साहूकार ने तिजोरी खोली यह जाँचने के लिए उसमें भरे सिक्कों में से कौन खरा है और कौन छोटा। खोटे सिक्के निकाल कर वह अलग करता गया। फिर उसने लेन देन में भी सावधानी बरतना शुरु किया। खोटे सिक्कों को तिजोरी में बैठना बड़ा भाता था और साहूकार हो गया था सचेत।....अब खोटे सिक्कों ने तिजोरी तक पहुँचने के लिए उपाय ढूढ़ा और सोचा कि हमें ज्यादा चमकना चाहिए।
खोटे सिक्कों की यह चाल सफल हो गयी। अब वे पुनः तिजोरी में पहुँचने लगे। एक दिन साहूकार के हाथ से एक नकली सिक्का जो ज्यादा चमक रहा था गिर पड़ा और उसे पता चल गया कि यह तो खोटा है। तिजोरी में भरे सिक्कों पर भी उसे संदेह हुआ और फिर उसने परख-परख कर उन सबको अलग निकाल दिया अपात्र और खोटे व्यक्तियों की प्रतिष्ठा क्षणिक ही होती है। जिस दिन पोल खुलती है वे न केवल अपयश के पात्र बनते है अपितु कुडे़ में भी फेके जाते है।