आज्ञाकारी पेड़ और गणितज्ञ कैक्टस

November 1978

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रेल की पटरियों पर एक विद्युत ट्रेन दौड़ी जा रही थी। ट्रेन छोटी-सी थी और उसमें आठ-दस डिब्बे से अधिक डिब्बे नहीं थे। यात्री भी बहुत थोड़े से थे। ट्रेन चालू कर देने के बाद ड्राइवर भी इंजन छोड़कर पीछे के डिब्बे में जा बैठे थे। गाड़ी अपनी गति से चली जा रही थी कि रास्ते में खड़े पेड़ ने हुक्म दिया-

“रुक जाओ।”

गाड़ी रुक गयी।

‘पीछे की ओर चलो’

गाड़ी पीछे चलने लगी।

फिर दूसरे किनारे पर खड़े पेड़ ने कहा-‘रुक जाओ।’

गाड़ी फिर रुक गयी।

पेड़ ने गन्तव्य दिशा की ओर चलने का आदेश दिया तो गाड़ी गन्तव्य की ओर चल पड़ी।

ये पंक्तियाँ न किसी परी कथा से उद्धत की गयी हैं और न ही किसी ने इस घटना को स्वप्न में देखा है। अब से कुछ वर्ष पूर्व न्यूजर्सी (अमेरिका) में हजारों दर्शकों ने यह प्रदर्शन देखा और प्रदर्शनकर्त्ता है इलेक्ट्रानिकी विशेषज्ञ पियरेणल साविन। प्रदर्शन से पूर्व साविन ने घोषणा की थी कि वह अपनी आन्तरिक शक्ति को किसी भी पेड़ पर केन्द्रित करके विद्युत ट्रेन को आगे-पीछे दौड़ा सकते हैं। घोषणा को लोगों ने अविश्वास कौतूहल और आश्चर्य के साथ सुना तथा हजारों की संख्या में निर्धारित स्थान पर पहुँचे जहाँ सफलतापूर्वक घोषित कार्यक्रम पूरा किया गया। ट्रेन पटरियों पर थोड़ा आगे बढ़ती किनारे पर खड़े वृक्ष में कुछ हल-चल होती और ट्रेन एक विद्युत का झटका खा कर रुक जाती। फिर पीछे दौड़ने लगती।

पहले कभी वैज्ञानिकों को मान्यता रही थी कि पेड़ पौधे भी धूल-पत्थर की तरह निष्प्राण हैं। परन्तु एक छोटी-सी घटना से प्रेरित हो कर हमारे ही देश के एक वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र वसु ने यह सिद्ध किया कि पेड़ पौधों में भी जान है। वे भी अनुभव करते हैं। उनमें भी अनुभूति और भावनायें मौजूद रहती है। वे भी मनुष्यों और जानवरों की तरह सुख में सुख तथा दुःख में दुःख अनुभव करते हैं। वसु ने ‘ऑप्टिकल लीवर’ नामक एक विशेष यन्त्र बनाया था जिसके माध्यम से पेड़ पौधों की गति, स्पन्दन और संवेदनाओं का अध्ययन किया जाता था। पेड़ की पत्ती तोड़ने पर उसे जो पीड़ा होती है, ऑप्टिकल लीवर ने उसे पकड़ा और बताया इसी तरह की कई बातें, प्रतिक्रियायें ‘ऑप्टिकल लीवर’ से देखी जा सकीं।

परन्तु सर जगदीश चन्द्र वसु के बाद से अब तक विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली हैं और उसी तरह वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में हुई नयी-नयी शोधों ने वनस्पति संसार के नये रहस्य खोल कर रख दिये हैं। जैसा कि उपरोक्त घटना में ही देखा गया। पेड़ पौधे मनुष्य के संकेतों को समझते हैं और उन्हें प्रेरित किया जाय तो सम्मोहित व्यक्ति की तरह उन पर आचरण भी करते हैं। पियरे पाल साविन ने यही तो किया था। उन्होंने घोषित प्रदर्शन के पूर्व बिजली के एक स्विच का सम्बन्ध अपनी देह के साथ जोड़ा और दूसरे स्विच को गैल्वेनोमीटर से लगाया। इस गैल्वेनोमीटर का सम्बन्ध एक पौधे के साथ जोड़ा गया था। साविन वहाँ बैठे-बैठे संकेत देते और पौधा विद्युत ट्रेन के परिपेक्ष के साथ उलटा सम्बन्ध स्थापित करता, जिससे ट्रेन पीछे की ओर चलने लगती। इस प्रयोग को अमेरिका में टेलीविजन पर भी बताया गया। लोग दंग रह गये यह देख कर कि पौधा भी इतना आज्ञाकारी हो सकता है।

भारतीय धर्मशास्त्रों में पेड़ पौधों और वनस्पतियों से मनुष्य द्वारा स्थापित किये गये सजीव संपर्क की ढेरों घटनाओं का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद शास्त्र के पितामह चरक के सम्बन्ध में विख्यात है कि उन्होंने अपने छोटे से जीवन में हजारों जड़ी-बूटियों के गुण मालूम किये तथा कौन-सी जड़ी किस रोग में कैसे प्रयोग की जानी चाहिए इसका विस्तृत विधि-विधान खोजा। आजकल वैज्ञानिक एक रोग की दवा खोजने अथवा एक औषध का परीक्षण विश्लेषण करने में ही जीवन भर गुजार देते हैं तो एक व्यक्ति द्वारा अपने छोटे से जीवन में हजारों औषधियों का अध्ययन विवेचन कैसे सम्भव है। विश्वास नहीं किया जाता।

ऐसा उल्लेख मिलता है कि आयुर्वेद की रचना करते समय चरक जंगल में एक-एक झाड़ी, पौधे और वनस्पति के पास जाते और उससे उसकी विशेषताएं पूछते। वनस्पति स्वयं अपनी विशेषतायें बता देती। इसी आधार पर हजार वर्षों या हजार वैज्ञानिकों का कार्य एक व्यक्ति द्वारा सम्पन्न किया जा सका। पहली बात को जहाँ संदिग्ध समझा जाता रहा है वहीं दूसरी को हास्यास्पद कहा जाता है। परन्तु अब, जबकि वनस्पति जगत में हुई अधुनातम खोजों के आधार पर वैज्ञानिक यह कहने लगे हैं कि पेड़ पौधों से न केवल संवाद सम्भव है वरन् उनसे इच्छित कार्य भी कराया जा सकता है। पियरे पाल साविन का तो यहाँ तक कहना है कि चोरों से घर की सुरक्षा के लिए भी भविष्य में पेड़-पौधों का इस्तेमाल किया जा सकेगा। उसके लिए किसी भी पौधे का सम्बन्ध दरवाजे के साथ जोड़ दिया जायेगा और मकान मालिक जब उस पौधे के पास जाकर खड़ा हो जायेगा तो पौधा अपने मालिक का पहचान कर दरवाजा खुलने देगा।

यहाँ तक तो फिर भी उतना आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अमेरिका के ही एक और इनेक्ट्रानिकी विशेषज्ञ बैकस्टर ने तो यहाँ तक कहा है कि पेड़ पौधे अपने मालिकों की मृत्यु पर शोक भी व्यक्त करते हैं। पियरे पाल साविन ने यहां तक कहा है कि पेड़-पौधे न केवल मनुष्यों की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हैं बल्कि उन्हें मानव कोशाओं की मृत्यु का बोध होता है तो वे उस पर भी अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।

इसके लिए साविन ने अस्सी मील दूर पर एक प्रयोग किया। साविन ने जिस पौधे को प्रयोग के लिए चुना था वह अस्सी मील दूर पर एक अनुसंधान केन्द्र में स्थित था। फिर उसने अपने शरीर को बिजली के झटके दिये। अस्सी मील की दूरी पर स्थित पौधे पर इसकी प्रतिक्रिया नोट की गई जबकि दोनों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं था सिवा इसके कि जब साविन के शरीर को बिजली के झटके दिये जा रहे थे तो वह कल्पना में उन पौधों का ध्यान कर रहा था।

फिर भी साविन को यह विश्वास नहीं हुआ कि पौधे उसके शरीर पर लगने वाले विद्युत झटकों पर ही प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे। साविन ने विचार किया कि सम्भव है पौधे अपने आस-पास की दूसरी किसी घटना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हों। अतः अब एक पौधे के स्थान पर तीन-तीन पौधे लिए गये और तीनों पौधों को अलग-अलग कमरों में रखा गया। हर कमरे का माहौल दूसरे कमरे के माहौल से बिल्कुल भिन्न था तथा तीनों पौधे एक ही विद्युत पथ से जुड़े हुए थे। उधर अस्सी मील दूरी पर स्थित साविन ने अपना प्रयोग आरम्भ किया। न कोई सम्पर्क न सम्बन्ध सूत्र। केवल विचार शक्ति का उपयोग करना था। साविन ने जब अपना प्रयोग आरम्भ किया तो तीनों ही पौधों पर एक समान प्रतिक्रियायें हुईं। अब इसमें कोई सन्देह नहीं था कि पौधे अस्सी मील दूर बैठे साविन की अनुभूतियों, संवेदनाओं को ग्रहण कर अपनी प्रतिक्रियायें व्यक्त कर रहे थे।

पेड़-पौधे न केवल मनुष्य के आज्ञा पालन को तत्पर और दुःख-सुख में संवेदनायें व्यक्त करते हैं वरन् उनमें भी भावनाओं का आवेग उमड़ता है। जापान के मनोविज्ञानी डॉ0 केन हाशीमोतो ने ‘लाइडिटेक्टर’ के माध्यम से इस बात का पता लगाया। लाइडिटेक्टर एक ऐसा यन्त्र है जो अपराधियों का झूठ पकड़ने के काम आता है। इसका सिद्धान्त है कि व्यक्ति जब कोई बात छुपाता है या झूठ बोलता है तो उसके शरीर में कुछ वैद्युतिक परिवर्तन आ जाते हैं। लाइडिटेक्टर उन परिवर्तनों को अंकित कर लेता है और बता देता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है। अर्थात् मनुष्य की भावनात्मक स्थिति में आने वाले परिवर्तनों को लाइडिटेक्टर बता देता है।

डॉ0 केम हाशीमीतो ने इस मशीन का सम्बन्ध कैक्टस के एक पौधे से जोड़ा इसके बाद यन्त्र को चालू कर दिया। यंत्र ने बड़ी तेजी से कम्पन अंकित किये।

हाशीमीतो ने इन कम्पनों को ध्वनि तरंगों में बदलने के लिए कुछ विशेष इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों का सहारा लिया। इन यंत्रों की मदद से कम्पनों को ध्वनि तरंगों में परिवर्तित किया और उन्हें सुना गया तो लयात्मक स्वर सुने गये। जो स्वर सुने गये उनमें कहीं हर्ष का आवेग था तो कहीं भय की भावना।

हाशीमोतो ने कैक्टस के पौधे पर इतने प्रयोग किये कि उसे गिनती गिनना तक सिखा दिया। कैक्टस का पौधा हाशीमोतो की आज्ञा पाकर एक से बीस एक गिनती गिनने लगता और यह पूछने पर कि दो और दो कितने होते हैं, स्पष्ट उत्तर देता चार। इस प्रयोग को अन्य कई वैज्ञानिकों ने भी देखा और संसार की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया।

प्रदर्शन के समय पेड़ के सामने प्रश्न रखा गया कि बारह में से चार घटाने पर कितने बचते हैं। कैक्टस ने जो उत्तर दि या डॉ0 हाशीमोतो ने उसे ध्वनि तरंगों के रूप में परिवर्तित करके दिखाया ध्वनि तरंगों को जब हैडफोन पर सुना गया तो स्पष्ट उत्तर सुनाई दे रहा था-आठ। इन प्रयोगों और निष्कर्षों को लेकर जापान ही नहीं संसार के वनस्पति विज्ञान में एक नयी हलचल पैदा हो गयी है।

अब इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि चरक ने कभी जड़ी-बूटियों से प्रश्न किया हो और जड़ी−बूटियों ने बताया हो कि हम अमुक रोग का उपचार करने में समर्थ है। प्रश्न उठता है कि प्राचीनकाल में जब भारतीय विज्ञान इतना विकसित रहा था तो वह लुप्त क्यों हो गया। इस संदर्भ में एक बात स्मरणीय है कि आधुनिक विज्ञान, यंत्रों के द्वारा शोध और प्रयोग करता है परन्तु प्राचीनकाल में यही कार्य आत्मा की शक्ति सामर्थ्य के बल पर किया जाता था। चेतना तक चेतना की पहुँच सुगम है अपेक्षाकृत चेतन को यन्त्रों से सम्बोधित करने के। वहाँ भी चेतना ही काम करती है, परन्तु यान्त्रिक व्यवस्था जब बीच का माध्यम बनती है तो चेतन की गति निर्विरोध नहीं रह जाती। प्राचीनकाल में चेन को चेतन से प्रभावित करने और आत्मिक चेतना से अदृश्य गुह्य रहस्य उद्घाटित करने के जो प्रयोग हुए तथा उनमें जा सफलतायें मिलीं उन्हें परम्परागत रूप से एक-दूसरे का प्रत्यावर्तित नहीं किया जा सका।

डॉ0 हाशीमीतो ने जब जापान के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इस तरह के लेख लिखे तो उनके पास ढेरों पत्र पहुँचने लगे। लोगों ने कैक्टस की इन भौतिक क्रियाओं के पीछे विद्यमान रहने वाले भौतिक कारणों को जानना चाहा तो डॉ0 हाशीमीतो ने एक दूसरे लेख में लिखा-संसार में ऐसी कितनी ही घटनायें घटती हैं जिनके पीछे विद्यमान कारणों पर भौतिक विज्ञान प्रकाश नहीं डाल सकता, क्योंकि वह अभी पूर्ण विकसित नहीं हुआ है। इस गुत्थी को सुलझाने में पूर्व का अध्यात्म विज्ञान ही समर्थ है जो चेतना की सर्व व्यापकता और उसके जीवन्त अस्तित्व को स्वीकारता है। यह कोई विलक्षण घटना नहीं है, विलक्षण इस लिए लगती है कि हमारी जानकारी में अभी आयी है। अन्यथा गैलीलियो के बताने से पूर्व भी पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती थी और बताने के बाद भी। केवल गैलीलियो का यह सिद्ध करना विस्मयकारी और अविश्वसनीय रहा कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।

अगले दिनों भारतीय तत्वदर्शन की अन्यान्य मान्यतायें भी इसी प्रकार खरी सिद्ध हो सकती हैं कि सृष्टि ब्रह्माण्ड में जड़ कुछ नहीं है। अद्वैत दर्शन सर्वत्र एक चेतना के अस्तित्व का ही तो प्रतिपादन करता है।


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