न्यूयार्क की एक अदालत में नगर के ही एक दम्पत्ति ने अलग-अलग मुकदमे दायर किये। पति ने पत्नी पर और पत्नी ने पति पर लांछन लगाकर परस्पर सम्बन्ध विच्छेद की अभियाचनायें प्रस्तुत की थीं। एक दूसरे पर लगाये गये अभियोग सच रहे हों या झूठ, इनसे एक बात निर्विवाद सिद्ध थी कि पारिवारिक जीवन में जो स्नेह आत्मीयता और संवेदना अभीष्ट होती है उनमें उसका नाम मात्र भी अंश नहीं था।
जज ने जो निर्णय दिया, उसे दूसरे लोग विलक्षण कह कर संतोष कर सकते हैं, पर उसके भीतर छिपा विचार शीलता का दर्द ऐसा है जिसकी ओर से आँखें नहीं मूँदी जा सकतीं। विद्वान न्यायाधीश ने सजा सुनाते हुए कहा-आप दोनों एक वर्ष तक चिड़िया घर में जानवरों के बीच रहिये ताकि आप लोगों को यह ज्ञात हो जाये कि पारिवारिक जीवन किसे कहते हैं।
पारिवारिकता वस्तुतः मनुष्य के विचारवान तथा भावनाशील होने का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह संयम और सहिष्णुता की ऐसी पाठशाला है। जहाँ से व्यक्ति तृष्णा-वासना, अहंता के मानवीय दुर्गुणों को दूर भगाने का अभ्यास करता है। सृष्टि का सौरभ, समाज की शान्ति सुव्यवस्था का आधार ही यह है कि मनुष्य स्वयं का जितना ध्यान रखे उतना ही दूसरों का भी। परिवार इस आदर्श के परिपालन की इकाई है। खेद है कि आज का इन्सान इस मानवीय सद्भावना से निरन्तर वंचित होता जा रहा है। जबकि अशिक्षित, उद्दंड और स्वार्थी समझे जाने वाले इतर जीवों में ये भावनायें अत्यन्त गहराई तक देखने को मिलती हैं। कुछ जीवों में तो स्नेह-पूर्ण आत्मदान ही ऐसी सजीव परंपराएं देखने को मिलती हैं कि हृदय छलक उठता है, दम्भी मनुष्य का सिर लज्जा से झुक जाता है।
डॉ0 इराउर्ल्फट ने अंटार्कटिक प्रदेश की यात्राओं के जो रोचक वर्णन प्रस्तुत किये हैं उनमें यह प्रसंग बड़ी मार्मिकता के साथ उभारा गया है। उन्होंने एडला पेन्गुइन पक्षी के पारिवारिक सौहार्द्र का चित्रण करते हुए लिखा है कि पेन्गुइन समुद्र में रहते हैं। दक्षिणी ध्रुव प्रदेश होने के कारण यहाँ समुद्र 8-8 फीट मोटी बर्फ की चादरों से ढका रहता है। पेन्गुइन उसमें 30 मील प्रति घंटे की गति से फिसल कर चल लेते हैं। समुद्र में उन्हें कीड़े-मकोड़े, सेवार जो कुछ मिल जाता है उसी से वे अपना उदर पोषण करते रहते हैं।
अण्डे देने और बच्चे सेने के लिए यह पक्षी गोल पत्थरों से एक विलक्षण बनाते हैं। जिसे “रुकरी” कहा जाता है। मादा को जब भी अण्डे देने होते हैं वह इसी रुकरी में चली आती है। आहरा व्यवस्था कठिन होने के कारण इस प्रसव काल के लिए संग्रह सम्भव नहीं हो पाता, जबकि प्रसव के बाद मादा को न केवल क्षुधा सताती है, अपितु शरीर में निर्बलता भी आ जाती है। यह स्थिति कब तक आयेगी, नर एडली (पेन्गुइन) को उसका अनुमान रहता है। वह ठीक समय पर मादा के पास पहुँच जाता है। जिस समय परिवार का कोई भी सदस्य आता है। मेजवान पेन्गुइन अपने स्थान से उछल कर आगे बढ़ती और चोंच और गर्दन हिलाती हुई तथा ग ग ग ग ग उच्चारण करती हुई भाव विभोर होकर उसका स्वागत करती है।
पेन्गुइन को कई बार 6 सप्ताह तक बिना आहार अपने बच्चों के पोषण और सुरक्षा में बिताना पड़ता है इतने दिनों में शारीरिक स्थिति कितनी चिन्ताजनक हो जाती होगी सप्ताह में एक भी दिन निराहार न रहने वाला मनुष्य उसे भली-भांति अनुभव कर सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जीव-जन्तुओं में कई गुनी अधिक सहिष्णुता हुई जबकि होना इससे उलटा चाहिए।
विद्वान न्यायाधीश का इस निर्णय के पीछे यही मन्तव्य रहा है। यदि मनुष्य स्वयं विचार नहीं कर सकता तो कम से कम वह अपने इन छोटे कहे जाने वाले भाइयों से सीख तो सकता है।
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