सच्ची बहादुरी

November 1979

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सन् 1922 में अमावस्या की काली रात और वामक नहीं का किनारा। गुजरात के प्रसिद्ध समाजसेवी रविशंकर महाराज नदी के किनारे पगडण्डी पर आगे बढ़ते चले जा रहे थे। तभी उनके कन्धे पर पीछे से हाथ रखते हुए किसी ने कहा महाराज! आप आगे कहाँ जा रहे हैं? चलिये वापस लौट चलिए।

महाराज ने स्वर पहचान लिया पूछा ‘कौन है? पुंजा’।

‘हाँ महाराज आगे मत जाइये। आगे खतरा है।’

‘कैसा खतरा!’

‘आगे रास्ते में ‘बहारवटिया’ छिपे हैं।’ कौन! नाम दरिया है।’

‘हाँ वही है। मेरी राय है कि आप आगे न जायें। व्यर्थ में ही इज्जत देने से क्या लाभ होगा?

महाराज हँसे। उन्होंने कहा ‘भाई मेरी इज्जत इतनी छोटी नहीं है जो थोड़ी सी बात में समाप्त हो जाय। मैं उन्हीं की तलाश में इधर आया था। चलो अब तुम्हीं मुझे वहाँ तक पहुँचा दो, क्योंकि तुम्हारा सारा रास्ता देखा है। और वह ठिकाने भी तुम्हें मालूम हैं जहाँ यह लाग छिपे रहते हैं।

‘नहीं, नहीं महाराज मेरी हिम्मत वहाँ जाने की नहीं है। अगर उन्होंने कोई हमला किया तो मैं आपको बचा भी न पाऊँगा और मेरे प्राण बेकार में चले जायेंगे। इतना कह पूजा ठिठक गया।

‘अच्छा तो तुम रुको। मैं आगे जाता हूँ।’ इतना कह महाराज आगे बढ़ गये।

वह चलते चलते एक खेत की मेंड़ पर खड़े हो गये। इतने में ही उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति साफा बाँधे बंदूक लिये उनकी ओर बढ़ता चला आ रहा है। जब दोनों के बीच की दूरी कम रह गई तो उसने सामने बंदूक तान दी।

महाराज खिलखिला कर हँस पड़े। उन्हें वारदोली सत्याग्रह का स्मरण हो आया और उनका साहस दुगुना हो गया। वे बोले ‘क्यों? क्या आज अकेले ही हो? तुम्हारे अन्य साथी कहाँ हैं?’

अब महाराज और बन्दूक धारी दोनों ही पास की झोंपड़ी के निकट आ गये जहाँ अन्य डाकू छिपे थे। एक ने गरज कर कहा खबरदार! जो एक कदम भी आगे बढ़ाया-’ और महाराज लापरवाही से उसी ओर बढ़ने लगे जिस ओर से यह ललकार आई थी। सामने एक घुड़सवार डकैत ने आकर पूछा “तुम कौन हो?”

‘मैं गाँधी की टोली का बहार बटिया हूँ। आओ हम लोग बैठ कर बात-चीत करें। मैं तुम सबको बुलाने ही तो आया हूँ। इतना कह कर महाराज ने घोड़े की लगाम पकड़ने के लिए हाथ बढ़ा दिया।

सब लोग उसी झोंपड़ी के पास बैठ गये। महाराज ने समझाना शुरू किया ‘भाइयों! यदि तुमको जौहर ही दिखाना है तो उन अंग्रेजों को क्यों नहीं दिखाते, जिन्होंने सारा देश ही तबाह कर दिया है। इन गरीबों को लूट कर मर्दानगी दिखाना तो लज्जा की बात है। अब गाँधी जी के नेतृत्व में शीघ्र ही आन्दोलन शुरू होगा यदि तुममें सचमुच पौरुष है, तो गोली खाने चलो। गाँधी जी ने तुम सबको आमन्त्रित किया है। यह कहते-कहते महाराज के नेत्र सजल हो गये। गला रुँध सा गया। डाकू इस अन्तरंग स्नेह से आविर्भूत हो उठे।

अपने हथियार डालते हुए उनके सरदार ने कहा आप निश्चिन्त होकर जाइये। आज हम आपके गाँव में डाका डालने को थे पर अब नहीं डालेंगे। साथ में एक आदमी भेज देता हूँ।

महाराज ने कहा ‘आप मेरी चिन्ता न करिये, मैं अकेला ही आया था और अकेला ही चला जाऊँगा। साथ देना है, तो उस काम में साथ दो जिसे गाँधी जी ने और भगवान ने हमें सौंपा है।

डाकुओं में से कई ने कुकृत्य छोड़ दिये और कइयों ने सत्याग्रह आन्दोलन में भारी सहयोग किया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118