छोटा भाई वासुदेव फाँसी के तख्ते पर चढ़ने जल्लादों के साथ जा रहा था। रास्ते में बड़े भाई की कोठरी पड़ी जिसमें वह भी जल्दी ही फाँसी पर चढ़ने की प्रतीक्षा कर रहा था। वासुदेव ने जोर से कहा-
“भैया विदा, मैं चला.........”
उत्तर में बालकृष्ण ने कहा-
“चलो, मैं भी दो दिन बाद आ मिलूँगा। दामोदर को कहना- हम तीनों ही मिलेंगे और फिर मिलकर भारत माता पर इसी तरह शीश चढ़ाएंगे।”
चाफेकर बन्धु तीन भाई थे, दामोदर, बालकृष्ण, वासुदेव। तीनों को फाँसी लगी।
दामोदर ने अँग्रेज कमिश्नर को गोली मारी थी। बालकृष्ण बम काण्ड के प्रमुख थे और वासुदेव ने उन दोनों मुखबिरों को गोली से उड़ा दिया था जिनने उनका भेद खोला था। स्वतन्त्रता ऐसे ही बलिदानियों के रक्त का मूल्य पाकर प्राप्त हुई है।
----***----