मनुष्य वृद्धावस्था से दूर रहना चाहता है क्योंकि उस अवस्था में मनुष्य की शक्ति चुक जाती है, सामर्थ्य ढल जाती है और वह कुछ करने, यहाँ तक कि चलने-फिरने में भी अक्षम हो जाता है। प्रश्न उठता है कि वृद्धावस्था क्यों आती है और क्या उससे बचा जा सकता है? हर नयी चीज पुरानी होती है, जिसका उद्भव होता है, उसका अन्त भी आता है। परन्तु मनुष्य को वृद्धावस्था जिस रूप में सहनी पड़ती है वह स्थिति अन्य किसी जीव-जन्तु को नहीं सहनी पड़ती। यहाँ तक कि मनुष्यों में ही सत्तर-अस्सी वर्ष की आयु वाले व्यक्ति पैंतीस-चालीस वर्ष के जवान जैसे लगते हैं और कई पैंतीस-चालीस वर्ष के व्यक्ति अपनी आयु से एकदम दुगने नहीं तो कम से कम अधिक आयु के वृद्धावस्था की ओर गिरते पड़ते भाग रहे से प्रतीत होते हैं।
इसका क्या कारण है? मनुष्य अपनी अवस्था से पहले बूढ़ा क्यों होता है-सामान्य मनुष्यों की तरह मनोवैज्ञानिकों के लिए भी यह चिन्ता का विषय रहा है।
प्रख्यात जर्मन चिकित्सक क्रिस्टोफ बिल्होम ह्यूफलैण्ड ने ‘मैक्रोबिओरिया’ में वृद्धावस्था के कारण बताते हुए लिखा है कि हमारी भावनात्मक आदतें ही हममें बुढ़ापा ला देती हैं। यदि हम निराश या उदास रहने वाले हों तो निश्चय ही, बुढ़ापा जल्द आयेगा।
डॉ0 बर्नार्ड हटन का कहना है कि हम किसी भी पशु-पक्षी को मनुष्य की तरह जरावस्था और दीर्घकालिक बीमारी से मरते नहीं देखते फिर मनुष्य ही क्यों अपार कष्ट का भागी मान लिया जाये। यदि मनुष्य भी प्रकृति के नियमों की अवहेलना किये बिना अपना जीवन व्यतीत करे तो निश्चय ही उसके लिए भी मृत्यु पीड़ा हीन और कष्ट रहित हो जायेगी।
फ्रांस के डॉक्टर तिसगे ने अपने परीक्षणों से यह निष्कर्ष निकाला कि मनुष्य में वृद्धावस्था जल्दी आने का एक बड़ा कारण अधिक विश्राम है। उन्होंने अनेक प्रयोगों तथा परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध कर दिखाया कि अधिक आराम स्वास्थ्य का शत्रु है। इस प्रतिपादन को पुष्ट करने के लिए अन्य शरीर विज्ञानियों ने भी अनेक प्रयोग किये और इसी निष्कर्ष पर पहुँचे।
शरीर शास्त्रियों का कथन है कि एक शताब्दी पहले जब यन्त्रीकरण इतना अधिक नहीं हुआ था, तब मनुष्य काफी उमर तक भी जवान और स्वस्थ बना रहता था। लेकिन यन्त्रीकरण के परिणामस्वरूप मनुष्य को अब उतना शारीरिक श्रम नहीं करना पड़ता। शारीरिक श्रम के अभाव में मांसपेशियाँ धीरे-धीरे शिथिल हो जाती हैं और असमय ही बुढ़ापा घर लेता है।
गैलेट वर्जेंस ने अपनी पुस्तक “लुक एलिवन इयर्स यंगर’ में लिखा है कि कोई व्यक्ति स्वभावतः एकाकी अथवा एकान्त प्रिय है तो यह निश्चित रूप से जान लेना चाहिए कि वह शीघ्र ही वृद्ध होने वाला है। उसका कोई भी प्रयत्न उसे शक्ति सम्पन्न रखने में कारगर नहीं होगा।
मनुष्य भावनात्मक रूप से जितना हल्का-फुल्का, मानसिक दृष्टि से निश्चिंत, शारीरिक दृष्टि से परिश्रमी और सामाजिक दृष्टि से मिलनसार रहेगा वह उतना ही युवा और उत्साही, स्फूर्त रहेगा।
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