी मनुष्य उनके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जान सका है। पीछा करने वाले यान असमर्थ रहे है। इन विचित्र आकृतियों के साथ सुरक्षा की भी पूरी-पूरी व्यवस्था हैं यही नहीं खतरे की सम्भावना भी उन्हे तुरन्त मिल जाती है।

कितनी बार तो पीछा करने वाले यानों के चालकों को जीवन से हाथ धोना पड़ा है। उनकी वैज्ञानिक क्षमता बढ़ी-बढ़ी है इनका अनुमान इस घटना से लगता है। ‘मेलवोर्न’ 24 अक्टूबर 78 को एक विमान चाक सहित एक उड़नतस्तरी जैसी वस्तु को देखने के बाद लापता हो गया। बीस वर्षीय युवा चालक श्री ‘फ्रेडरिक वाकेटिच’ ने आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया के बीच चाटर्ड उड़ान भरी। चालक फ्रेडरिक ने हवाई अड्डे के उपर से चाटर्ड रेडियों सन्देश द्वारा अधिकारियों से पूछा कि 1524 मीटर की उँचाई पर उसी क्षेत्र में कोई दूसरा विमान तो नहीं उड़ रहा है। फ्लाइट सर्विस ने नकारात्मक उत्तर दिया। फ्रेडरिक ने अधिकारियों से बताया कि वह 182 मील दूर 137 मीटर की उँचाई पर किंग आइसलैण्ड के पास से उड़ रहा है। उसे एक लम्बी आकार की वस्तु तेज गति से उड़ती दिखाईपड़ रही है। वह मेरे विमान के उपर आकर चक्कर काट रही है। उस तस्तरी जैसी आकृति के भीतर हरी रोशनी का प्रकाश दिखाई दे रहा है। यान सहित लुप्त होने के पूर्व फ्रेडरिक वालेंटिच के अन्तिम शब्द थे कि मेरे विमान के इंजन में रुकावट आ रही है तथा वह विचित्र यान अब भी मेरे विमान के उपर छाया है। इसके बाद रेडियों पर धातु के टकराने जैसा शोर सुनाई पड़ा तथा विमान का सर्म्पक नियन्त्रण कक्ष से टूट गया। मेलवोर्न हवाई अड्डे से अनेकों जहाजों ने खोज करने के लिए उड़ाने भरी किन्तु चालक और यान का कुछ भी पता न चल सका न ही दुर्घटना का कोई चिन्ह मिला।

पृथ्वी के वैज्ञानिक अन्यान्य ग्रहों की स्थ्ज्ञत का पता लगाने के लिए प्रयत्नशील है। समय-समय पर वैज्ञनिकों के दल अन्तरिक्ष में खोज के लिए जाते है अन्य ग्रहों की स्थिति के खोज का कार्य मनुष्यों द्वारा ही नहीं किया जा रहा है वरन् जो प्रमाण मिले है उनसे पता चलता है कि अन्य ग्रहों पर पृथ्वी की तुलना में अधिक विकसित सभ्यताएँ हैं वे भी खोज के लिए पृथ्वी पर आते रहते है। ‘इन्डियन एक्सप्रेस’ 5 जनवरी 1979 में प्रकाशित समाचार के अनुसार दक्षिण अ्िरफका जोहान्सवर्ग ने निकट महिला एवं उसके पुत्र ने अपने घर के निकट एक उड़न तस्तरी को उतरता हुआ देखा। उड़नतस्तरी की अन्य घटनाओं से इसमें भिन्नता यह थी कि श्रीमति की गन क्वीगेट ने यान जैसी आकृति के निकट पाँच मनष्य की शक्ल से मिलते जीवों का खड़े देखा।

अलग-अलग इन्टरव्यू लेने पर उसके पुत्र ने भी यही बात बताई। श्रीमति क्वीगेट ने बताया कि जैसे ही उसने अपने से कहा कि “ अपने पिता को बुलाओं” यान के निकट खड़े सभी व्यक्ति उड़न तस्तरी में बैठ गये। और कुछ ही क्षणों में वह यान हवा में विलीन हो गया। पूरी घटना में 5 या 6 मिनट लगे होंगें।

अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने भी उड़नतस्तरी देखा। अमेरिकी के वैज्ञानिकों ने उड़न तस्तरी को अपने शोध का विषय बनाया है। इसका नाम उन्होंने रखा है अनआइडेण्टी फाइड फ्लाइंग अब्जेक्टस (यू.एफ.ओ.) जे. एल. हाइनेक ने नार्थ बेर्स्टन यूनिवसिटी में यू.एफ.ओ. अध्ययन केन्द्र की स्थापना की है। इस शोध संस्थान का कार्य रहस्यमय उड़ने वाली वस्तुओं के सर्न्दभ में तथ्य एवं जानकारी एकत्रित करना है।

अब वैज्ञानिकों में भी यह मान्यता परिपुष्ट हो रही है कि सभ्यता पृथ्वी तक ही सीमित नहीं है। डाँ. फ्रेड मैन जैसे वैज्ञनिकों का विश्वास है कि जीवन मं कही अधिक विकसित हैं। इसका प्रमाण है कुशल वैज्ञानिक यन्त्रों से सुसज्जित रहस्यमय उड़न तस्तरियाँ। जिनका रहस्योद्घटना कर सकना वैज्ञनिकों द्वारा अब तक सम्भव नहीं हो सका है। डाँ. फ्रेडमैन ने संभावना व्यक्त करते हुँए कहा कि पृथ्वी उर्जा का स्त्रोत हैं। सम्भव है अन्य ग्रहों के निवासी पृथ्वी पर उर्जा संगह करने आते है और इस कार्य के लिए उन्होंने वैज्ञानिकों तकनीकी का विकास कर लिया हो।

बहुत समय पूर्व सन् 1956 में रुसी वैज्ञाकन एलेक्जेंडर काजन्तसेव ने अपने अनुसंधान कार्यो के उपरान्त घोषणा की थी कि जिस प्रकार हम चन्द्रमा और अन्य ग्रहों की जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के यानों का प्रयोग कर रहे है, उसी प्रकार की खोजबीन अन्य ग्रहों के निवासियों द्वारा भी की जा रही है। जर्मन वैज्ञानिक’एरिकबन डेनिकेन’ ने अपनी पुस्तकें चैरिथटस आँफ गाँडस और रिटर्नमद स्टार्स में भी इस तथ्य का उद्घाटन किया है कि अन्य ग्रहों के निवासी पृथ्वीवासियों की टोल लेने के लिए समय-समय पर उतरते है। यहाँ के वैज्ञानिकों की तुलना में विज्ञान के क्षेत्र में उनकी पहुँच अधिक है।

बुद्धिमता एवं सभ्यता के क्षेत्र में मनुष्य ही सबसे अग्रणी नहीं है। पृथ्वी की तुलना में विकसित सभ्यताएँ भी ब्रहमाण में मौजूद है। मनुष्य को अपनी तुच्छता समझना चाहिए। मिथ्या र्गव की अपेक्षा ईश्वर प्रदत्त क्षमता का उपयोग मानवोचित रीति-नीति अपनाने में करना ही श्रेयस्कर है।


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