लो तुम इसे सुधार (kahani)

November 1978

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मानव जीवन इस जगती का सर्वोत्तम उपहार। सारे मल विक्षेप हटा कर लो तुम इसे सँवार॥

पथ, चौरासी लाख बदल कर राजपंथ यह पाया। पर मानव-मन लक्ष्य भूल-रस्ते में ही भरमाया॥

भूल गया आकर्षक मग में-मुझे कहाँ जाना है। कहाँ हमारी मंजिल है, उसको कैसे पाना है॥

कर बैठा इन्सान राह के प्रलोभनों से प्यार। मानव जीवन इस जगती का सर्वोत्तम उपहार॥

मनुज-देह यह शक्ति-स्रोत है जानो और पहचानो। और चेतना शक्ति-केन्द्र, विकसित करने की ठानो॥

पांच आवरण ओढ़ सखे! जो सोया उसे जगा लो। अखिल विश्व की सब विभूतियाँ घर बैठे ही पा लो॥

आत्म देवता का कर लो साथी! अभिनव संस्कार। मानव जीवन इस जगती का सर्वोत्तम उपहार॥

बन मनुष्य जिसने न मूल्य इस जीवन का पहचाना। उसे अन्त में मलकर हाथ, पड़ेगा ही पछताना॥

यह अन्तिम पड़ाव यात्रा का, आगे प्रभु का घर है। वह ही अन्तिम लक्ष्य, खत्म हो जाती वहाँ डगर है॥

निरावरण आत्मा होगी, तब ही होगा उद्धार। मानव जीवन इस जगती का सर्वोत्तम उपहार। सारे मल, विक्षेप हटाकर लो तुम इसे सँवार॥

-माया वर्मा

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*समाप्त*


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