स्वप्नों के माध्यम से अंतःस्थिति के दर्शन

November 1979

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स्वप्न जीवन का एक अनिवार्य अंग है। जिस प्रकार जागृत स्थिति में मनुष्य अपनी समझ मनःस्थिति और भावनाओं के अनुसार चित्र विचित्र कामनाएँ करता रहता है उसी प्रकार सुषुमावस्था में स्वप्न देखता रहता है। यों जागते हुए भी लोग अपनी कल्पनाओं के चित्र बनाते और उन्हें देख कर आनन्दित होते रहते हैं। मनो-विज्ञान की प्रचलित मान्यता के अनुसार सपने आने का मुख्य उद्देश्य मन में दमित वासनाओं और इच्छाओं की पूर्ति करना है। लेकिन अध्यात्म विज्ञान के अनुसार कई बार स्वप्नों के माध्यम से अंतर्जगत की झाँकी भी मिलती है और उस झाँकी से वह सब कुछ देखा, समझा जा सकता है जो गहन से गहन विश्लेषण और निदान परीक्षा द्वारा भी सम्भव नहीं देखा जाय।

मनोविज्ञान के अनुसार यथार्थ जगत में अप्राप्त सुखों और सफलताओं का आनन्द उठाने के लिए स्वप्न प्रकृति की वरदान तुल्य व्यवस्था है। सोते समय जब कोई स्वप्न देखता है और सो कर जागता है तो उससे जो ताजगी प्राप्त होती है वह स्वप्न रहित निद्रा में कदाचित ही प्राप्त होती है। क्योंकि स्वप्न देखकर मनुष्य कई अनचाहे दबावों और तनावों से अनायास ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है। जीवन के कटु अनुभव, अवश परिस्थितियाँ तथा विक्षुब्ध कर देने वाली चिन्ताएँ स्वप्न के माध्यम से चेतन मन को पार कर अचेतन में जा डूबती है और मनुष्य पुनः सामान्य मनःस्थिति प्राप्त कर लेता है।

उदाहरण के लिए किसी ने किसी का अकारण ही अपमान कर दिया तो इसमें अपमानित होने वाले का क्या वश हो सकता है? अवश और निर्दोष होते हुए भी अपमान का दुःख तो होता ही है। जीवन में इस तरह के कई दुःख और दबाव अनचाहे ही एकत्रित होते रहते हैं। यदि ये सभी दुख और क्षोभ एकत्रित होते रहे तो मनुष्य के चित्त पर विषाद का इतना बोझ इकट्ठा हो सकता है कि उस बोझ के कारण मानसिक सन्तुलन ही लड़खड़ा जाय। स्वप्न ऐसी अप्रिय स्थितियों का समाधान उनकी स्मृति को विस्मृति की कूड़ेदानी में फेंक कर करता चलता है और मनुष्य के चित्त पर दुःख का कोई बड़ा बोझ नहीं बन पाता जिससे कि चरमरा कर उसके टूटने का भय उत्पन्न हो जाय।

इसके अतिरिक्त, मनुष्य बहुत कुछ चाहता है, पर जितना जो कुछ वह चाहता है वह सब प्राप्त नहीं होता। उसमें से अधिकाँश उसकी सामर्थ्य के बाहर की बात होती है। फिर भी इच्छा पूरी न होने पर असन्तोष तो होता ही है। यह असन्तोष बढ़ता ही रहे तो मनोविक्षिप्तता आ घेरती है। ऐसी अवस्था में सन्तुलन को टूटने से बचाने का उपाय स्वप्नों से मनचाही उपलब्धियाँ और सुख प्रस्तुत हो जाता है।

विज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र में स्वप्नों को लेकर कई खोज हुई है। उनसे प्राप्त निष्कर्षों से अभी तक तो स्वप्नों के विश्लेषण द्वारा व्यक्ति पर पड़ने वाले या उसे अनुभव होने वाले व्यक्त-अव्यक्त दबावों का ही पता लगाया जाता था। लेकिन अब स्वप्नों के माध्यम से रोग निदान भी किया जाने लगा है। ऐसे-ऐसे रोगों का निदान स्वप्न विश्लेषण द्वारा सम्भव हो सका है, जिनके लक्षण चिकित्सा उपकरणों की पकड़ में भी नहीं आते थे।

20 वर्षों के प्रयोग, निरीक्षण और विश्लेषणों के बाद रूस के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. कासातकिन ने प्रतिपादित किया है कि रोग के लक्षण प्रकट होने से पूर्व ही स्वप्नों के माध्यम से रोग अपने आगमन की सूचना दे देते हैं।

कुछ ही दिनों बाद यह स्थिति आने वाली है कि कोई स्वस्थ व्यक्ति स्वप्न विशेषज्ञ के पास जाकर अपने सपनों के बारे में बतायेगा और उस आधार पर विशेषज्ञ सतर्क कर देंगे कि अमुक रोग आपके शरीर दुर्ग में घुसपैठ कर रहा है।

इसी विषय पर शोध करने वाले एक-दूसरे रूसी मनःचिकित्सक ने अपनी पुस्तक “स्वप्नों का वैज्ञानिक अध्ययन” में लिखा है, व्यक्ति के भविष्य एवं उसके स्वास्थ्य सम्बन्धी भावी सम्भावनाओं पर स्वप्नों के द्वारा काफी प्रकाश पड़ता है। इतना ही नहीं शरीर और मन से पूरी तरह स्वस्थ दिखाई देने वाले व्यक्तियों के स्वप्न भी यह बता सकते हैं कि भविष्य में किन रोगों का आक्रमण होने वाला है।

सामान्य जीवन में अनागत घटनाओं पर स्वप्नों के माध्यम से पूर्वाभास होने के तो ढेरों प्रमाण बिखरे पड़े है। टीपू सुलतान के सपने, लिंकन द्वारा अपनी मृत्यु का स्वप्न में पूर्वज्ञान, कैनेडी की हत्या का पूर्वाभास आदि तो प्रख्यात उदाहरण हैं। स्वप्नों के माध्यम से सुदूर स्थित अति आत्मीयजनों के साथ घटी दुःखद घटनाओं की जानकारी के विवरण भी मिलते हैं। परन्तु लोग विवेचन के उदाहरण कुछ वर्ष पूर्व ही देखने में आये हैं।

फ्रायड के अनुसार, जब मनुष्य मूल प्रवृत्ति की दृष्टि से स्वाभाविक इच्छाओं को नैतिक या अन्य तरह के दबावों के कारण पूरी नहीं कर पाता और उनका दमन कर देता है तो चेतन मन उन इच्छाओं को अचेतन मन में धकेल देता है। ये इच्छायें अचेतन मन का अंश बन जाती है और अचेतन मन स्वप्नों के माध्यम से उनकी पूर्ति करता है। फ्रायड के इस सिद्धान्त के अनुसार अनेकानेक मनोरोगों का विश्लेषण स्वप्न के माध्यम से सम्भव हो सका।

रोगों की जड़ तन में नहीं मन में, यह सोचा जाने लगा तो इस दिशा में किये गये प्रयासों से यह भी निष्कर्ष सामने आये कि रोगों का एक कारण मनुष्य के मन में दबी इच्छायें, दूषित संस्कार भी हो सकते हैं, डा॰ ब्राउन, डा॰ पीले, मैगडूगल, हैंडफील्ड और डा॰ जुँग आदि प्रसिद्ध मनःशास्त्रियों ने तो यहाँ तक कहा कि फोड़े फुँसी से लेकर टी॰बी॰ और कैंसर जैसी बीमारियों तक में, प्रत्येक बीमारी का कारण कोई न कोई दमित इच्छा, अनैतिक कार्य या दूषित संस्कार है। मनुष्य बाहर से कैसा भी दिखाई दे या अपने को दिखाने का प्रयास करें, उसके बाहरी व्यक्तित्व और दमित इच्छाओं तथा दूषित संस्कारों में अनवरत एक द्वन्द्व चलता रहता है। यह अन्तर्द्वन्द्व ही रोग को जन्म देता है।

डा॰ स्टैकिल ने इस सिद्धान्त की पुष्टि में अपने कई रोगियों का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कई चिकित्सकों के पास इलाज कराने और लाभ न होने पर निराश होकर अस्थमा का एक रोगी डा॰ स्टैकिल के पास आया। उसने अपने रोग का पूरा इतिहास डाक्टर को बता दिया। रोग और हुए उपचार का विवरण देखने के बाद रोगी से बातचीत करते हुए डा॰ स्टैकिल ने एक विचित्र बात देखी। रोगी के अनुसार उसे स्वप्न की एक विशेष स्थिति में, जब वह अपने आपको बकते हुए देखता था, तभी डरकर अचानक जाग उठता और उसकी साँस उखड़ने लगती।

डा॰ स्टैकिल ने सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार विश्वास जीत लिया और उस काँटे को उगलवा लिया, जो उस के मन में चुभ रहा था। विगत जीवन में एक बार बहक गये कदम से रोगी जो कुछ अनुचित कर बैठा था उसकी स्मृति ही निरन्तर रिसती रहती थी। डा. से अपने मन का पाप बता देने के बाद रोगी का चित्त कुछ हलका हुआ तो वह सपना भी आना बन्द हो गया और धीरे धीरे रोग भी जाता रहा।

कैलीफोर्निया के डा॰ मार्टिन रोशमान और इविगि ओयल का तो यह मानना ही है अधिकाँश रोग “साइको सोमेटिक” होते हैं, अर्थात् मानसिक अवसाद की प्रतिक्रिया शरीर पर भिन्न भिन्न रोगों के रूप में होती है, अमेरिका के एक चिकित्सक द्वय इस सिद्धान्त को चिकित्सा जगत में क्राँति के रूप में प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि शरीर का प्रत्येक रोग, भले वह छोटा से छोटा हो अथवा बड़े से बड़ा, मन की किसी न किसी गुत्थी से जन्मता है। इतना ही नहीं यदि उस गुत्थी को सुलझाया जा सके तो रोग ठीक भी हो सकता है।

स्वप्नों के माध्यम से रोग निदान की पद्धति का भी यही आधार है। फ्रायड के अनुसार भी तो मन की भली बुरी इच्छायें अतृप्त रह जाने के कारण अचेतन मन में जा छुपती हैं और जब चेतन मन सो जाता है तो उभर कर क्रीड़ा कल्लोल कर तृप्त होती हैं। इच्छाओं की भाँति ही स्मृतियाँ भी स्वप्नों में उभर आये तो इसमें भी आश्चर्य है।

मानसिक गुत्थियों को रोगों का कारण मानने की तरह स्वप्नों में उनकी प्रतिक्रियाओं का उभरना भी अस्वाभाविक नहीं है। यह बात और है कि स्वप्नों का पूरी तरह विश्लेषण किया जाना अभी सम्भव नहीं हुआ है क्योंकि प्रतिकरण, प्रतिस्थापन, अभिनयकरण और आकुँचन आदि उसे बहुत जटिल बना देते हैं। लेकिन जब स्वप्नों का पूरे तौर पर विश्लेषण कर पाना संभव हो जायेगा तो स्वस्थ व्यक्ति से भी उसके स्वप्न पूछकर रोगों का पूर्व संकेत प्राप्त किया जा सकेगा।

आँशिक रूप से इस दिशा में अब सफलतायें प्राप्त होने लगी हैं। डा॰ कासातकिन का कहना है कि -स्वप्नों द्वारा टान्सिल्स, अपेडिसाँइटीस और पाचान संस्थान के रोगों की जानकारी उनके प्रारम्भ होने से काफी समय पहले प्राप्त की जा सकती है। इतना ही नहीं ब्रेन ट्यूमर जैसे रोग का पूर्व परिचय भी एक वर्ष पहले ही स्वप्नों के माध्यम से मिल सकता है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का ध्यान इस दिशा में अब गया है किन्तु आयुर्वेद में रोग निदान के लिए स्वप्नों को पहले ही काफी महत्व दिया गया था। कुछ आयुर्वेदिक ग्रन्थों में स्वप्नाध्याय के नाम से एक अलग ही खंड मिलता है। महान् ज्योतिष शास्त्री डा॰ कार्ल जुँग का कहना है कि जब कोई स्वप्न बार बार आता है तो निश्चित ही उसका सम्बन्ध मनुष्य के भावी जीवन से रहता है, ऐसे स्वप्नों की कभी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। वह पूर्वाभास भी हो सकती है और शरीर के स्वप्न द्वार पर रोग की दस्तक भी। और आयुर्वेदिक आचार्य वराहमिहिर ने “कला प्रकाशिका” में स्वप्नों के द्वारा त्रिदोष ज्ञान का सविस्तार विवेचन किया है। स्मरणीय है आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ ये त्रिदोष ही समस्त रोगों के मूल कारण हैं।

“कला प्रकाशिका” में उल्लेख आया है कि जो व्यक्ति स्वयं को स्वप्न में प्रायः घिरा हुआ या अग्नि और उस से संबंधित दृश्य देखता है उसके शरीर में वात और पित्त का प्रभाव बढ़ा हुआ होता है। कपाल पर उष्णता अनुभव होने या भयावह दृश्य दिखाई पड़ने पर पित्त विकार की संभावना रहती है। इसी प्रकार रक्त वर्ण की वस्तुएँ-रक्त विकार की, की ज्वाला और पुष्प पित्त दोष अथवा श्लेष्म के सूचक बताये गये हैं।

इसके साथ ही सतर्क भी किया है कि एक से स्वप्नों का सभी के लिए एक सा अर्थ नहीं होता। अपितु रोग निदान के लिए व्यक्ति की मानसिक स्थिति और उसकी प्रकृति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

आचार्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता में लिखा है ‘स्वप्न से केवल रोग निदान में ही सहायता नहीं मिलती वरन् रोगी मनुष्य के रोग की वृद्धि या सुधार का भी पता चलता है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कुछ स्वप्नों के प्रकार भी दिये हैं जैसे प्रमेह तथा अतिसार के रोगी को यदि पानी पीने का स्वप्न दिखे तो निश्चय ही रोग बढ़ेगा। श्वास रोगी रास्ते में चलने या दौड़ने का स्वप्न देखें तो यह भी कष्ट वृद्धि का सूचक है।

ग्रामीण महिलाएँ भी इस विद्या को थोड़ी बहुत जानकार होती हैं। बच्चों को नींद में हँसते देख कर कई स्त्रियाँ निकट भविष्य में उसे रोग क्रान्त होने का अनुमान लगा लेती हैं। इसी तरह दूसरे स्वप्नों की भी रोग व्याख्या कर लेती है। भले ही अधिकाँश में ये अटकल बाजी से काम लेती हों परन्तु कई महिला स्वप्नों की अर्थ पूर्ण व्याख्या करने के आश्चर्यजनक रूप से सफल सिद्ध देखी गयी है।

स्वप्नों की व्याख्या को लेकर विदेशों में भी कई पुस्तकें लिखी गयी हैं। लेकिन इस विषय में अधिकाँशतः भविष्य सूचक स्वप्नों को व्याख्यायिक किया जाता रहा है स्वप्नों के द्वारा रोग निदान की विज्ञान सम्मत गवेषणाओं का अभी-श्रीगणेश ही हुआ है। इस क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों और प्राप्त निष्कर्षों से बीस पच्चीस वर्ष बाद रोगों के आगमन से पूर्व ही उनसे निबटने की सतर्कता बरतने के लिए आश्वस्त हुआ जा सकेगा। तब जानकार लोग उसे किसी साइकियाट्रिस्ट के पास जाने की सलाह दे सकेगा ठीक उसी तरह जैसे आज साँस उखड़ने और चक्कर आने पर डाक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती है।

स्वप्नों के माध्यम से इस प्रकार अंतर्गत की शरीर और मन की यहाँ तक कि आत्मिक स्थिति की भी बहुत कुछ जानकारी मिल जाता है। सर्व विदित है कि मनुष्य के भीतर दैवी और आसुरी दोनों ही प्रवृत्तियाँ बसती हैं मनुष्य के भीतर भगवान और शैतान दोनों ही विद्यमान हैं। किस का आधिपत्य है और कौन दुर्बल है यह स्वप्नों के विश्लेषण द्वारा बड़ी सरलतापूर्वक जाना जा सकता है। कहने को भले ही कोई कहता रहे कि हम सपने नहीं देखते, स्वप्न रहित नींद लेते हैं। पर यह सत्य नहीं है। यह बात अलग है कि किसी को सपने याद नहीं रहते हों पर बिना स्वप्न की नींद कभी आती ही नहीं है।

स्वप्नों की भाषा बहुत बेतुकी, असंगत और आधारहीन है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक मानसिक संरचना भी भिन्न भिन्न होती हैं। इसलिए स्वप्नों की व्याख्या के लिए कोई सर्वमान्य सिद्धान्त स्थिर नहीं किया जा सकता। परन्तु जिस दिन स्वप्नों की सरीक और सही व्याख्या सम्भव हो सकेगी, उस दिन मनुष्य के कई रहस्यों का पता लगाया जा सकेगा और वह उपलब्धि मनुष्य के लिए वरदान तुल्य सिद्ध होगी।


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