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November 1979

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मन में जब सुख और शान्ति का समावेश हो जाता है, तब उसका प्रतिबिम्ब बाहर भी दिखाई देता है। इसलिए हर मनुष्य को यथासम्भव मानवता की सेवा करने में तत्पर रहना चाहिए। जिसे भी आवश्यकता है, उसके लिए कुछ न कुछ करना चाहिए। बिना मानवता की सेवा किये कोई भी सच्ची सुख शान्ति नहीं पा सकता। मनुष्य की सेवा करना अपनी सेवा करना है। फिर क्यों न अपने तक सीमित रहने के स्थान पर सामाजिक परिधि के माध्यम से अपनी सेवा की जाय। आत्मा का विकास परोपकार भावना और उसी के अनुसार कार्य करने से ही होता है। वैसे न उस विकास की सरल सम्भावना रहती है और न ही उसका कोई महत्व है।

-रवीन्द्र नाथ टैगोर

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