मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है।

December 1973

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पालटेराजेस्ट फेनामेना, आडिटरी हेलसिनेशन, फिजीकल, ट्राँसपोजीशन, ह्विजिनरी एक्पीरियेन्स, स्पिटिपाजेशन प्रभृति वैज्ञानिक कसौटियों पर कसे गये घटना क्रम अनुभवों द्वारा आत्मा और शरीर की भिन्नता के अधिकाधिक प्रमाण मिलते जा रहे हैं। शरीर के मरने पर भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है और जीव बिना शरीर के होने पर भी दूसरों के सम्मुख अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है, इस तथ्य की पुष्टि में इतने ठोस प्रमाण विद्यमान हैं कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। विज्ञान क्षेत्र की वह मान्यता अब निरस्त हो चली है कि शरीर ही मन है और मन उन दोनों का अन्त एक साथ हो जाता है।

मरने के बाद प्राणी की चेतना का क्या हश्र होता है, इसका निष्कर्ष निकालने के लिए अमेरिकी विज्ञान वेत्ताओं ने एक विशेष प्रकार का चैंबर बनाया। भीतरी हवा पूरी तरह निकाल दी गई और एक रासायनिक कुहरा इस प्रकार का पैदा कर दिया गया, जिसने अन्दर की अणु हलचलों का फोटो विशेष रूप से बनाये गये कैमरों से लिया जा सके।

इस चैंबर से सम्बद्ध एक छोटी पेटी में चूहा रखा गया और उसे बिजली से मारा गया। मरते ही उपरोक्त चैंबर में जो फोटो लिये गये, उनमें अन्तरिक्ष में उड़ते हुए आणविक चूहे की तस्वीर आई। इसी प्रयोग शृंखला में दूसरे मेंढक, केकड़ा जैसे जीव मारे गये तो मरणोपरान्त उसी आकृति के अणु बादल में उड़ते देखे गये। यह सूक्ष्म शरीर हर प्राणधारी का होता है और मरने के उपरान्त भी वायु भूत होकर बना रहता है।

टेलीपैथी, प्रीकागनीशन, क्लेयरवायेन्स, आकाल्ट साइंस, मेंटाफिजिक्स प्रभृति विचारधाराओं पर चल रहे प्रयोगों एवं अन्वेषणों से अब यह तथ्य अधिकाधिक स्पष्ट होता चला जा रहा है कि शरीर की सत्ता तक ही मानवी-सत्ता सीमित नहीं। वह उससे अधिक और अतिरिक्त है तथा मरने के उपरान्त भी आत्मा का अस्तित्व किसी न किसी रूप में बना रहता है। यह अस्तित्व किस रूप में रहता है-अभी उसका स्वरूप निर्धारण किया जाना शेष है। इलेक्ट्रानिक (विद्युतीय) एवं मैगनेटिक (चुम्बकीय) सत्ता के रूप में अभी वैज्ञानिक उसका अस्तित्व मानते हैं और ऐसी प्रकाश ज्योति बनाते हैं, जो आँखों से नहीं देखी जा सकती। डा. रह्यन ने इस संदर्भ में जो शोध कार्य किया है, उससे आत्मा के अस्तित्व की इसी रूप में सिद्धि होती है। उन्होंने ऐसी दर्जनों घटनाओं का उल्लेख किया है, जिसमें किन्हीं अदृश्य आत्माओं द्वारा जीवित मनुष्यों को ऐसे परामर्श, निर्देश एवं सहयोग दिये-जो अक्षरशः सच निकले और उनके लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हुए।

सरविलियम वेनेट की ‘डौथवैड विजन्स’ पुस्तक में ऐसी ढेरों घटनाओं का वर्णन है-जिसमें मृत्युकाल की पूर्ण सूचना से लेकर घातक खतरों से सावधान रहने की पूर्व सूचनाएँ समय से पहले मिलीं थीं और वे यथा समय सही होकर रहीं। इसी प्रकार के अपने निष्कर्षों का विवरण प्रो. रिचेट ने भी प्रकाशित कराया है।

मरने के बाद पुनर्जन्म होता है और उसकी स्मृति भी कभी-कभी अगले जन्म में बनी रहती है। ऐसी घटनाओं की बहुत बड़ी शृंखला है। इसी शृंखला की एक कड़ी वह घटना भी है, जो माइकल शेल्डन नामक अंग्रेज को अपनी इटली-यात्रा के समय प्रकाश में आई थी। इटली में यों प्रत्यक्षतः उसे कुछ आकर्षण नहीं था और न कोई ऐसा कारण था-जिसकी वजह से इस यात्रा के बिना उसे चैन ही न पड़े। कोई अज्ञात प्रेरणा उसे इसके लिए एक प्रकार से विवश ही कर रही थी। माइकल ने यात्रा के कुछ ही दिन पूर्व एक स्वप्न देखा कि वह इटली के किसी पुराने नगर में पहुँचा है और किसी जानी-पहचानी गली में घुस कर एक पुराने मकान में जा पहुँचा। जीने में चढ़ते हुए वह चिर-परिचित दुमंजिले कमरे में सहज-स्वभाव घुस गया और देखा-एक लड़की घायल पड़ी है, उसके गले में छुरे के गहरे घाव हैं और रक्त बह रहा है। अनायास ही उसके मुँह से निकला- मारिया! मारिया! घबराना मत, मैं आ गया।’ सपना टूटा। शेल्डन विचित्र स्वप्न का कुछ मतलब न समझ सका और आतंकित बना रहा। फिर भी यात्रा ता उसने की ही।

जब वह जिनोआ का सड़कों पर ऐसे ही चक्कर लगा रहा था तो उसे वही स्वप्न वाली गली दिखाई पड़ी। अनायास ही पैर उधर मुड़े ओर लगा कि वह किसी परिचित घर की ओर चला जा रहा था। स्वप्न में देखी कोठरी यथावत थी, वह सहसा चिल्लाया- मेरिया! मेरिया!! तुम कहाँ हो?

जोर की आवाज सुनकर पड़ौस के घर में से एक बुढ़िया निकली, उसने कहा- मारिया तो कभी की मर चुकी। अब वहां कहां है? बुढ़िया ने शेल्डन को घूर-घूर कर देखा और पहचाने के बारे में आश्वस्त होकर बोली- पर लुइगी ब्रोन्दोनो! तुम तो इतने अर्से बाद लौटे-अब तक कहाँ रह रहे थे?

बुढ़िया हवा में गायब हो गई तो शेल्डन और भी अधिक अचकचाया। उसे ऐसा लगा-मानों किसी जादू की नगरी में घूम रहा है। अपरिचित जगह में ऐसे परिचय-मानो सब कुछ उसका जाना-पहचाना ही हो। बुढ़िया भी उसकी जानी-पहचानी हो-घर भी-गली भी ऐसी है-मानो वह वहाँ मुद्दतों रहा हो। मारिया मानो उसकी कोई अत्यन्त घनिष्ठ परिचित हो।

हतप्रभ शेल्डन को एक बात सूझी-वह सीधा पुलिस ऑफिस गया ओर आग्रह पूर्वक यह पता लगाने लगा कि क्या कभी कोई मारिया नामक लड़की वहाँ रहती थी-क्या वह कत्ल में मरी? तलाश कौतूहल की पूर्ति के लिए की गई थी, पर आश्चर्य यह कि 122 वर्ष पुरानी एक फाइल ने उस घटना की पुष्टि कर दी।

पुलिस-रिकार्ड के कागजों ने बताया कि उसी मकान में मारिया बुइसाकारानेबों नामक एक 19 वर्षीय लड़की रहती थी। उसकी घनिष्ठता एक 25 वर्षीय युवक लुइगी व्रोन्दोनो नामक युवक से थी। दोनों में अनबन हो गई तो युवक ने छुरे से उस लड़की पर हमला कर दिया और कत्ल करने के बाद इटली छोड़कर किसी अन्य देश को भाग गया। तब से अब तक उसका कोई पता नहीं चला।

शेल्डन का यह विश्वास पूरी तरह जम गया कि वही पिछले जन्म में मारिया का प्रेमी और हत्यारा रहा है। यह तथ्य-उसे न तो स्वप्न प्रतीत होता था, न भ्रम वरन् जब भी चर्चा होती, उसके कहने का ढंग ऐसा ही होता-मानो किसी यथार्थ तथ्य का वर्णन कर रहा है।

इस घटना को पूरा मनोविज्ञान-वेत्ताओं ने अपनी शोध को विषय बनाया। शेल्डन ने लम्बी पूछ-ताछ की-पुलिस कागजात देखे और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जो बताया गया है-उसमें कोई बहकावा या अतिशयोक्ति नहीं है। इस प्रकार की अन्य घटनाओं के विवरणों पर गम्भीर विचार करने के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अतीन्द्रिय चेतना की प्रस्फुरण से ऐसी घटनाओं की स्मृति भी सामने आ सकती है और न अनुभव करने वाले व्यक्ति को इस तरह की कोई जानकारी या जिज्ञासा।

इससे इस तथ्य पर भी प्रकाश पड़ता है कि जीवन अनन्त है और जीवधारी एक के बाद दूसरा जन्म लेता रहता है। यद्यपि ईसाई और मुस्लिम-धर्म पुनर्जन्म की बात नहीं मानते, वे सृष्टि के आरम्भ और अन्त के बीच केवल एक ही जन्म का होना मानते हैं, पर पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ उन मान्यताओं को गलत सिद्ध कर देती हैं।


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