आचार्य अग्ने उन दिनों बीमार पड़े थे। फिर भी चारपाई पर सिरहाने बगल में उनने ढेरों पुस्तकें जमा कर रखी थीं। उस कष्टकर मनःस्थिति में पढ़कर मन को हलका करते थे।
एक मित्र मिलने आये और उन्होंने पूर्ण विश्राम की बात कहते हुए पढ़ने से बचने का परामर्श दिया।
अन्नेजी ने मुस्कराते हुए कहा-मैं बीमारी की खुराक बना हुआ हूँ, पर मैं भूखा कैसे रहूँ? अपनी खुराक पुस्तकों से हासिल करता हूँ।