अचेतन मन को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता

December 1973

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मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने के लिए आमतौर से अध्ययन अध्यापन का आश्रय लिया जाता है और इसके लिए विभिन्न स्तर के शिक्षा-संस्थान चलाये जाते हैं। इससे चेतना के वाह्य-मस्तिष्क की जानकारी ही बढ़ती है। अन्तःचेतना को प्रशिक्षित करने के लिए अनुभव, अभ्यास और वातावरण के सृजन को ही मान्यता दी जाती रही है। अब परा-मनोविज्ञान की शोधों ने एक नया तथ्य प्रस्तुत किया है कि प्रस्तुत स्थिति में आवश्यक निर्देश देकर मानसिक चेतना को सीखने-सिखाने का अधिक झंझट उठाये बिना भी अभीष्ट शिक्षा दी जा सकती है। अन्तः चेतना सोते समय भी जागृत रहती है और उस स्थिति में यदि क्रमबद्ध सुनियोजित शिक्षा दी जाय तो न केवल जानकारियाँ बढ़ सकती हैं, वरन् आदतें भी सुधारी जा सकती हैं।

क्या सोते हुए मनुष्य को आवश्यक शिक्षा देकर प्रशिक्षित किया जा सकता है? यह मनोवैज्ञानिक प्रयोग कैरोलिना विश्वविद्यालय में बहुत दिन चला और सन्तोषजनक सीमा तक सफल रहा। छोटे विद्यार्थियों के एक दल को उनके गहरी निद्रा में सो जाने पर तीन अक्षरों के पन्द्रह शब्द रिकार्ड बजाकर तीस बार सुनाये गये। दूसरे छात्र दल को ऐसा कुछ नहीं सुनाया गया। परीक्षा लेने पर उन बच्चों ने उन शब्दों को बहुत जल्दी याद कर लिया जो उन्होंने अविज्ञात रूप से गहरी निद्रा में सुने थे। इसके विपरीत जिन्होंने वह रिकार्ड नहीं सुना था, उन्हें वे शब्द काफी समय और श्रम करने के बाद ही याद हो सके।

उसी प्रयोग-परीक्षण के अंतर्गत छोटी कक्षाओं के कुछ ऐसे छात्र लिये गये, जिन्हें दाँतों से नाखून काटते रहने की आदत थी। वे जब गहरी नींद में सो गये तो कई रातों तक एक रिकार्ड सुनाया जाता रहा, जिसमें कहा गया था कि -’मेरे नाखूनों का स्वाद कडुआ है।” कुल मिलाकर यह वाक्य 600 बार सुनाया गया। परिणाम यह हुआ कि उन 20 में से 6 ने स्वतः ही नाखून चबाना छोड़ दिया और शेष की आदत नाममात्र की रह गई।

मांट्रियल स्थित मेकगिल विश्वविद्यालय में डा. विक्टर पेन फील्ड के निर्देशन में मस्तिष्कीय अनुसंधान में ऐसे बहुत से केन्द्रों का पता लगा लिया गया है, जहाँ से अमुक प्रवृत्तियों का संचालन एवं नियन्त्रण होता है। बहुत ही हलका बिजली का प्रवाह पहुँचा कर सोते हुए लोगों को तरह-तरह के स्वप्न दिखाये गये। एक स्थान का विद्युत स्पर्श तार टूटने जैसे दृश्य दिखाना था तो दूसरे स्थान का स्पर्श कानों को घण्टी बजने जैसी अनुभूति देता था। एक व्यक्ति ने बैंड-बाजा बजता सुना तो दूसरे ने पियानो पर हर किसी को संगीत बजने का सपना जरूर दिखाई दिया, हालाँकि बजाने वालों की आकृतियाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की दिखाई दीं। एक ने तार टूटते देखा तो दूसरे ने बल्बों की जगमगाहट देखी। पर प्रकाश और चमक के अनुभव सभी को आये। ऐसे ही अनेक प्रयोगों के आधार पर विभिन्न शक्तियों के मूल केन्द्रों का पता लगाना बहुत हद तक संभव हो गया है और स्विच दबाकर उस स्थान को कार्य संलग्न करने में सफलता मिल गई है।

बालकों और वयस्कों को अर्थकारी विद्या की पढ़ाई पर जितना ध्यान है, उतना ही यदि अन्तःचेतना में सुसंस्कार स्थापित करने की चेष्टा की जाय तो जन-मानस सहज ही कल्याणकारी सत्प्रवृत्तियों का जागरण एवं अभिवर्धन किया जा सकता है।


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