अरस्तू से उसके एक शिष्य ने कहा-मेरा स्वभाव बड़ा क्रोधी है, फलस्वरूप तरह-तरह के त्रास सहने पड़ते हैं।
अरस्तू ने उत्तर दिया-क्रोध कहाँ है, जरा मुझे दिखाओ तो?
शिष्य दिखाता कैसे? बोला-वह हर समय थोड़े ही रहता है-कभी-कभी आ धमकता है।
गम्भीर होकर अरस्तू ने कहा-तब क्रोध तुम्हारा स्वभाव नहीं हो सकता। वह कोई बाहरी चीज है, जो तुम्हें असावधान पाकर आ धमकती है।
चोर से जैसी सावधानी बरतते हो, वैसी ही क्रोध से भी बरते तो वह तुम्हारे घर में प्रवेश न कर सकेगा।