सुगन्धि-वितरण की उदारता (kahani)

November 1979

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किसी बगुले को निशाना साधकर मैं आहत करूं, इससे अधिक मुझे प्रिय है, मैं स्वयं उसकी एकाग्रता को देखूं उससे प्रेरणा प्राप्त करूं। किसी बुलबुल को मार कर उसके मांस का स्वाद लेते रहने के स्थान पर मैं चाहता हूं कि चुपचाप किसी शांत स्थान पर बैठा दूर से उसके गीत सुनूं। तितलियों को पकड़ने में नहीं, उनकी मुक्त उड़ान को निहारने में मुझे आनंद मिलता है। फूलों को तोड़कर उन्हें हाथ में लेकर मुझे सौन्दर्य-बोध दृष्टिगत नहीं होता अपितु उन्हें उनके प्राण-स्रोत से जुड़े रहने देकर उनकी प्रफुल्लता, उनकी समिति, उनकी सुगन्धि-वितरण की उदारता को आत्मसात करने में ही मेरा सौन्दर्य बोध तृप्ति पाता है।


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