स्थूल से असंख्य गुना समर्थ सूक्ष्य

June 1980

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जो कुछ आँखों से दिखाई देता है उस स्थूल के परिणाम स्वल्प है और प्रभाव सीमित। उससे आगे गहराई में सूक्ष्य तक उतरना आरम्भ करते ही बहुमूल्य सम्पदाएँ उपलब्ध होने लगती है। धरती की उपर परत कूड़े कंकर और धूल मिट्टी से ढकी रहती है, खोदना आरम्भ करते ही पानी से लेकर अनेकानेक बहुमूल्य खनिज संपदाएँ मिलती चली जाती है। सागर की उपरी सतह पर प्रथम तो खारे पानी के अलावा कुद मिलता ही नहीं मिलता भी है तो कोइ और कचरे से भिन्न नहीं होता, पर गहराई में तलहटी तक जाने वाले गोताखोर उसमें से बहु मूल्य मोती मूँगा रत्न सम्पदा बटोर लाते है।

यह तो हुई स्थूल की स्थूल विशेषताएँ प्रभाव की दृष्टि से भी स्थूल की शक्ति सामर्थ्य सीमित ही है। एक मिर्च खाने वाले का मुँह ही जलाती है, अय औरों पर उसका कोई असर नहीं पड़ता परन्तु वही मिर्च जलकर वायुभूत होती है तो आस-पास कई वर्ग मीटर के क्षेत्र में बैठे लोगों की नाक में छींक और सिर में दर्द पैदा करवा देती है। होम्योपैथी जैसी निरापद और स्थाई प्रभाव डालने वाली चिकित्सा पद्धति का आधार दर्शन भी सूक्ष्य परक है। होम्योंपैथी इसी विज्ञान पर आधारित है कि वस्तु जितनी सूक्ष्माति सूक्ष्म होती जायगी अपनी गुणकारी होती जायेगी। इसलिए मूल औषधि के हजारवें लाखवें हिस्से तक उसका विभाजन किया जाता है और वह परिणाम में उतनी ही गुणकारी होती है।

कील दो वस्तुओं को जोड़ने में ही काम आती है। ज्यादा से ज्यादा उसे दीवार में गड्ढा किया जा सकता है अथवा किसी के चुभ जाने पर छोटा सा घाव भर हो सकता है। पर उसका अरब-खरब का भी अरब-खरब वाँ मात्र परमाणु लाखों मनुष्यों को मारने, पहाड़ों को मिटा कर खाई बनाने और बडे़-बडे़ राकेट चलाने, बिजली पैदा करने में समर्थ होता है। जिसे परमाणु शक्ति कहा जा सकता है। कील के उस सूक्ष्माति सूक्ष्य भाग की, जिसे परमाणु की सीमा रेखा में भी बाँधना सम्भव नहीं है। अन्तनिहित उर्जा का केन्द्रीयकरण किया जा सके और ध्वंस कृत्य में लगाया जा सके तो उतने से ही इस समस्त भूमिमण्डल का विनाश हो सकता है। स्मरणीय है कि अब किये जाने वाले परमाणु विस्फोटों में विस्फोट से उत्पन्न होने वाले परमाणु उर्जा का एक सीमित अंश ही प्रयुक्त हो सका हैं अधिकाँश तो तत्काल अन्तरिक्ष में विलीन हो जाता है। इस शक्ति का सृजनात्मक प्रयोग भी इतना व्यापक प्रभावोत्पादक और शक्तिशाली है कि उससे उतनी ही गर्मी मिल सकती है जितनी कि सूर्य से प्राप्त हो सकती हैं।

अब तक जड़ पदार्थों की सूक्ष्म सामर्थ्य का ही विवेचना किया गया, चेतन की सूक्ष्म सामर्थ्य उससे असंख्य गुना सामर्थवान है। भारतीय ऋषियों ने आरम्भ से ही गागया है-” अणोरणीयान महतो महीयान आत्मा गृहयायाँ विहितो सृजन्तों।” परन्तु इस तथ्य को कुछ वर्षों पूर्व तक कल्पना की उड़ान और वायवीय दर्शन भर समझा जाता था परन्तु परामनोविज्ञान की अधुनातन शोधें इसी निर्ष्कष बिन्दु पर पहुँच रही है कि अदृश्य अतिसूक्ष्य चेतन सत्ता की सामर्थ्य कल्पना तथा अनुमान से परे है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वालकालियर ने कहा है कि भौतिकशास्त्र और जीवशास्त्र के क्षेत्र में आने वाले स्थूल शरीर के अतिरिक्त जीवधारियों का एक सूक्ष्य शरीर भी है जो अलौकिक क्षमताओं से भरा पड़ा है। यह शरीर मृत्यु के बाद भी बना रहता है। सूक्ष्म की जब शोध चली तो मेटा साइकिक, साइकिक, पेरासाइकोलौजी, मेटा साइकोलौजी जैसी मनोविज्ञान की कितनी ही धारायें निकल पड़ी और सूक्ष्य चेतना की अलौकि सामर्थ्य पर्तदर पर्त निरन्तर खुलती जा रही है।

भारतीय मनीषियों ने अपने ढंग से इस तथ्य का पता काफी पहले ही लगा लिया था और योगसाधनाओं के रुप में व्यक्ति की रहस्यमयी क्षमताओं को शुद्ध, प्रखर, तथा विकसित बनाने की तकनीक विकसित कर ली थी। उन उपलब्धियों को अब तक चाहे जो कुछ कहा जाता रहा हो परन्तु ज्ञात इतिहास के आधुनिक युग में भी ऐसी असंख्याओं घटनायें घटी है जो मनुष्य की अलौकिक अभौतिक सामर्थ्य को प्रमाणित करती है।

योगसाधनाओं और सूक्ष्म की सामर्थ्य को कोरी गप्प तथा मनगढ़न्त मानने वाले सरजौन वुडरफ भारत में आकर कुछ ऐसी अनुभूतियों से गुजरे कि उन्हें अपनी मान्यता को तिलाँजलि देनी पड़ी। ब्रिटिश काल में सरजौन वुडरफ कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ मजिस्टे्रट थे। उन्होंने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि एक बार वे ताजमहल के संगमरमरी फर्श पर बैठे थे, साथ में भारतीय मित्र भी थें बातों में किसी प्रसंग वश संकल्पशक्ति की चर्चा चल पड़ी। सरजौन वुडरफ के भारतीय मित्र ने संकल्पशक्ति की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए कहा- इतना तो मैं भी कर सकता हूँ कि सामने जो लोग बैठे है उनमे से जिसे आप कहे उसे उठा दूँ और वापस आप कहें जहाँ बिठा दूँ।” वुडरफ ने उन व्यक्तियों में से एक को चुन लिया और यह भी बता दिया कि उसे किस स्थान पर बिठाना है। मित्र ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया। फलतः वही व्यक्ति अकारण उठा चला और वुडरफ के बताये गये स्थान पर जा बैठा।

व्यक्तिगत जीवन में मनुष्य के सामान्य क्रिया-कलाप भी संकल्पशक्ति के सहारे चलते है, संकल्पशक्ति को चेतना की ही स्फुरण कहना चाहिए इसे मनःशक्ति भी कहा जाता है और सूक्ष्म शरीर का एक नाम मानस शरीर भी है। मनःशक्ति के संकल्प शक्ति के साधरण प्रयोग हर कोई कर सकता है। उदाहरण के लिए रात को संकल्प करके सोया जाय कि सुबह तीन बजे उठना है तो ठीक तीन बजे ही आँख ख्लती है। सामान्य व्यक्तियों की संकल्प शक्ति इससे अधिक विकसित नहीं हो पाती जैसे साधारणतया कुँआ खोदने के लिए खुदाई का क्रम पानी निकलने तक जारी रखा जाता है। आकस्मिक रुप से किन्हीं विशेष अवसरों पर संकल्प शक्ति का विस्फोट व्यक्ति से चमत्कारी काम भी करवा लेता है। उस स्थिति में शरीर की चाहे जो दशा हो संकल्प पूरे कर ही लिए जाते है। गतवर्ष 1977 के 22 अगस्त की ही घटना है। मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम की एक बस नागपुर से इलाहाबाद जा रही थी। नागपुर से ही उसमें कुछ डाकू चढ़ गये।

जब बस नागपुर जबलपुर के बीच सबसे बेहड़ रास्ते से गंजर रही थी तभी एक डाकू ने रिवाल्वर तानकर ड्राइवर से बसे रोकने का आदेश दिया। उस समय बस एक ऐसी सड़क से गुजर रही थी जिसके आस-पास बहुत नीची ढलान थी। आगे पुल था। अचानक बस रोकने से बस उन खाइयों मं भी लुढ़क सकती थी और पुल पर पहुँचते-पहुँचते नदी में भी गिर सकती थी ऐसी स्थिति में बस में बैठे सभी यात्री समाप्त हो जाते। डाकू इस बात को नहीं समझ रहे थे और उन्होंने ड्राइवर के पेट में गोली मार दी। गोली लगने पर भी ड्राइवर ने स्टियरिंग नहीं छोड़ा। जब बस नहीं रुकी तो डाकू ने दूसरी गोली ड्रायवर के सिर में मार दी। सिर और पेट से खून के फब्बारे छूट गये परन्तु ड्राइवर ने फिर भी स्टियरिंग नहीं छोड़ा। करीब एक किलोमीटर तक बस को चलाने के बाद, जब बस ने पुल पार कर लिया और सीधी सड़क पर पहुँच गई तो ड्राइवर ने ब्रेक दबाया और उसी समय निष्प्राण होकर स्टियरिंग पर लुढ़क गया।

सामान्यतः सिर और पेट में गोली लगने के बाद व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो जाती है परन्तु ड्राइवर के मन में बस में सवार यात्रियों को बचाने का संकल्प था परिणामस्वरुप उसने मृत प्राय स्थिति में भी अपना काम पूरा किया। इस संकल्प शक्ति को परामनोविज्ञानवेत्ताओं ने सूक्ष्य उर्जा का नाम भी दिया है। इस मानवीय उर्जा से ही दैनिक जीवन के क्रिया-कलाप चलते है पर यह नहीं मान लेना चाहिए कि इसकी मात्रा इतने तक ही सीमित है। इस शक्ति को किसी प्रकार बढ़ाया जा सके तो चमत्कार जैसे लगने वाले कार्य भी बाँये हाथ का खेल बन जाते है। योगीजन इस शक्ति को भले कार्यों में लगाते है और दुष्ट प्रकृति के लोग दुष्प्रयोजनों में। आग का भोजन बनाने और घर जलाने में कुछ भी प्रयोग किया जा सकता है।

एक रुसी महिला नेल्या मिखायलोव में सहसा यह शक्ति असामान्य रुप से विकसित हुई। नेल्या उन दिनों चल रहे युद्ध के समय मोर्चे पर घायल सैनिकों की परिचर्या सुश्रृषा का काम कर रही थी। युद्ध के मोर्चे पर वह स्वयं जाती और हताहत सैनिकों को चिकित्सा कैम्प तक पहुँचाने का कार्य करती। एक बार वह शत्रृ पक्ष द्वारा छोड़ी गई गोली से घायल हो गयी। गम्भीर आहत स्थिति में उसे अस्पताल में भरती कराया गया और वहीं उसमें इच्छा शक्ति से वस्तुओं को हटाने गिराने की शक्ति अनायास प्राप्त हुई। मास्को विश्व विद्यालय के जीव शास्त्री एडवर्ड नामोवने नेल्या का परीक्षण किया। प्रयोगशाला में उसने मेज पर बिखरी माचिस की तीलियों को बिना हाथ घुमा कर जमीन पर गिया दिय। फिर वही तीलियाँ काँच के डिब्बे में बन्द की गई। जीवशास्त्री को यह आश्का थी कि कहीं नेल्या कोई गुप्त टेकनीक का उपयोग तो नहीं कर रही है। नेल्या ने फिर हाथ घुमाया तो काँच के डिब्बे में बन्द तीलियाँ हिलने सरकने लगी।

इसी तरह नेल्या ने मेज पर थोड़ी दूर पडे़ रोटी के टुकड़े पर अपना ध्यान केन्द्रित किया तो वह टुकड़ा खिचकर नेल्या के पास आ गयाँ। नेल्या का भली-भाँति परीक्षण किया गया। उसने एक चम्मच को बिना हाथ लगाये वहीं बैठे-बैठे बरतन से निकाल कर अपनी मेज पर खींच लिया। बरतन उस मेज से लगभग दो मीटर दूर रखा था। चम्मच इतनी दूर पर हवा में तैरता हुआ सा आया। जैसे कोई व्यक्ति हाथ में पकड़ कर उसे वहाँ ला रहा हो। इन सारे परीक्षणों और प्रयोगों के बाद जीवशास्त्री एडवर्ड नोमोव तथा उनके अन्य सहयोगी इस निर्ष्कष पर पहुँचे कि नेल्या के मस्तिष्क में विद्युत शक्ति सी बाँधती है और उसकी देह से चुम्बकीय शक्ति निकलती है जबकि नेल्या का कहना था वह इच्छा और उस इच्छा पर अपना ध्यान केन्द्रित करने के अलावा कुछ नहीं करती, तो क्या संकल्प और इच्छा शक्ति इतनी अद्भुत तथा चमत्कारी है। शास्त्रों ने कहा है “ संकल्प मयोअयं पुरुष” यह पुरुष (शरीर पर में रहने वाली चेतना) संकल्प मय है।

संकल्प को ही ब्रहमा की शक्ति भी कहा जाता है। आप्त वचन है-एकोअहं वहुस्यामः ब्रहमा ने संकल्प किया कि एक से अनेक हो जाउ और वह एक से अनेक हो गया। संकल्प शक्ति को सूक्ष्म का चमत्कारी विज्ञान कहा जाता हैं। प्राचीनकला में ऋषियों महर्षियों ने इसी सूक्ष्म तत्व की शोध और खोज में अपना समय लगाया तथा आधुनिक काल के यशस्वी भौतिक विज्ञान की अपेक्षा अनेक गुना लाभों से लाभान्वित हुए। यह तो असंदिग्ध तथ्य है कि मनुष्य शरीर में अनेकों प्रकट और सूक्ष्म शक्तियाँ विद्यमान है। योग साधना द्वारा उन शक्ति केन्द्रों को, चक्रों को, ग्रन्थियों और मातृकाओं को ही जागृत किया जता है तथा अलौकिक सिद्धि सामर्थ्य प्राप्त की जा सकती है। योगसाधना द्वारा व्यक्तिकी सीमित चेतना को विराट की असीम चेतना के साथ उसी प्रकार सम्बन्धित कर दिया जाता है जिस प्रकार किसी रेडियों के यन्त्र आकाश में तैरने वाली ध्वनि तरंगों से संबंधित होते है।

यह तो स्पष्ट है ही कि मनुष्य का अस्तित्व के दिखाई पड़ने वाले बाहरी कायकलेवर तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह उससे बहुत सूक्ष्म, चेतन और शक्तिशाली है। आवश्यकता इस बात की है कि उसकी कार्य प्रणाली को समझा और विश्लेषित किया जाय तथा उससे लाभान्वित हुआ जाय। जड़ परमाणु से इतने चमत्कारी लाभ उठाये जा सकते है तो चेतन सूक्ष्म का लाभ कितना चमत्कारी होगा न कहना आसान है न कल्पना करना।


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