राजा वृहदाश्व ने घोषणा कर दी-’मैं ही ईश्वर हूँ। सबका-भरण-पोषण करने वाला विष्णु मैं ही हूँ।’
चाटुकार राज-कर्मचारी राजा के अहं को फुलाने-सहलाने लगे। वे उसकी हाँ में हाँ मिलाते। उसे ही ईश्वर बतलाते। यदि कोई इसका विरोध करता तो वह दण्डित किया जाता।
ऋषि उतंक ने सुना तो एक दिन सभा में पहुँचे और पूछा राजन् कृपया बतायें कि आपके राज्य में कितने कौए, कितने कबूतर, कितने कोयल, कितने हंस व कितने बगुले हैं। राजा ने कहा ‘यह तो मुझे ज्ञात नहीं।’ ऋषि बोले-’तब सबके भरण-पोषण की व्यवस्था आप कैसे करते होंगे? उन सबकी रक्षा कैसे करेंगे?’
राजा समझ गया। उसका अभिमान गल गया। उसने ईश्वरत्व का दावा छोड़ दिया।