‘‘अखण्ड-ज्योति’’ क्यों पढ़ें? क्यों मँगायें?

November 1978

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सर्वतोमुखी प्रगति का इसमें तथ्यपूर्ण मार्गदर्शन न मिलेगा।

अखण्ड-ज्योति हिन्दी मासिक पत्रिका- विगत 42 वर्ष से निरन्तर प्रकाशित होती आई है। उसकी पाठ्य सामग्री जितनी ज्ञानवर्धक है, उतनी ही आकर्षक भी। अपनी लोकप्रियता के कारण उसकी सदस्य संख्या निरन्तर बढ़ती ही गई है।

विज्ञापन एक भी नहीं छपता। जबकि अन्य पत्रिकाओं की प्रायः आधी आमदनी विज्ञापन में ही होती है। सोचा यह गया है कि पत्रिकाओं को मात्र विक्रेताओं की मण्डी बनाकर उनके लाभांश में जो टुकड़ा मिल जाता है, उसे महत्व न दिया जाए और किसी प्रकार कागज छपाई का मूल्य पाठकों से लेकर उन्हें सर्वोत्कृष्ट पाठ्य सामग्री पहुँचाई जाय। गान्धी जी द्वारा सम्पादित पत्रिकाओं का भी यही दृष्टिकोण था। अखण्ड-ज्योति ने भी विज्ञापन न छापने की नीति अपनाकर उसी मार्ग का अनुसरण किया है।

कलेवर की सुन्दरता-पाठ्य सामग्री की उत्कृष्टता-मूल्य की दृष्टि से अत्यन्त सस्ती, ग्राहक संख्या की दृष्टि से अपने स्तर की अन्य समस्त पत्रिकाओं में अग्रणी-ऐसी-ऐसी कितनी ही विशेषताओं की दृष्टि से अखण्ड-ज्योति का अपना कीर्तिमान है। उसमें छपे लेखों को हिन्दी का अनुवाद-प्रकाशन भारत की अन्य भाषा-भाषी पत्रिकाओं में जितनी बड़ी संख्या में होता है उतना कदाचित ही कहीं नहीं हुआ है।

उत्कृष्टतावादी चिन्तन और आदर्शवादी व्यवहार से समन्वित देव जीवन किस प्रकार सामान्य अथवा जटिल परिस्थितियों के बीच जिया जा सकता है उसका अनुभवपूर्ण मार्गदर्शन अखण्ड-ज्योति के पृष्ठों पर मिलता है। असंख्यों ने इन प्रेरणाओं और परामर्श के आधार पर अपने को बदला और ढाला है। पत्रिका का मार्गदर्शन एक प्रकार से जीवन साधना का पाठ्यक्रम ही कहा जा सकता है।

स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज की संरचना के लिए जिस तत्वदर्शन की आवश्यकता है उसे अखण्ड-ज्योति द्वारा तर्क, तथ्य, प्रमाण, उद्धरण, संस्मरण आदि का आधार लेकर इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि कठिन समझा जाने वाला आत्मनिर्माण, सरलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सके। व्यक्तित्व के समग्र निर्माण में सफल होने के लिए अखण्ड-ज्योति के लेखों का आधार किसी अनुभवी एवं दूरदर्शी मार्गदर्शक के परामर्श जैसा ही उपयोगी सिद्ध होता है।

अखण्ड-ज्योति में जिस-तिस की, जहाँ-तहाँ से संकलन करके लिखी गयी पाठ्य सामग्री नहीं छपती। उसकी एक-एक पंक्ति के पीछे अगाध अध्ययन एवं प्रयोक्ताओं का अनुभव भरा रहता है। इस पाठ्य सामग्री को अधिकतम लेखनी का अमृतोपम पुण्य प्रसाद कहा जा सकता है।

शरीर को भोजन, वस्त्र आदि को सुविधा देने की तरह ही जो आत्मा की भूख-प्यास बुझाना भी आवश्यक समझते हैं और उसके लिए सद्ज्ञान सामग्री की तलाश करते हैं, उनके लिए स्वाध्याय सामग्री अखण्ड-ज्योति से उत्कृष्ट स्तर की अन्यत्र मिल सकना कठिन है। इसे चन्दन, पुष्पों द्वारा एकत्रित किया हुआ परम पौष्टिक मधु संचय कह सकते हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, समृद्धि शांति, सुरक्षा जैसे उत्तरदायित्व राजतंत्र के कन्धों पर आये। वे उन्हें निभायें। किन्तु चरित्रनिष्ठा, उदात्त-विचारणा, सद्भाव युक्त सहकारिता, जैसे उत्कृष्टतावादी तत्वों का राष्ट्रीय जीवन में समावेश करना धर्मतंत्र की जिम्मेदारी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के दिन से ही अखण्ड-ज्योति नैतिक क्रान्ति-बौद्धिक क्रान्ति एवं सामाजिक क्रान्ति के लिए प्रबल प्रयत्न कर रही है। धर्म तन्त्र ने लोकशिक्षण प्रक्रिया को कार्यान्वित करने के लिए उसकी युग-निर्माण योजना रचनात्मक संगठन शृंखला की तरह क्रियान्वित हो रही है। धर्मतंत्र को राष्ट्रीय प्रगति के चिन्तन पक्ष को उच्चस्तरीय बनाने की दृष्टि से अखण्ड-ज्योति ने जो भागीरथी प्रयास किये हैं उन्हें अनुपम ही माना जाता है।

अखण्ड-ज्योति मँगाने वाले मात्र किसी पत्रिका के पाठक भर नहीं होते वरन् वे एक सुगठित देव परिवार के सदस्य बनते हैं। मिशन के सूत्र संचालक के साथ उनका सम्पर्क एक सघन कुटुम्बी की तरह जुड़ जाता है और अति महत्वपूर्ण परामर्श एवं सम्भव सहयोग का सिलसिला चल पड़ता है। यह कौटुम्बिकता अन्ततः कितनी सुखद एवं श्रेयस्कर सिद्ध होती है, इसके इस देव परिवार के परिजन भली-भाँति जानते हैं। अतः वे दूसरों को भी इस सघनता का आनन्द लेने के लिए आमन्त्रित करते रहते हैं।

भौतिक जानकारियों के अन्वेषण, प्रत्यक्षीकरण एवं प्रयोग के लिए जो कार्य विज्ञान क्षेत्र से हुआ है। उसी के समतुल्य आध्यात्म तत्वदर्शन को अखण्ड-ज्योति इस प्रकार प्रस्तुत करती है जिससे अन्धविश्वास को नहीं तथ्यों को अपनाने वाली प्रखरता को ही प्रश्रय मिलता है। फलतः अखण्ड ज्योति के प्रतिपादन बुद्धिजीवी वर्ग में गहरी मान्यता प्राप्त करते चले जा रहे हैं।

धर्म अध्यात्म और ईश्वर के नाम पर प्रचलित भ्रान्तियों और विकृतियों को निरन्तर करने तथा उनके स्थान पर उत्कृष्ट विवेकशीलता की प्रतिष्ठापना का जैसा प्रयत्न अखण्ड-ज्योति ने किया है उसे अभूतपूर्व ही कहा जाता है। तत्वदर्शन की गूढ़ गुत्थियों का सरल और सहज मान्य जैसा प्रस्तुतीकरण इस पत्रिका के पृष्ठों पर किया जाता है उससे आस्तिकता, आध्यात्मिकता और धार्मिकता की जड़ें विचारशील वर्ग में दिन-दिन गहरी होती चली जा रही है।

योग साधना गृह त्यागी वनवासी लोगों के लिए ही नहीं, वरन् सामान्य जीवन में सरलतापूर्वक अपनाई जाने योग्य व्यक्तित्व का समग्र विकास करने वाली प्रक्रिया है यह प्रमाणित करने में अखण्ड-ज्योति का प्रतिपादन और प्रशिक्षण बहुत सफल ही रहा है।

आध्यात्मिक दृष्टि के आधार पर शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक क्षेत्रों में किस प्रकार सुखद सफलता पाई जा सकती है। स्वर्ग, मुक्ति पूर्णता, ईश्वरदर्शन जैसे लक्ष्यों को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है? इसका हृदयग्राही एवं अनुभव भरा मार्गदर्शन जैसा अखण्ड-ज्योति के पृष्ठों पर मिलता है, वैसा अन्यत्र मिल सकना कठिन है।

अब तक तर्क और तथ्यों के आधार पर ही अखण्ड-ज्योति के पृष्ठों पर अध्यात्म का विवेचन, निरूपण होता रहा है अब उसके लिए भौतिक विज्ञान का भी सहयोग लिया गया है। इसी वर्ष एक साधन सम्पन्न प्रयोगशाला खड़ी की जा रही है जिसमें अध्यात्म सिद्धान्तों को विज्ञान अनुसंधान की तरह परीक्षण किया जाएगा। यह संसार भर में अपने ढंग की अनोखी और प्रथम प्रयोगशाला होगी, जिसने अध्यात्म को श्रद्धा के क्षेत्र से आगे बढ़ाकर वैज्ञानिक आक्षेपों का सामना करने के लिए चुनौती स्वीकार की है। प्रयोगशाला का प्रथम चरण यज्ञ विज्ञान के अनेक पक्षों पर तथ्यपूर्ण परीक्षण करना होगा। इसके लिए बहुमूल्य साधन एवं वैज्ञानिक प्रतिभाएँ जुटाई जा रही है। प्रयोगशाला इसी बसन्त पर्व से अपना कार्य आरम्भ कर सके, इसके लिए सामर्थ्य भर प्रयत्न किये जा रहे हैं।

शरीर के लिए भोजन, वस्त्र में कमी करनी पड़े तो भी इस अध्यात्म भोजन को प्राप्त करने का प्रयत्न करें।

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