अपनी ही काया अनजानी

November 1978

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किसी भी प्राणी का दृष्टिगोचर होने वाला स्वरूप केवल उसकी काया ही होती है। जो अस्तित्व अनुभव में आता है वह भी बातचीत, व्यवहार और स्थूल गति विधियों से ही व्यक्त होता है। परन्तु किसी भी प्राणी का अस्तित्व इतने मात्र तक ही सीमित नहीं है; उसका एक बड़ा भाग रहस्य के गर्भ में ही छुपा रहता है। आइस वर्ग (हिमशिलायें) जब सागर में तैरते हैं तो उनका एक तिहाई भाग ही दिखाई देता है, शेष दो तिहाई भाग समुद्र में डूबा हुआ रहता है। इसलिए कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि जिसे छोटी-सी हिमशिला समझ लिया जाता है वह बहुत बड़ी चट्टान निकलती है।

शास्त्रकारों ने इस संसार की तुलना एक प्याज से की है जिसकी पर्त दर पर्त निकलती जाती है। केले के तने पर जिस प्रकार छाल पर छाल चढ़ी रहती है उसी प्रकार रहस्यमय संसार में रहस्यों के आवरण पर आवरण चढ़े हुए हैं। विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है और बताता है कि ज्ञान का कहीं अन्त नहीं है। सभी रहस्यों के भेद अभी पा नहीं लिये गये हैं और अब तो अपना स्वयं का शरीर भी अनजाना, अचीन्हा लगने लगा है। कुछ दिन पहले की ही घटना है जिसकी अभी तक कोई व्याख्या नहीं की जा सकी है। अमेरिका के अनेक प्रतिष्ठित समाचार पत्रों ने इस घटना को छापा था। यह खबर संसार के कई पत्रों ने भी प्रकाशित की थी कि हैनरौट बीसरूस नामक एक विधवा के शरीर में विश्वविख्यात चित्रकार गोया की आत्मा ने एक अद्भुत कलाकृति का सृजन किया था। जबकि बीसरूस को कभी ठीक से तूलिका पकड़ना भी नहीं आया था। आश्चर्य की बात तो यह कि इस कलाकृति की नायिका तथा गोया की प्रख्यात कलाकृति ‘गवालन’ में चित्रित नायिका में अद्भुत समानता थी जबकि बीसरूस ने उस कलाकृति को स्वप्न में भी नहीं देखा था।

परामनोविज्ञान के शोधकर्त्ताओं ने इस घटना का विवेचन करते हुए बताया कि यह काम मरने के बाद भी जीवित गोया के सूक्ष्म शरीर के बीसरूस के माध्यम से कराया था। इस तरह की अनेकानेक घटनाओं का उल्लेख ‘जर्नीज आउट आफ द बॉडी’ (शरीर के बाहर यात्रा) ‘द अदर वर्ल्ड’ (दूसरा संसार) तथा ‘स्प्रिचुअल हीलिंग में मिलती है।

मरने के बाद अथवा जीवित अवस्था में ही सूक्ष्म शरीर के माध्यम से दूसरों के शरीर में प्रवेश कर जाना योगी यतियों के लिए सामान्य-सी बात रही है। आद्य शंकराचार्य के सम्बन्ध में विख्यात है कि उन्होंने शास्त्रार्थ में विजय पाने के लिए राजा सुधन्वा की मृतदेह में प्रवेश किया था।

भारत में ही कुछ वर्षों पूर्व इस तरह की एक असाधारण घटना घटी, जिसे राष्ट्रीय स्तर के कई समाचार पत्रों ने प्रकाशित किया।

कुछ लोग जसवीर के शव के पास भी बैठे थे। उन्होंने देखा कि जसवीर की देह में धीरे-धीरे हल-चल हो रही है। थोड़ी देर बाद जसवीर उठ बैठा। आस-पास बैठे लोगों को हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ, कुछ भय-भीत भी हुए। परन्तु कुछ समझदार लोगों के समझाने-बुझाने पर सभी ने यह मान लिया कि जसवीर पुनर्जीवित हो गया है। पूरी तरह स्वस्थ हो जाने पर घर के लोगों ने जसवीर के व्यवहार में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा। वह प्रायः कहता-‘‘मैं ब्राह्मण हूँ। तुम लोगों के हाथ का बना खाना नहीं खाऊँगा। मुझे मेरी पत्नी के पास ले चलो।”

करीब सप्ताह भर तक घर के लोगों ने काफी उपचार किया। वे समझ रहे थे कि बीमारी के कारण जसवीर का दिमाग पगला गया है। परन्तु किसी प्रकार फायदा न होते और जसवीर द्वारा समझदार लोगों की तरह व्यवहार करते देख उसके कथानुसार पास के गाँव में ले जाया गया, जहाँ कि उसने अपना घर बताया था।

तलाश करने पर पता चला कि उसी गाँव के शोभाराम त्यागी नामक एक ब्राह्मण युवक की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गयी थी। जसवीर अपने को वह शोभाराम ही बताता था। उसने शोभाराम की पत्नी, माँ और भाई को पहचाना तथा उन्हें स्वयं की पत्नी, माँ तथा भाई बताया। जसवीर अपने साथ आये लोगों को उस स्थान पर भी ले गया जहाँ दुर्घटना घटी थी। उस दुर्घटना में जो अन्य लोग और आहत हुए थे तथा जीवित बच गये थे, उन्होंने जसवीर के कथन की पुष्टि की।

गीताकार ने कहा है कि-

न जायते प्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भयः। अजोः नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणों न हन्यतेहन्यमाने शरीरं।

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है अथवा न यह आत्मा हो कर के फिर होने वाला है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य शाश्वत और पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी यह नाश नहीं होता।

मृत्यु की मीमांसा करते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणति न रोड परणि। तथा शरीराभणि विहाय जीर्णान्यन्याति संयाति नवानि देही॥

जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़ कर नये वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर नये शरीरों को प्राप्त होता है।

मृत्यु के समय केवल शरीर ही नष्ट होता है। मनुष्य की इच्छायें, वासनायें, आकांक्षायें और भावनायें ज्यों की त्यों बनी रहती हैं और सूक्ष्म शरीर के साथ पुनः नये शरीर की तलाश करने लगती है।

यदि अपनी चेतना को नियन्त्रित किया जा सके तो जीते जी भी सूक्ष्म शरीर को स्थूल देह से अलग कर इच्छानुसार विचरण भ्रमण किया जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने इस दिशा में भी सफल प्रयोग किये हैं और पाया है कि स्थूल शरीर के अतिरिक्त मनुष्य का एक और सूक्ष्म शरीर जिसे भाव शरीर कहा जाता है, भी है और इसका प्रकाश मानवी काया के इर्द-गिर्द चमकता रहता है। परामनोवैज्ञानिकों ने सूक्ष्म शरीर को न केवल आँखों से देखने वरन् उनका चित्र लेने तक में सफलता प्राप्त कर ली है।

रूस के एक वैज्ञानिक दंपत्ति इलेक्ट्रान विशेषज्ञ सेमयोन किलियान तथा उनकी पत्नी वेलैण्टीना ने मिल कर ऐसे कैमरे का निमार्ण किया है जिससे कि मनुष्य और अन्यान्य जीव जन्तुओं के सूक्ष्म शरीर का चित्र खींचा जा सके।

इसका विचार वैज्ञानिक दंपत्ति को कैसे आया, यह भी एक रोचक घटना है। डॉ0 किलियान अपने एक शोध छात्र के साथ एक अनुसंधान केन्द्र में काम कर रहे थे। एक प्रयोग के दौरान उन्होंने देखा कि इलेक्ट्रो थेरेपी की हाई फ्रीक्वेंसी वाली मशीन तथा रोगी की त्वचा के बीच एक हल्का-सा प्रकाश चमक रहा है। उन्होंने इस प्रकाश का चित्र लेने के लिए मशीन के कोच के स्थान पर धातु का इलैक्ट्रोड लगा कर सीधे अपना हाथ रख दिया, फिर हाथ और इलैक्ट्रोड के बीच में फोटोप्लेट रख दी। यन्त्र का बटन दबाते ही किलियान का हाथ जलने लगा था। डार्क रूम में ले जा कर फोटोप्लेट धोयी गयी तो उस पर उँगलियों के नोंक के आहार की चमकती हुई छवि देख कर वैज्ञानिक दंपत्ति चकित रह गये। इसी घटना से प्रेरित हो कर डॉ0 किलियान में अपनी पत्नी बेलेण्टीना के सहयोग से ऐसे कैमरे का अविष्कार किया जिससे सूक्ष्म शरीर का चित्र लिया जा सके। इस कैमरे से लिये गये चित्रों में मनुष्याकृति एक छाया के समान आती है जिसमें कई तारे चमकते दिखाई देते हैं। किलियान ने इस कैमरे के द्वारा वृक्ष की पत्तियों के भी चित्र लिए हैं और उनके चित्र भी मनुष्य अंगों की चमकीली छाया के समान आये हैं।

लिंगदेह-सूक्ष्म शरीर के सम्बन्ध में हुई अधुनातन खोजों के आधार पर अब यह भी प्रतिपादित किया गया है कि सूक्ष्म शरीर निद्रा, अचेतन अवस्था या रुग्णावस्था में स्थूल शरीर से अलग होकर कहीं भी विचरण कर सकता है जो स्थूल शरीर के लिए सम्भव नहीं है।

अमेरिका के मनो चिकित्सक डॉ0 एण्डरीना पुटार्रथ ने अपनी पुस्तक ‘बिर्याण्ड टेलीपैथी में एक घटना का उल्लेख किया है- श्रीमती हायेस प्रातः लगभग साढ़े पाँच बजे सोते से यकायक जाग उठी। उठने का कारण यह था कि उन्होंने एक भयंकर स्वप्न देखा था। स्वप्न में उन्होंने देखा था कि उनका पुत्र जॉन कार में घूमने जा रहा है, तभी एक दुर्घटना हो जाती है और उनके पुत्र का शरीर बुरी तरह घायल हो गया है। इसके पश्चात् उनको दिखाई दिया कि उनके पुत्र का शरीर कपड़े से ढ़का हुआ है और वह लेटा हुआ है। इस स्वप्न से श्रीमती हायेस इतनी घबड़ा गयीं कि उन्होंने फौरन उस होस्टल में फोन किया जहाँ जॉन पढ़ता था।

वहाँ के अधिकारियों को किसी प्रकार की दुर्घटना की जानकारी नहीं थी उन्हें तो यह भी नहीं मालूम था कि इस समय जॉन कहाँ है। वे केवल इतना ही बता सके कि जॉन इस समय होस्टल में नहीं है। बारह घण्टे बाद श्रीमती हायेस को टेलीफोन द्वारा सूचना मिली कि एक कार दुर्घटना में जान घायल हो गया है। वह कल रात अपने मित्रों के साथ सैर करने गया था। जब वह एक पहाड़ी पर तेजी से कार को दौड़ा रहा था तो 75 फीट की ऊँचाई से उसकी कार एक गड्ढे में गिर गयी। सौभाग्य से कार इस प्रकार गिरी कि उसको बहुत अधिक चोट नहीं आयी। जॉन के कथनानुसार उस समय लगभग साढ़े पाँच बजे थे।

इस घटना के पीछे ‘सूक्ष्म शरीर का प्रक्षेपण सिद्धान्त ही कारण रूप में प्रतिपादित किया गया है। मृत्यु के समय सूक्ष्म शरीर अपनी भौतिक काया का परित्याग कर उससे अलग हो जाता है क्योंकि वह काया मनुष्य की इच्छा, वासना, भावनाओं को पूरा करने में समर्थ नहीं रहती। मृत्यु के समय सूक्ष्म शरीर द्वारा देह त्याग की घटना को भी विज्ञान की कसौटी पर कसा जा चुका है।

चैकोस्लोवाकिया के वैज्ञानिक ब्रेतिस्लाव ने परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध किया कि जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो उसके चारों ओर दिखाई देने वाला प्रभामण्डल लुप्त हो जाता है। इसके लिए उन्होंने एक मरणासन्न स्थिति में शैय्या पर पड़े एक रोगी के चित्र लिये। जब वह रोगी जीवित था तब उसके शरीर का प्रभामण्डल धीरे-धीरे धुँधलाता जा रहा था। जब डाक्टरों ने उसकी मृत्यु घोषित करा दी तब रोगी का जो चित्र लिया गया उसमें कहीं भी कोई प्रकाश नहीं दिखाई दिया।

डॉ0 ब्रेतिस्लाव का कहना है कि यह प्रकाश बायोप्लाज्मा तत्व के सक्रिय रहने पर ही दिखाई देता है तथा मृत्यु के समय इसकी लपटें और चिंगारियाँ शून्य में विलीन हो जाती हैं।

ऐसी बात नहीं है कि केवल मनुष्य ही सूक्ष्म शरीर का स्वामी है, अन्य और कोई प्राणी सूक्ष्म देह धारण करने में असमर्थ हो। बल्कि हर जीवित प्राणी यहाँ तक कि पेड़-पौधों के भी सूक्ष्म शरीर होते हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्रीमती एलीन गैरटा ने अपनी पुस्तक ‘अर्बचरर्नस’ में लिखा है- ‘गौर से सूक्ष्म यन्त्रों द्वारा देखा जाने पर पौधों तथा पशुओं के चारों ओर एक कुहासा दिखाई देता है जिसे प्रभामण्डल कहते हैं। यह कुहासा कई स्तरों का होता है, किन्हीं व्यक्तियों में बहुत हल्का होता है तो किन्हीं में दीप्तिमंत। इसकी दीप्ति मनुष्य की मनःस्थिति के अनुसार घटती बढ़ती रहती है।

आगे चल कर कहा गया है स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर के व्यापार का माध्यम है जिस प्रकार बढ़ई का बसूला। अर्थात्-इच्छाओं, वासनाओं को पूरा करने के लिए सूक्ष्म शरीर एक यन्त्र की भाँति स्थूल शरीर का उपयोग करता है। ऐसी घटनायें जो स्थूल जगत से परे की प्रतीत होती हैं। स्थूल उपकरणों से प्रयोजन पूरा न होने के कारण दूसरे माध्यमों से सूक्ष्म शरीर की प्रयोजन पूर्ति मात्र रहती हैं और जब यह यन्त्र बेकार कूड़ा-कबाड़ा हो जाता है तो सूक्ष्मदेह इसे उसी प्रकार फेंक देता है जैसे फटा हुआ वस्त्र। अन्ततः यही कहना पड़ेगा जिसे हम अपना शरीर कहते हैं, जिसके लिए इतने मोहासक्त रहते हैं और कुछ नहीं, सूक्ष्मदेह की वासनाओं इच्छाओं को पूरा करने का माध्यम भर है।

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