परिस्थितियों का निर्माण अपने हाथ

November 1979

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नेपोलियन कहा करता था कि, ‘असंभव शब्द मूर्खों के शब्द कोश में होता है। मेरे शब्द कोश में इसका कोई स्थान नहीं। यह बात दर्प से भरी लग सकती है। नेपोलियन को स्वयं अपनी शक्ति सामर्थ्य का अतिशय अहंकार था वह चाहे जो भी रहा हो पर उसका उपरोक्त वचन अक्षरशः सही है। यही बात डेल कार्नेगी ने जीवन जीने की कला पर व्याख्यान देते हुए कहा तो एक श्रोता ने पूछा “श्रीमन् यह कैसे हो सकता है कि इस दुनिया में असंभव कुछ न हो। बताइये तो क्या एक चलनी को पानी से भरे बर्तन में डुबोया जाय और उसे बाहर निकाला जाय तो क्या उसमें पानी ठहर सकेगा।”

बेशक, कार्नेगी ने कहा-”चलनी में पानी ठहर सकता है। यदि बरतन के पानी को जमा कर बर्फ बना लिया जाय तो।” तर्क और विचार के द्वारा कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है। लेकिन इस युक्ति का तथ्य भी समर्थन करते हैं यदि व्यक्ति विश्वास विचार और योजनाबद्ध ढंग से कार्य करे तो असंभव को भी संभव में बदला जा सकता है। कहने का आशय यह है कि इस आधार पर अपने लिए मन चाही परिस्थितियाँ विनिर्मित की जा सकती हैं।

यदि अपने भीतर, अपनी शक्तियों के प्रति विश्वास कूट कूट कर भरा हो तो असफलताओं के मुँह कभी नहीं देखना पड़ता। असफलताओं का मुँह तभी देखना पड़ता है जब सामर्थ्य और साधनों का विचार न करते हुए ऐसे कदम बढ़ा लिये जायें जो विचारशीलता और विवेक की दृष्टि से उपयुक्त नहीं कहे जा सकते। इसके अतिरिक्त आत्मविश्वास का अभाव भी असफलता का एक कारण है। आत्मविश्वास का अर्थ अनियन्त्रित भावुकता नहीं है, वरन् यह उस दूरदर्शिता का नाम है जिसके साथ यह संकल्प और साहस भी जुड़ा रहता है। ऐसे आत्म विश्वासी जो भी काम करते हैं उसमें न तो ढील पोल होती है न उपेक्षा और न ही अनुत्तरदायित्व। इस स्तर के आत्मविश्वास को लेकर जो भी कार्य किये जाते हैं उन में पूरा मनोयोग, तन्मयता, तत्परता तथा परिश्रम समाहित रखा जाता है।

सफलता प्राप्त करने की इस नीति को अपनाकर कई व्यक्ति प्रतिकूलताओं में भी आशातीत प्रगति कर चुके हैं। ईसाई प्रचारकों में पादरी इवाइटा मूड़ी का नाम अंग्रेजी प्रचारकों में लिया जाता है। उनकी पत्नी कम पढ़ी थी पर वह चाहती थी कि मेरा पति पादरी बने। मूडी एकदम अनपढ़ थे। सो कम पढ़ी लिखी श्रीमती मूडी ने अपने अनपढ़ पति को ही थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना सिखाया और उनमें गिरजे के प्रति धर्म प्रचार के प्रति उत्साह उत्पन्न कर देने के बाद मूडी स्वयं अभीष्ट कार्य में प्रवृत्त हुए और रुचिपूर्वक अभ्यस्त दिशा में बढ़ने लगे। अंततः पत्नी की प्रेरणा प्रयत्न और प्रोत्साहन ने मूडी को धर्म प्रचारक बना कर ही छोड़ा। और पादरी भी ऐसा जिसने ईसाई जगत में असाधारण ख्याति तथा प्रतिष्ठा प्राप्त की।

अमेरिका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का पालन पोषण उनकी सौतेली माँ ने किया था। गरीबी और कठिनाइयों के बीच रहते हुए उसने अपने बेटे को ऐसी प्रेरणाएँ दीं और उसके अन्तःकरण में ऐसे बीज बोये जिनके अंकुर बच्चे की समझ और शिक्षा को ही नहीं वरन् उसकी आत्मा को भी ऊँची उठाते चले गये पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने का उनमें ऐसा चाव उत्पन्न हुआ कि वह एक एक पुस्तक माँग कर पढ़ने के लिए मीलों पैदल चल कर जाते और पढ़ने के बाद उस पुस्तक को वापस लौटाने के लिए उसी तरह पदयात्रा करते लक्ष्य के प्रति निष्ठा तन्मयता लगन और परिश्रम के बल पर लिंकन आत्मिक प्रगति करते हुए न केवल अमेरिका के राष्ट्रपति बने बल्कि उनकी गणना विश्व के महामानवों में की जाने लगी। इस बीच उन्हें कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ा। पर क्या मजाल जो उन्होंने मन को जरा भी छोटा किया हो। एक बार लिंकन से किसी न उनकी उन्नति का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि जन्मदात्री न होते हुए भी जिसने मेरी निर्मात्री होने का कार्य पूरा किया मैं अपनी उसी माँ के हाथों से बनाया हुआ एक खिलौना अथवा मंत्र भर हूँ।”

टामस अल्वा एडीसन, जिन्होंने अब तक हुए तमाम वैज्ञानिकों से अधिक आविष्कार किये और विज्ञान को दिये अपने अवदातों से मनुष्यता को उपकृत किया, आरंभ में अति मन्द बुद्धि के बालक थे। पढ़ने लिखने में उनका दिमाग जरा भी नहीं चलता था। स्कूल में भर्ती कराये जाने पर कुछ दिनों बाद अध्यापक ने एडीसन के हाथ अभिभावकों के नाम एक पत्र भेजा। इस पत्र में कहा गया था कि मंद बुद्धि होने के कारण यह बच्चा कदापि पढ़ नहीं सकेगा इसलिए इसे स्कूल से हटा लिया जाना चाहिए।

माता पिता ने यह पत्र पढ़ा तो उनकी आँखें भर आईं लेकिन माँ ने अपने बच्चे को दुलराया और कहा-”कोई बात नहीं बेटे,मैं स्वयं ही तुम्हें पढ़ाऊँगी।” उस पत्राचार के बाद बच्चे का स्कूल जाना बन्द कर दिया गया और माँ स्वयं अपने बेटे को पढ़ाने लगी। इस शिक्षण के साथ उन्होंने अपने बच्चे में ऐसे संस्कार भी बोये जिनके परिणामस्वरूप एडीसन इतना तन्मय होना सीख गये कि उससे उनकी प्रतिभा का अवरुद्ध श्रोत फूट निकला और परिणाम सभी के सामने है। एडीसन की गणना विश्व के सर्वाधिक मूर्धन्य वैज्ञानिकों में सब से पहले की जाती है।

अस्पताल की एक नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल जिसके पास न साधन थे और न सुविधाएँ पर मन में रोगियों और दुर्घटनाग्रस्त लोगों के प्रति अपार वेदना थी। इस वेदना की रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए उसने रेडक्रास सोसायटी की योजना बनाई और इस संस्था के उद्देश्य तथा स्वरूप को लेकर बड़े-बड़े लोगों के पास गई। नाइटिंगेल की हैसियत और उसके कार्य की गरिमा में इतना भारी अन्तर देखते हुए लोगों ने उन्हें यही परामर्श दिया कि इस तरह हवाई कल्पनाएँ करना व्यर्थ है। अच्छा हो आप अपनी नौकरी ठीक ढंग से करें। और उसमें अपनी भावनाओं का सन्तोष खोजें। कइयों ने उन्हें प्रत्यक्ष रूप से भी निरुत्साहित किया परन्तु नाइटिंगेल हताश नहीं हुई। कहीं से भी कोई सहायता न मिलने पर भी उन्होंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार काम आरम्भ किया। संस्था जब धीरे-धीरे अंकुरित होकर बढ़ने और फैलने लगी तो वहीं लोग जिन्होंने नाइटिंगेल को आरम्भ में निरुत्साहित किया था सहयोग की भावना से आगे आये लक्ष्य के प्रति निष्ठा और तन्मयता का ही परिणाम है कि फ्लोरेंस नाइटिंगेल द्वारा संस्थापित रेडक्रास सोसायटी तथा उनका मिशन देश काल की सीमाओं को लाँघ कर आज विश्व भर में फैले हुए संस्थानों में से सबसे बड़ी है। सफलता या असफलता परिस्थितियों पर नहीं स्वयं अपने ऊपर निर्भर करती है। एक विद्वान का कथन है कि संकल्पवान और कार्य करने के लिए तैयार रहने वाले व्यक्ति के एक नहीं अनेक हाथ होते हैं। अपने लिए उपयोगी हो सके ऐसी नजदीक की प्रत्येक वस्तु पर वह हाथ रखता है और अपने अनुकूल वस्तुओं तथा परिस्थितियों को वह आकर्षित कर लेता है। इस शक्ति का स्रोत आत्मविश्वास और केवल आत्मविश्वास ही है। आत्मविश्वास से बढ़कर सुनिश्चित परिणाम प्रस्तुत करने वाली दूसरी वस्तु या विशेषता नहीं है। अपने ऊपर अपनी सामर्थ्य के ऊपर यदि भरोसा किया जाय तो अगणित कठिनाइयों और अभावों के रहते हुए भी व्यक्ति अपनी अंतर्निहित सामर्थ्य के बल पर किसी भी दिशा में बढ़ सकता है और किसी भी संकट या विपत्ति से जूझ सकता है।

अपने आप पर विश्वास न करने के कारण ही लोग दुर्बल और असमर्थ सिद्ध होते हैं तथा असफलता के शिकार बनते हैं अपनी क्षमता पर अपनी प्रामाणिकता पर अपनी शक्ति पर अविश्वास करने से ही उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं से वंचित रहना पड़ता है। क्योंकि उस स्थिति में न आत्म बल विकसित होगा और न आत्मबल बढ़ेगा।

इस संसार में कोई भी उपलब्धि या सफलता बिना उचित मूल्य चुकाये नहीं मिलती। संसार के पराक्रमी व्यक्तियों का इतिहास वस्तुतः उनके मनोबल और आत्मविश्वास की गरिमा का ही इतिहास है। यही वह गंगोत्री है जहाँ से तन्मयता और तत्परता की शीतल शाँत शक्ति धारा निकलती है जो आगे चल कर ऐसे शक्ति प्रवाह के रूप में बदल जाती है जिसकी अभिनव सामर्थ्य मनुष्य को वंदनीय और अभिनंदनीय बनाती है।


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