प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में परिजनों से अपेक्षाएँ

November 1979

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सूर्य और चन्द्रमा की तरह दसों दिशाओं में प्रकीर्ण होने व्यापक क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व करने की क्षमता हर व्यक्ति में नहीं विरले महापुरुषों में ही होती है। पू॰ गुरुदेव को जिसने जिस दृष्टि से देखा वैसा ही पाया उसमें सम्भव है किसी की श्रद्धा भी कार्य करती हो, पर तथ्य यह है कि उन्होंने मानवीय क्षेत्र के प्रत्येक मर्म का स्पर्श किया और उसकी पूर्णता तक पहुँचने की सिद्धि प्राप्त की।

यों वे साधना के क्षेत्र में सर्वाधिक समर्थ माने जाते हैं किन्तु जीवन प्रवाह सहस्र क्षेत्रों में प्रवाहित हुआ है। लोक सेवक, समाज सुधारक, पुरोहित साहित्यकार, सद्गृहस्थ, कथाकार, प्रभावशाली वक्ता, प्रखर विचारक दार्शनिक, वैज्ञानिक, राजनीतिवेत्ता, व्यावहारिक अर्थशास्त्री आदि अनेक-अनेक विधाओं में उनका व्यक्तित्व गुँथा हुआ है। स्पष्ट है कि उनसे सम्बन्धित परिजनों ने उन्हें अपनी-अपनी तरह से देखा होगा।

जबलपुर राजकीय विज्ञान महाविद्यालय के प्रोफेसर डा॰ लोकेश इन दिनों शान्ति कुँज रहकर उन पर शोध कर रहे हैं उन्होंने भी उन सभी विधाओं का समावेश अपने शोध कार्य में रखा है। इन दिनों उन्हें बहुत ही अमूल्य सामग्री उपलब्ध हो रही है फिर भी अनेक परिजन यह पूछते रहते हैं कि वे पू॰ गुरुदेव के सम्बन्ध में क्या जानकारी दें। नीचे उनके शोध प्रबन्ध की वह सभी धारायें दी जा रही हैं जिन पर परिजन अपने विचार, संस्मरण घटनाएँ, साक्ष्य, पत्र व्यवहार प्रेरणायें और प्राप्त मार्ग दर्शन, अनुभूतियों, उपलब्धियों की जानकारी भेज सकते हैं

-: आचार्य श्रीराम शर्मा व्यक्तित्व एवं कृतित्व :-

-: प्रस्तावित शोध की आवश्यकता एवं उपादेयता :-

महर्षि दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी मूलतः मनीषी हैं जिन्होंने अपने चिन्तन को अपने जीवन में उतारा और वृहत्तर समाज में विकीर्ण किया। उनके लिखे की लीक पीटने वाले आलोचक भले ही विशुद्ध साहित्य के अंतर्गत न रख सकें किन्तु उनके विचारों जीवन क्रम और कृतित्व ने समाज को इतना अधिक प्रभावित किया है कि विशिष्ट शैली में अभिव्यक्त गम्भीर चिन्तन के रूप में उनके लघु वृहत् गद्य खण्ड साहित्यलोचकों की दृष्टि से अछूते नहीं रह सकेंगे। अभिव्यक्ति की शैली के रूप में महर्षि की निर्भीकता, स्वामी की तेजस्विता और महात्मा की सहज सरलता आलोचकों की खरी कसौटी पर अपनी स्वर्णिम आभा अंकित करती है

इसी परम्परा में आचार्य श्रीराम शर्मा का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने विगत पचास वर्षों में, उत्तर भारत की चिन्तन धारा, जीवन पद्धति और कर्मशीलता को आमूल प्रभावित किया है, धीरे धीरे उनका प्रभाव देश के शेष भागों एवं विदेशों में भी परिलक्षित होने लगा है, उनकी लेखनी ने भारतीय धार्मिक एवं साँस्कृतिक ग्रन्थों की सरल टीकायें प्रस्तुत की हैं, प्रचलित चिन्तन पद्धतियों का गम्भीर मनन कर के उनका समन्वित निचोड़, धर्म प्राण जनता एवं सुधि-बुद्धि जीवियों के लिए सुलभ किया है।

पाश्चात्य की विचारधाराओं का अध्ययन करके उनके जीवन पोषी तत्वों को स्वीकारा है तथा उनके ऐसे अंशों को जो अपनी साँस्कृतिक परम्परा से मेल नहीं खाते निर्ममतापूर्वक खण्डन किया है।

आज के जीवन की विभीषिकाओं से त्रस्त मानव समाज की आचार्य जी ने आत्मिक एवं आध्यात्मिक समाधान का अमृत प्रदान किया है। ऐसा जान पड़ता है कि आचार्य जी में कबीर का फक्कड़पन और तुलसी की समन्वय साधना समान मात्रा में विद्यमान है इसीलिए वे सड़ी-गली मान्यताओं को निर्मम भाव से तोड़ते चलते समय निर्माण का राम राज्यीय सपना भी देते चलते हैं। इस दृष्टि से महात्मा गाँधी का अधूरा काम आचार्य जी का युग साधना से पूर्ण होने जा रहा है।

दृष्टव्य है कि अपने पाश्चात्य शिष्यों को योग, हठ योग के चमत्कारिक प्रयोगों द्वारा आकृष्ट करने में लगे वैभव सम्पन्न योगियों, भगवानों से भिन्न आचार्य जी ने कबीर की वाणी में सहज समाधि का उपदेश दिया है। सामान्य जीवन क्रम का निष्ठापूर्वक पालन करते हुए जीवन मुक्ति की साधना का मार्ग आचार्य जी के द्वारा प्रशस्त किया जा रहा है ‘साधों सहज समाधि भली।’

हरिद्वार के एकान्त भागीरथी के पावन अंचल में बैठकर आचार्य प्रवर प्राचीन ऋषियों की भाँति अपने आश्रम में नये युग के निर्माण के लिए भविष्य दृष्टा के रूप में कार्यरत हैं। उनकी वाणी का ओज देश देशान्तर में फैला हुआ है जो भव ताप तापितों को शान्ति प्रदान करता है। आवश्यकता इस बात की है कि आचार्य जी की मनीषा को जन सुलभ बनाने में सबका सम्यक योगदान हो। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध इस दिशा में एक विनम्र प्रयास है।

आधुनिक साहित्य में प्रसूत विचार प्रधान साहित्य के निर्माताओं से आचार्य जी के साहित्य में वह और विशेषता है कि वे उसे जीवनानुभूति के रूप में व्यक्त करते हैं। उनकी लेखनी मात्र बुद्धि की तुष्ट नहीं करती वरन् हृदय से आत्मा तक यात्रा करती है।

आचार्य जी के इस योगदान का मूल्याँकन स्फुट रूप से ही तो होता रहा है। किन्तु शोध के स्तर पर उसका विवेचन अभी नहीं हुआ। पाँच सौ के लगभग छोटे-बड़े ग्रन्थों के लेखक, सम्पादक और भाष्यकार के रूप में उनकी सर्जना का व्यापक फलक विचारकों के विवेचन के लिए प्रभूत सामग्री प्रस्तुत करता है। प्रस्तावित शोध से राष्ट्रीय विचार आन्दोलन के इतिहास तथा हिन्दी में ललित साहित्येत्तर विचार प्रधान साहित्य के विकास पर गम्भीर प्रकाश पड़ सकेगा। इसी दृष्टि से प्रस्तुत विषय शोध हेतु चुना गया है।

आचार्य जी की लेखनी ने हिन्दी साहित्य के विविध आयामों को चिर प्रतीक्षित समृद्धि दी है। फलतः वे साहित्यकार तो हैं ही साथ ही वे अनन्य साधक एवं अखण्ड-ज्योति के लेखक हैं।

स्वतंत्रता संग्राम सैनानी, राष्ट्र पुरुष आचार्य जी ने गाँधीवादी दर्शन से अनुप्राणित होकर अपनी मौलिक एवं अनुदित रचनाओं तथा सम्पादकीय विचारों एवं टिप्पणियों के द्वारा एक नई सूझ बूझ एवं गम्भीर चिन्तन मनन का परिचय दिया है। उनकी कृतियाँ चाहे वे रामचरित मानस से प्रगतिशील प्रेरणा की हों या भारतीय संस्कृति का विश्व की “अजस्र अनुदान” वैचारिक क्रान्ति की दृष्टि से अपना अलग अलग महत्वपूर्ण एवं स्थान रखती हैं।

आचार्य श्रीराम शर्मा-व्यक्तित्व एवं कृतित्व।

प्रस्तावना :- प्रस्तावित शोध की आवश्यकता और उपादेयता।

अध्याय-1 आचार्य श्रीराम शर्मा : जीवन एवं व्यक्तित्व

(1) जन्म एवं परिवार (2) शिक्षा दीक्षा (3) आध्यात्मिक परिवेश (4) स्वातंत्र्य चेतना एवं स्वतंत्रता संग्राम में योगदान (5) समकालीन संत विचारकों से परिचय (6) युग निर्माण योजना और संगठन चेतना (7) साहित्यिक चेतना (8) दार्शनिक चेतना (9) सामाजिक और साहित्यिक अवदान (10) आचार्य शर्मा : एक संस्था एक मिशन।

अध्याय 2- आधुनिक विचार शोध और आचार्य श्रीराम शर्मा।

अध्याय 3- आचार्य शर्मा की सर्जना-प्रेरणा-

(1) महात्मा गाँधी (2) अरविन्द (3) महामना मालवीय (4) महर्षि रमण (5) संत विनोबा (6) जे कृष्णमूर्ति के चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में आचार्य श्रीराम शर्मा के चिन्तन का मूल्याँकन।

विदेशी विचारक और आचार्य जी-

(1) थियोसोफी मैडम वलडैक्सी (2) एनीबेसेन्ट दो अन्य विचारक कार्ल मार्क्स एवं रूसो।

अध्याय 4- आचार्य श्रीराम शर्मा की साहित्यिक कृतियाँ - (1) मौलिक (2) सम्पादित (3) अनूदित

अध्याय 5- हिन्दी पत्रकारिता और आचार्य श्रीराम शर्मा

(1) सनातन धर्म (2) कल्याण (3) विवेक-ज्योति (4) अन्य (5) परम्परा और मूल्याँकन-आचार्य श्रीराम शर्मा की

सम्पादन शैली-

(1) दैनिक सैनिक (2) अखण्ड ज्योति (मासिक) (3) युग निर्माण योजना (मासिक) (4) युग निर्माण योजना (पाक्षिक) (5) युग निर्माण पत्रिका (साप्ताहिक) (6) गायत्री परिवार पत्रिका (7) जीवन यज्ञ (8) युग शक्ति गायत्री (9) महिला जागृति अभियान

(6) उपलब्धियाँ और निष्कर्ष।

अध्याय 6- आर्ष ग्रन्थों के सम्पादन-टिप्पणी की परम्परा और आचार्य जी की कृतियाँ-

(एक) वैदिक साहित्य के हिन्दी टीकाकार

(1) महर्षि दयानन्द (2) श्रीमान् दामोदर सातवलेकर (3) महर्षि अरविन्द (4) विद्यानंद विदेह (5) स्वामी गंगेश्वरानन्द

(दो) आरण्यक और उपनिषदों की हिन्दी टीकाएँ

(तीन) उपलब्धि और सीमा (चार) निष्कर्ष।

अध्याय 7- (1) वैदिकेतर भारतीय वांगमय का सम्पादन और भाष्यकार

(1) पौराणिक साहित्य (2) धर्मशास्त्र और स्मृतियाँ (3) तंत्र साहित्य (4) भारतीय दर्शन

(2) आधुनिक हिन्दी टीका साहित्य का आचार्य शर्मा जी की देन।

अध्याय 8- (1) आचार्य शर्मा की युग बोध सम्प्रक्त कृतियाँ और उनका प्रतिपाथ।

(1) हिन्दी काव्य कृतियों की टीका परक रचनायें (2) व्यक्ति निर्माण परक कृतियाँ (3) जीवन चरित्र प्रधान कृतियाँ (4) परिवार निर्माण परक कृतियाँ (5) राष्ट्र निर्माण परक कृतियाँ (6) साँस्कृतिक पुनर्शोधन परक कृतियाँ (7) लोक क्राँति परक रचनायें

(2) वर्गीकरण का औचित्य तथा वर्गीकृत कृतियों का मूल्याँकन

अध्याय 9- आचार्य शर्मा का साहित्य-भाषा शैली परक अध्ययन।

अध्याय 10- आचार्य शर्मा की कृतियों में प्रतिबिम्बित जीवन दर्शन-

(1) जीवन दर्शन की धारणा और भारतीय चिन्तन (2) जीवन दर्शन की धारणा और भारतीयेतर चिन्तन (3) जीवन दर्शन के मूल तत्व और उनका विवेचन (4) सामयिक चिन्तन-

(1) आचार्य श्रीराम शर्मा की विचारक दृष्टि-

(1) गाँधी वादी विचारधारा (2) मार्क्सवादी विधा (3) वर्ग संघर्ष की पुनर्व्याख्या (4) राजतंत्र और समाज व्यवस्था परक अध्ययनों का मूल्याँकन (5) वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की अवधारणा। (6) परम्परित धारणाओं का वैज्ञानिक आधार (7) आध्यात्मिक विज्ञानवाद के दृष्टा आचार्य श्रीराम शर्मा (8) विवेचन और निष्कर्ष (9) आचार्य जी के युग निर्माण का स्वरूप-

अध्याय 11- विश्व चेतना के दार्शनिकों में आचार्य श्रीराम शर्मा का योगदान।

अध्याय 12- विचार प्रधान हिन्दी साहित्य को आचार्य श्रीराम शर्मा की देन।

उपसंहार


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