व्यक्तित्व विकास में स्वाध्याय का योगदान

November 1978

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महान दार्शनिकों, अन्वेषी सिद्ध तपस्वियों और श्रेष्ठ महापुरुषों के प्रचण्ड परिश्रम से उपार्जित-उपलब्ध अमूल्य रत्न-राशि का सहजता से हाथ लग जाना कितना बड़ा सौभाग्य है, यह उनके ही जीवन से जाना जा सकता है, जिन्होंने इस सौभाग्य को पाने का अवसर गँवाया नहीं है। इतने अनुभवपूर्ण ज्ञान को इतनी सुगमता से पा सकना सचमुच मनुष्य के लिये कितना श्रेष्ठ अनुदान है।

व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिये प्रत्यक्ष प्रेरणा ही प्रभावी सिद्ध होती है। ऐसी प्रेरणा पाना ही सत्संग का लाभ उठाना कहा गया है। व्यक्तियों का सत्संग तो वैसे भी दुर्लभ ही है। सामान्यतः जो लोग कुछ आगे बढ़े-चढ़े होते भी हैं, उनसे सद्ज्ञान जितना मिलता है, उससे अधिक भ्रान्तियों का अम्बार मिलता है। जबकि उत्तम पुस्तकों के रूप में हमें उत्कृष्ट मनीषा का सान्निध्य सहज उपलब्ध हो जाता है।

रस्किन के “अनटु दिस लास्ट” ने भी गांधी जी को अभिभूत कर लिया। बाद में उन्होंने “सर्वोदय” नाम से इस कृति का गुजराती अनुवाद भी प्रस्तुत किया। उनकी गहनतम आस्थाएँ इसी पुस्तक को पढ़ते हुए जागृत हुई। इसी प्रकार गीता को वे अपना आध्यात्मिक सन्दर्भ ग्रन्थ मानते थे तथा संशय के किसी भी अवसर पर उसी प्रकाश-स्रोत ग्रन्थ की शरण जाते एवं मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। वे उसे अपनी माँ कहते थे।

जार्ज वाशिंगटन के मन में स्वतन्त्रता की अमर आग पुस्तकों ने ही जलाई थी। रोम्या रोलां के उपन्यास “जां क्रिस्तोफ” ने हजारों लोगों में नयी जीवन-दृष्टि जगाई। मेरी स्टो की पुस्तक ”टाम काका की कुटिया” ने अमरीका एवं पाश्चात्य जगत में हलचल मचा दी थी। तो गोर्की की ‘माँ’ ने रूस को हिला दिया था।

हीगेल के दर्शन के अध्ययन ने मार्क्स को अपनी जीवन दृष्टि के निर्धारण के लिये प्रचुर सामग्री दी। तथा एडमस्मिथ, डेविड रिकार्डो आदि अर्थशास्त्रियों की कृतियों ने अर्थशास्त्रीय दृष्टि दी। इस मेधावी सिद्धान्तकार के जीवन में सदैव पुस्तकों का अत्यधिक महत्व रहा और जीवन के बहुमूल्य वर्ष उसने गम्भीर अध्ययन में बिताए। लेनिन को रूसी समाजवादी क्रान्ति की प्रेरणा मार्क्स एजेल्स की प्रभावी रचनाओं से ही मिली। इस प्रकार अमरीका और रूस दोनों के स्वतन्त्रता-संग्राम में पुस्तकों की विशेष भूमिका रही। अफ्रीकी देशों में जो जागृति दिखाई पड़ रही है, उसमें भी पुस्तकों की प्रेरणाएँ अन्तर्निहित हैं। केनेथ काउन्डा, जोमो केन्याता, माकरियोस सभी ने किसी प्रत्यक्ष सत्संग से नहीं, प्रेरक पुस्तकों से ही संघर्ष की प्रेरणाएँ पाईं।

माओत्सेतुंग को मार्क्स की ही नहीं, सनयान-सेन की भी पुस्तकों ने प्रभावित किया। होची मिन्ह और चेम्वेवारा मार्क्सवादी साहित्य के अध्येता भी थे, प्रणेता भी।

भारतीय क्रान्तिकारियों के जीवन में बंकिम के ‘आनन्द मठ’ शरत् के ‘पथेर दावी’ और लोकमान्य तिलक के ‘गीता-रहस्य’ की विशिष्ट भूमिका रही है। विवेकानन्द और अरविन्द की कृतियों ने अनेक अभिनव राष्ट्रीय, सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों को शक्ति दी। जबकि खुद विवेकानन्द और अरविन्द ने वेद, उपनिषद् एवं भारतीय शास्त्रों तथा पाश्चात्य दार्शनिक ग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन किया था।

दार्शनिक एमर्सन कहा करते थे कि पुस्तकों से प्रेम ईश्वर के राज्य में पहुँचने का विमान है। सिसरो के अनुसार “अच्छी पुस्तकों को घर में संचित-संग्रहित करना घर को देव-मन्दिर बनाना है।

कैम्पिस ने एक बार अपने साथियों से कहा था-अपना कोट बेचकर भी अच्छी पुस्तकें खरीदो। कोट के बिना जाड़ों में शरीर में कष्ट होगा। किन्तु पुस्तकों के बिना तो आत्मा ही भूखी तड़पती रहेगी।

चुश्किन, ताल्सताय, तुर्गनेव, चेरवक और गोर्की की पुस्तकों ने जितना रूसी जन-मन को आन्दोलित, स्पन्दित किया है, उससे कुछ कम बाहरी विश्व को नहीं। उपनिषदों का सन्देश दुनिया भर के तत्वान्वेषियों नयी अन्तर्दृष्टि तथा अभिनव चेतना से भरता रहा है। शेक्सपियर का प्रभाव क्षेत्र इंग्लैण्ड की सीमाओं से हजार गुना अधिक है। कालिदास की रचनाएँ अमरीकी, रूसी, जर्मन, फ्रेंच, ब्रिटिश, जापानी, एशियाई और अफ्रीकी-साहित्यानुरागियों को समान रूप से आकर्षित करती है। पतंजलि के योगसूत्रों का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव विश्वभर की योगाभ्यास, प्रक्रियाओं में देखा जाता है। जिन्होंने गांधी को नहीं देखा, ऐसे एशियाई, अफ्रीकी, यूरोपीय अनेक जन नेताओं को गांधी की पुस्तकें ही नयी रणनीति एवं राजनीति का मार्ग दिखा रही हैं, फिर वे स्व0 मार्टिन लूथर किंग हों या चैकोस्लोवाकिया के विद्रोही।

मानवीय प्रगति के प्रमुख आधारों में स्वाध्याय का विशिष्ट महत्व है। स्वाध्याय का अर्थ है सद्ग्रन्थों का अध्ययन-मनन। मनोरंजन मात्र के लिये पढ़ी जाने वाली पुस्तकें आस्था के आधार नहीं प्रस्तुत कर पातीं। ज्ञान की जिज्ञासा का समाधान एवं तृप्ति प्रदान करने वाली पुस्तकों को पढ़ना, उन पर सोचना, मनन करना ही जीवन प्रगति का आधार बनता है। ऐसी पुस्तकें व्यक्ति की पथ-प्रदर्शक गुरू बनती हैं और उनके भीतर निहित क्षमताओं को उभारकर उन्हें विकसित व्यक्तित्व का स्वामी बनाती हैं।


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