हम अपने आप में न तो परिपूर्ण हैं और न स्वावलम्बी। समीपवर्ती और दूरवर्ती परिस्थितियाँ हमें असाधारण रूप से प्रभावित करती हैं इस लिए सीमित सोचने और संकीर्ण परिधि से आगे बढ़ने की आवश्यकता होती है। अन्यथा न तो हम प्रतिकूल प्रभावों के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और न अनुकूलताओं से लाभ उठा सकेंगे।
मौसम की परिस्थितियों का शरीर और मन दोनों पर प्रभाव पड़ता है। सुहावने मौसम में शरीर चुस्त रहता है और मन प्रसन्न। तब काम भी अधिक मात्रा में होता है और अपेक्षाकृत अच्छा भी। इसके विपरीत जब असह्य और प्रतिकूल मौसम होता है तो न केवल कई तरह की बीमारियाँ उठ खड़ी होती हैं वरन् मन भी उदास रहता है और काम का परिमाण और स्तर दोनों ही गिर जाते हैं। अपराध अन्वेषकों का कथन है कि सुहावने मौसम में अपराधों की संख्या काफी कम होती जाती है और जैसे ही उत्तेजना उत्पन्न होती करने वाला अधिक ठंडा गरम मौसम आता है वैसे ही अपराधों और दुर्घटनाओं की संख्या में तेजी से बढ़ने लगती है। दिल के दौरे पड़ने की न्यूनाधिकता का सम्बन्ध भी असह्य और सह्य मौसम के साथ बहुत कुछ जुड़ा रहता है।
स्विट्जरलैंड, दक्षिण जर्मनी विशेषतया आल्पसीय क्षेत्र में डाक्टर लोग उन दिनों महत्वपूर्ण आपरेशन नहीं करते जिन दिनों गर्म और सूखी हवाएँ तेजी से चलती हैं। हैम्बर्ग के डाक्टरों का भी यही निष्कर्ष है कि अकुलाने वाले मौसम के आपरेशन बहुत करके असफल हो जाते हैं। कारण यह है कि उन दिनों शरीर की प्रकृति मौसम की प्रतिकूलता को सफल बनाने में जितना उसका योगदान होना चाहिए उतना वह नहीं दे पाती। फलस्वरूप चिकित्सकों का कार्य अपेक्षाकृत कठिन हो जाता है।
बीमारियों की सहज स्वाभाविक घटोत्तरी-बढ़ोत्तरी को मौसम की उग्रता के साथ सम्बन्ध जोड़ने वाले बहुत से शोध निष्कर्ष विज्ञान वेत्ताओं ने निकाले हैं क्लोरिडा यूनिक सिटी के डाक्टर डब्ल्यू. बी वेव और नैवल स्कूल आफ ऐविएशन के प्रो. एच. एडिस ने इस सम्बन्ध में जो खोज बीन की है उसका विस्तृत विवरण अमेरिका की ‘साइन्स’ पत्रिका के 143 वें अंक में विस्तार पूर्वक छपा है। इसमें यह दर्शाया गया है कि ताप-मान घटने बढ़ने से वायु के विद्युत आवृष्टि कणों का ऋणायन और घनायन वर्ग के आवेशों में चढ़ाव उतार होता है। मानव शरीर के लिए ऋणायन वाले कण उपयोगी पड़ते हैं और घनायन हानिकारक सिद्ध होते हैं। बिजली की कड़क अथवा ताप मन के चढ़ाव उतार का जो प्रभाव उत्पन्न होता है, उससे वायुमण्डल में प्रत्यावर्ती विद्युत क्षेत्र-आल्टर नेर्हिग इलेक्ट्रिक फील्ड बन जाते हैं। रेडियो तरंगों की तरह इस विद्युत क्षेत्र का भी तेजी से विस्तार होता है और वे पहले दुर्बल शरीर वालों पर और पीछे सबल शरीर वालों पर अपना भला बुरा प्रभाव छोड़ कर बीमारियों को घटाने बढ़ाने की भूमिका विनिर्मित करते हैं।
पक्षी इन परिवर्तनों के प्रभाव को अच्छी तरह समझते हैं इसलिए वे अण्डे देने, घोंसले बनाने आदि का कार्य ऐसे मौसम में करते हैं जिसमें उन्हें कम से कम प्रकृति गत अवरोध सहना पड़े। उनके शरीर दुर्बल होते हैं और मौसम का अवरोध सबल। इस लड़ाई में अपनी हार देख कर वे संकट से पूर्व ही भाग खड़े होते हैं और लम्बी उड़ाने भरके ऐसे स्थानों पर चले जाते हैं जहाँ ऋतु परिवर्तन के कारण उत्पन्न असह्य स्थिति का सामना उन्हें न करना पड़े। एक स्थान से दूसरे स्थान को पक्षी-परिवारजन प्रायः इसी कारण होता रहता है।
विश्व चेतना के साथ अपना ताल मेल बिठाने की प्रक्रिया का नाम ही अध्यात्म साधना है। इस आधार पर हम अपनी अन्तः चेतना को इस योग्य विकसित परिष्कृत करते हैं कि ब्रह्माण्ड -व्यापी सूक्ष्म धारा प्रवाहों की अनुकूलता प्रतिकूलता के साथ हम उपयोगी सम्बन्ध सूत्र स्थापित कर सकें।