आत्म देव की साधना और सिद्धि

November 1978

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देवताओं की क्षमता और अनुकम्पा के सम्बन्ध में अनेक मधुर कल्पनाएँ की जाती हैं। उनकी मनुहार अभ्यर्थना करते हुए यह आशा की जाती है कि वे द्रवित होंगे और साधक की सुविधा प्रसन्नता बढ़ाने में सहायता करेंगे। देव पूजन का प्रचलन इन दिनों प्रायः इसी धुरी पर घूमता है। इतने पर भी ऐसे भाग्यशाली थोड़े ही होंगे जो इस परिकल्पना को फलित और सफल होती देख पाते हों।

परोक्ष देवताओं की तुलना में प्रत्यक्ष आत्म देव की क्षमता की गरिमा और अनुकम्पा की महिमा को इन्हीं आँखों से देखा और यथार्थता की सभी कसौटियों पर परखा जा सकता है। आत्म परिष्कार के लिए की गई जीवन साधना से वे भी सभी सिद्धियाँ मिल सकती हैं जिनके लिए देवताओं के द्वारा भटकने, दीनता दिखाने और निराश रहने की विडम्बना सहन करनी पड़ती है। देवताओं में सर्वश्रेष्ठ आत्म देव है। उस तक पहुँच अति सरल है। उसकी जैसी उपासना जिसने भी की है उसे उसी अनुपात से अनुग्रह का लाभ मिला है। भौतिक सिद्धियाँ और आत्मिक ऋद्धियाँ अभीष्ट परिमाण में प्राप्त करने के लिए आत्म देव से बढ़कर और कोई सुनिश्चित उपास्य है नहीं।

साधनाओं में सर्वश्रेष्ठ, सर्व सुलभ और तत्काल फलदायक साधना आत्म देव की है। जीवन के प्रकाश पर जो दुष्प्रवृत्तियों के आवरण छाये हुए हैं, उन्हीं को साहसपूर्वक हटाने की तपश्चर्या करने से आत्म देव की साधना का पूर्वार्ध पूरा होता है। उत्तरार्ध में सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन करना पड़ता है, योगाभ्यास का तत्व ज्ञान यही है। आत्मानुशासन और आत्म परिष्कार के चरण बढ़ाते हुए कोई भी साधक इस परम देव तक पहुँच सकता है और उसके अनुग्रह का अजस्र लाभ पा सकता है।

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