प्रेम के टाँके :-
सन्त-महात्माओं को उनके शिष्य तथा अनुयायी समय-समय पर मूल्यवान् वस्तुएँ भेंट में देते रहते है। और महात्मा उन वस्तुओं को समाज के व्यक्तियों में वितरित करवा देते हैं। स्वामीनारायण सम्प्रदाय के अनुयायी स्वामी सहजानन्द के चरणों में सूरत निवासी आत्माराम नामक दरजी ने एक सुन्दर अँगरखा भेंट किया। तो उपस्थित भक्तगण उसे देखते ही रह गये।
पास में ही भावनगर के राजा विजयसिंह जी बैठे थे। उन्हें वह अँगरखा बहुत पसन्द आया। वह चाहते थे कि यह अँगरखा कैसे भी प्राप्त हो जाये। उन्होंने दरजी की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की “तुम एक अँगरखा मुझे भी बना दो, सिलाई के सौ रुपये मैं तुम्हें दूँगा।
यह सुनकर दरजी बोला-राजन् अब इस प्रकार का अँगरखा बनाना मेरे बस की बात नहीं है। क्योंकि स्वामी जी के लिए सींया गया अँगरखा पैसों के टाँकों से नहीं सींया गया है वरन् इसमें प्रेम के टाँके लगाये गये है। दूसरा अँगरखा सीने के लिए वैसा प्रेम में कहाँ से लाऊँगा।”