क्या प्रमाण है कि ईश्वर नहीं है?

November 1979

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यों तो यह सारा संसार ही अपने आप में एक महान आश्चर्य है। पर संसार की कुछ इमारतें हैं जिनकी गणना सात महान आश्चर्यों में की जाती है। इनमें से एक है मिश्र के पिरामिड। वहाँ की राजधानी काहिरा से 9 मील पूर्व की ओर बने तीन पिरामिडों का समूह इस बात का द्योतक है कि अब से तीन चार हजार वर्ष पूर्व वहाँ के कला कौशल ने कितनी उन्नति की थी। इनका निर्माण ईसा से 3500 से 1100 वर्ष पूर्व की अवधि के बीच हुआ माना जाता है। बड़े बड़े पत्थरों को एक-पर एक चिन कर सीढ़ियों की तरह बनाई गई ये इमारतें आज की उन्नत भवन निर्माण कला को भी मात देती हैं।

पिरामिड वस्तुतः उस समय के राजा महाराजाओं या संपन्न प्रतिष्ठित व्यक्तियों की कब्रें हैं। इनमें सबसे बड़ा पिरामिड है जो राजा च्योप्स की कब्र पर बनाया गया है। इसका निचला भाग 13 एकड़ जमीन के घेरे में फैला हुआ है। लगभग 13 लाख पत्थर इसके बनाने में इस्तेमाल किये गये हैं। इनमें से कई पत्थरों का वजन ढाई टन तक है। आश्चर्य किया जाता है कि उस समय जब कोई क्रेनें नहीं थीं और न ही कोई मशीनें तो इन पत्थरों को वहाँ तक कैसे ले जाया गया और किस तरह इनको चिनकर 450 फीट ऊँचाई तक बनाया गया। इससे भी आश्चर्य की बात यह कि इन पिरामिडों के अन्दर की कब्रों में जो शव दफनाये गये, वे आज भी ज्यों के त्यों विद्यमान हैं। पिरामिडों के सामने ही 140 फुट लम्बा बहुत बड़ा पुतला है। जिसका मुँह औरत का सा है और धड़ सिंह जैसा इसे ‘स्फिक्स’ कहा जाता है। आँधी, वर्षा, तूफान इनका कुछ नहीं बिगाड़ सके।

पिरामिडों की तरह की दुनिया का दूसरा बड़ा आश्चर्य है बेबीलोन के झूलते बगीचे। ईसा से 600 वर्ष पूर्व बनवाये गये इन बागों की ऊँचाई 75 से 300 फुट जमीन के ऊपर तक है। इन बगीचों के निर्माण की गाथा भी उतनी ही विचित्र है। कहते हैं कि राजा नेबुचादनेजार ने ये बाग लगवाये थे। जिन दिनों ये बने उन दिनों अरब के पास बेबीलोन नामक एक बहुत ही सुन्दर नगर था। वहाँ के राजा नेबुचादनेजार ने फारस की राजकुमारी से विवाह किया। किन्तु वह इस नये नगर और राजमहल के परिवेश में उदास रहने लगी। राजा को एक बार उसने बातों ही बातों में बताया कि यहाँ कोई सुन्दर बगीचा नहीं है। बगीचे तो वहाँ बहुत थे और एक एक सुन्दर थे। राजा ने उन बगीचों के बारे में बताया तो राजकुमारी ने कहा ये बगीचे तो उसके देश के बगीचों से बहुत ही घटिया हैं। इस पर राजा ने आदेश दिया कि ऐसे बाग बनवाये जाएँ जो दुनिया में बेजोड़ और वे मिसाल हों।

राजा के आदेश का पालन किया गया और सैकड़ों मील दूर पहाड़ों से पत्थर लाए गये। जमीन के ऊपर छतें पाट कर जमीन बनाई गई और उस पर सुन्दर तथा सुगन्धित फूल लगाए गये। झील से पंप द्वारा पानी चढ़ाया गया। इस प्रकार इन झूलते बगीचों का निर्माण हुआ जिन्हें 40 हजार मजदूरों और कारीगरों ने तीन वर्ष तक रात दिन काम करके तैयार किया। ये बगीचे भी संसार के महान आश्चर्यों में गिन जाते हैं।

आगरा का ताज महल भी इसी प्रकार एक सम्राट द्वारा अपनी प्रिय रानी की याद को अमर करने के लिए बनवाई गई इमारत है। संसार के सर्व प्रसिद्ध सात आश्चर्यों में से एक इस ताजमहल का निर्माण साढ़े अठारह वर्षों में हुआ। इसे बनाने के लिए कोई 20 हजार मजदूर रोज काम करते थे। इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार उस समय जब वस्तुऐं और मजदूरी बहुत कम मूल्यों पर उपलब्ध थीं ताज महल के निर्माण में 6 करोड़ रुपये खर्च हुआ। इसके लिए राजस्थान से संगमरमर, तिब्बत से नीलम मणि, सिंहल से सिपास्त्मा जुलि मणि, पंजाब से हीरे और बगदाद से पुखराज रत्न मंगाए गये थे।

एशिया माइनर के तट पर ईसा से 350 वर्ष पूर्व बनाए गये डिआना देवी के मंदिर के निर्माण में भी करीब 100 वर्ष लग गये थे। इस मंदिर की मूर्ति 425 फुट लम्बी और 220 फीट चौड़ी थी। मन्दिर में लगभग 100 खम्भे थे और प्रत्येक की ऊँचाई 60 फीट थी। कोरिया का मेलोलियम भी संसार का एक आश्चर्य है, करीब 100 फीट लम्बी और उतनी ही चौड़ी चहार दीवार के मध्य 60-60 फीट ऊँचे 36 स्तम्भ जो नीचे मोटे और ऊपर क्रमशः पतले होते गए हैं, इनकी विशेषता है। सीढ़ियों पर नीचे से ऊपर तक संगमरमर की बहुमूल्य सजावट की गई है। यह एक मकबरा था जिसकी ऊँचाई 140 फीट थी, पाँच भागों में विभक्त इस मकबरे में तहखाना, खम्भों का घेरा, पिरामिड और मूर्तियों का आधार सभी कुछ आश्चर्यजनक है।

रोडस की प्रतिमा, ओलम्पिया में जुपीटर की विशाल मूर्ति, फारस के प्रकाश स्तम्भ, चीन की दीवार, पीसा का बुर्ज, सेंट सोफियों की मस्जिद, सेंट पीटर का गिरजाघर एम्पायर स्टेट (न्यूयार्क जिसकी ऊँचाई 1072 फीट है।) पाइटलट, ऊँचाई 1046 फीट) ईफिल टावर, कुतुब मीनार, गोल गुंबद, लीनिंग टावर, इंडिपेंडेस हाल, ऐलीजी पैलेस, क्रेमलीन आदि कितनी ही सर्वश्रेष्ठ इमारतें मनुष्यकृत रचनाएँ हैं जिनके निर्माण कर्ताओं को प्रखर बुद्धि और भाव सम्पन्न आत्माएँ कहा जा सकता है। संसार की इन आश्चर्य जनक इमारतों को देखकर सहज ही उनके निर्माताओं की कुशाग्र बुद्धि और पैनी प्रतिभा के सामने नतमस्तक हो जाना पड़ता है।

ये कृतियाँ तो जड़ हैं। एक बार बना दी गईं फिर अविचल खड़ी रहीं। इनमें से कुछ नष्ट भी हो गईं पर एक बात तय है कि इनमें से किसी का भी निर्माण स्वतः नहीं हुआ। फिर यह कहने का क्या आधार है कि इतना सुन्दर संसार जिसमें प्रतिदिन सूरज उगता, प्रकाश व गर्मी देता व अपने समय पर अस्त हो जाता है, दिन भर के हारे थके लोगों और प्राणियों को रात्रि अपने अंचल में विश्राम देती है, वन प्रान्तर में भूल भटक गए यात्रियों को तारे दिशा बताते हैं। ऋतुएँ समय पर आती और चली जाती हैं, हर प्राणी के लिए अनुकूल आहार, जलवायु की व्यवस्था और प्रतिकूलताओं से सुरक्षा का प्रबन्ध प्रकृति में उपलब्ध हैं। ये सुविधाएँ और व्यवस्थाएँ सहज ही उपलब्ध हैं, इसलिए इन पर कोई आश्चर्य भले ही न होता हो, पर हैं तो विस्मय जनक ही। इस विस्मय के साथ ही प्रश्न खड़ा होता है कि इन आश्चर्यों की सर्जक सत्ता कौन है? जो भी कोई वह सत्ता हो, उसे ही भिन्न-भिन्न धर्मों, ऋषियों और मनीषियों ने ईश्वर कहा है।

जो लोग ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठाते और उसे संदिग्ध बताते हैं, उनके लिए प्रतिप्रश्न यह है कि जब संसार के इतने आश्चर्यों का कोई न कोई निर्माता है तो इतने बड़े संसार का निर्माण बिना सृजेता के कैसे हुआ यों तर्क के लिए तो कहा जा सकता है कि जब संसार का निर्माण ईश्वर ने किया तो ईश्वर का निर्माण किसने किया? इस प्रकार के तर्क वितर्कों का अन्त नहीं है और उन्हें कितना ही लम्बा खींचा जा सकता है, लेकिन तभी जबकि ईश्वर को कोई व्यक्ति मान कर चला जाय।

स्मरण रखा जाना चाहिए कि मनीषी विचारकों ने ईश्वरीय सत्ता का प्रतिपादन कहीं भी व्यक्तिक ईकाई के रूप में नहीं किया है। उसे एक नियामक शक्ति के रूप में ही जाना और समझा जाता है। उसके प्रभाव और शक्ति का परिचय प्रकृति के चारों ओर सन्तुलन के रूप में बिखरा पड़ा देखा जा सकता है। यदि कोई नियम व्यवस्था न रही होती तो करोड़ों की संख्या में तारागण किसी व्यवस्था के अभाव में अब तक न जाने कब के आपस में टकरा कर लड़ मरे होते। यदि इन सब में कोई नियम व्यवस्था काम न कर रही होती तो अमुक दिन, अमुक समय, अमुक सूर्य या चन्द्र ग्रहण, सूर्य संक्राँति आदि का ज्ञान किस प्रकार संभव होता।

सूर्य से पृथ्वी 9 करोड़ 30 लाख मील दूर है और पृथ्वी से चन्द्रमा 2 लाख 40 हजार मील दूर। यह दूरी पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य के निरन्तर घूमते रहने के बाद भी न घटती है और न बढ़ती है। जैसे कोई कठपुतली नचाने वाला एक सुनिश्चित क्रम से अपनी अँगुलियों की डोरों को हिलाता हुआ कठपुतली का खेल दिखाता है और उसकी प्रवीणता के कारण कभी खेल नहीं बिगड़ता, उसी प्रकार सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा ही नहीं ब्रह्माँड के अन्यान्य ग्रह नक्षत्र भी उसी गति, उसी नियम व्यवस्था से चल रहे हैं।

चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 17 दिन 7 घण्टे 43 मिनट और 12 सेकेंड में पूरी कर लेता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 घण्टे 56 मिनट 4.9 सेकेंड में घूम जाती है। सूर्य की परिक्रमा करते समय वह एक सेकेंड में 18॥ मील दूरी तय करती और अपनी धुरी पर 1037 मील प्रति घण्टा की चाल से घूमती है। बृहस्पति अपनी धुरी पर 9 घण्टे 55 मिनट में घूम जाता है और 333 दिन में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है। सौर परिवार के इन सदस्यों ने निर्धारित समय में अपना यह क्रम पूरा करने में न कभी विलम्ब किया और न उतावली से काम लिया।

इनका नियमन करने वाली कोई व्यवस्था, सत्ता या शक्ति के अस्तित्व से किस प्रकार इन्कार किया जा सकता है जब कि बिना उठाने वाले के एक पत्थर भी उठ कर इधर से उधर नहीं जाता। कार्यालयों में कोई नियम व्यवस्था न हो, कोई नियन्त्रण कर्ता या प्रबन्धक न हो तो वहाँ का काम चल पाना कठिन हो जाता है। सब अपनी मनमानी करने लगे तो कैसी अव्यवस्था उत्पन्न हो जायेगी कहा नहीं जा सकता। यह मान लिया जाय कि किसी प्रकार थोड़ी देर के लिए यह व्यवस्था चल भी जाय तो वह स्थिर नहीं हो सकती। मुश्किल से पन्द्रह मिनट भी नहीं चल पाएगी। नियामक के बिना स्थिर और अनवरत नियम व्यवस्था और प्रशासक के बिना प्रशासन की कल्पना नहीं की जा सकती। परिवार के वयोवृद्ध व्यक्ति के हाथ में सारी गृहस्थी का नियंत्रण होता है गाँव का एक मुखिया होता है तो कई गाँवों के समूह की बनी तहसील का स्वामी(नियंत्रण कर्ता तहसीलदार, जिले का प्रशासक कलेक्टर राज्य का गवर्नर और देश की शासन व्यवस्था का सूत्र संचालक राष्ट्रपति होता है। मिलों तक में मैनेजर और कम्पनियों में डायरेक्टर न हों तो उनकी व्यवस्था ही ठप्प पड़ जाती है और अस्तित्व डाँवाडोल हो जाता है। फिर इतनी बड़ी सृष्टि का प्रशासक स्वामी और मुखिया न होता तो संसार न जाने कब का विनष्ट हो चुका होता।

यह एक मानी हुई बात है कि जड़ में शक्ति हो सकती है, व्यवस्था नहीं। राह में गड़े पत्थर से किसी को चोट लग जाये तो खून निकल सकता है लेकिन पत्थर खुद चलने वाले को देखकर चोट पहुँचाने के लिए उसके अँगूठों की नोंक तक नहीं पहुँचता। क्योंकि वह जड़ है। हालाँकि अब तो जड़ की परिभाषा भी बदल गई है और कहा जाता है कि इस दुनिया में जड़ कुछ नहीं है। पर वह विषय अलग है, उसका प्रस्तुत पंक्तियों से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। कहा इतना भर जा रहा है कि व्यवस्था, प्रशासन, संचालन, नियमन और नियंत्रण जिस तिस के बस की बात नहीं है। यह कार्य कोई समर्थ सत्ता ही कर सकती है और जब प्रश्न ब्रह्माण्ड का आता है, जिसके विस्तार का ही अनुमान नहीं लगाया जा सकता परन्तु यह अनुभव किया जाता है कि आकाशस्थ समस्त पिंड अंडाकार वृत्त में एक निश्चित गति क्रम से गतिवान हैं तो प्रश्न उठता है कि कोई नियामक सत्ता नहीं है इस बात का क्या प्रमाण है?


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