अमैथुनी सृष्टि भी उत्पन्न होती है, हो सकती है

October 1969

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डार्विन और लेम्मार्क आदि ने विकासवाद (थ्योरी आफ एवोल्यूश्न) का जो सिद्धान्त दिया है, यदि वह सत्य नहीं है तो पृथ्वी में मानव की उत्पत्ति को आकस्मिक और ईश्वरीय इच्छा का प्रतिफल ही कहना होगा। ईश्वरीय सत्ता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को काल्पनिक कहने वाले लोग तब यह तर्क प्रस्तुत करते है कि यदि मनुष्य का प्रादुर्भाव आकस्मिक संयोग है और सबसे प्रथम ब्रह्म का पुरुष वेष में जन्म हुआ तो उनके द्वारा सन्तानोत्पत्ति कैसे सम्भव हुई? सन्तान की उत्पत्ति के लिये स्त्री और पुरुष का समायोजन आवश्यक है, फिर अकेले ब्रह्म जी अमैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने में किस प्रकार समर्थ हुए?

अमैथुनी सृष्टि का मातृक पक्ष भी है, जिसमें केवल स्त्रियों द्वारा सन्तान पैदा करने की बात आती है। यह बात केवल भारतीयों में ही प्रचलित नहीं है वरन् प्रायः सभी धर्मों में ऐसे आख्यान मिलते हैं, जिसमें अमैथुनी प्रथा का यह दूसरा रूप अर्थात् बिना पुरुष के संभोग के स्त्री द्वारा सन्तानोत्पत्ति का, विवरण मिलता है। सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों के लिये यह दोनों ही प्रसंग अप्रमाणिक है। इस सम्बन्ध में समुचित जानकारी न होने से ही आज तक अति-मानवता के उत्तर स्तर उत्पन्न ड़ड़ड़ड़ कलंकित हुई है।

भगवान् राम अपने भाइयों सहित पिता के संयोग के बिना जन्मे थे। इतिहास प्रसिद्ध घटना है कि जब दशरथ की आयु ढलने लगी और उन्हें कोई सन्तान नहीं हुई तो उन्होंने गुरु वशिष्ठ के पास जाकर अपना दुःख प्रकट किया। वशिष्ठ ने तब श्रृंगी ऋषि को बुलाकर पुऋयेष्टि यज्ञ कराया। इस यज्ञ में ‘चरु’ में देव शक्तियों का आह्वान कर उसे चारों रानियों को बाँट दिया गया। एक एक भाग मिलने के कारण कौशल्या और कैकेयी को एक एक और दो भाग मिलने के कारण सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। इस घटना ने सिद्ध कर दिया था कि देव-शक्तियों को कृत्रिम गर्भाधान द्वारा मानव आकृतियों में लाया जा सकता है। ऐसे जो भी शरीर पैदा हुए है, शारीरिक ड़ड़ड़ड़ धर्म से वह भले ही मनुष्य जैसे रहे हों पर उनकी अतीन्द्रिय क्षमताएँ बहुत बढ़ी चढ़ी रही है, इसलिये उन्हें देवदूत पैगम्बर और साक्षात भगवान माना जाता रहा। देव उपासना के द्वारा पुरुष और स्त्री शरीरों में ऐसी शक्तियों का आवाहन धारण और प्रजनन आज भी सम्भव है।

मरियम तब कुमारी ही थी, जब उन्होंने महापुरुष ईसा को जन्म दिया। मरियम को ईश्वर भक्ति और उनकी आत्म-पवित्रता सर्वविदित थी, इसलिए तब उन पर किसी के दुराचरण का दोषारोपण नहीं किया। पीछे जिन लोगों ने सन्देह किया वह उनकी अपनी भ्रान्त धारणायें थी। महापुरुष ईसा में जो विशेषताएँ थी, वह बताती थी कि इस आत्मा का प्रादुर्भाव वंशगत नहीं वरन ब्रह्माण्ड की किन्हीं अदृश्य शक्तियों से है। तभी तो वे हर किसी के मन की बात जान सकते थे एक रोटी से, सैकड़ों आदमियों की भूख मिटा सकते थे, किसी भी रोगी को केवल स्पर्श और आशीर्वाद से अच्छा कर सकते थे। विज्ञान ने अमैथुनी सृष्टि की पुष्टि कर दी है, एक दिन वह भी आयेगा, जब चमत्कार जैसी लगने वाली महापुरुषों की यह बातें भी विज्ञान ऐसे सत्य सिद्ध कर देगा जैसे किसी छोटी सी डाल के पत्ते गिनकर बता देना।

कर्ण का जन्म कुन्ती के उदर से हुआ था। कुन्ती एक दिन गायत्री मन्त्र का जप कर रही थी। महाभारत में कथा आती है कि वे उस दिन अत्यधिक ध्यानावस्थित थीं। उन्हें लगा जैसे भगवान सूर्यदेव उनके पास है, उन्हें स्वीकार कर रहे है, उनका तेज उनके गर्भ में प्रविष्ट हुआ और वे सचमुच गर्भवती हो गई। कर्ण सूर्य के समान तेजस्वी और अप्रतिम दानी थे। वह क्षमता महाभारत के और किसी योद्धा में नहीं थी।

पाण्डु ने एक बार जंगल में एक ऐसे मृग के जोड़ें का वध कर दिया था, जो उस समय काम-क्रीड़ा कर रहें थे। पाण्डु को मृगों ने शाप दिया-तुम्हारी मृत्यु भी ऐसे ही होगी” और इसके बाद की घटना है कि उनकी दोनों रानियों कुन्ती और माद्री ने देव-शक्तियों के आवाहन द्वारा अमैथुन पुत्रों को जन्म दिया। यम के पुत्र युधिष्ठिर साक्षात् धर्मावतार थे। इन्द्र के पुत्र अर्जुन के शौर्य और पराक्रम का कोई और जोड़ीदार नहीं था। भीम मरुत पुत्र थे, उनमें वायु से भी प्रचण्ड बल विद्यमान् था, नकुल सोम के अंश से जन्मे होने के कारण ज्योतिर्विद्या के अद्वितीय पण्डित थे। एक मात्र सहदेव ही ऐसे थे, जो सहवास से पैदा हुए थे और वही ऐसे थे, जिनमें अन्य भाइयों की अपेक्षा साँसारिकता का भाव और कामनायें अधिक थी। हम देवशक्तियों के सम्पर्क में आकर आत्म तेज विकसित करते है, उसका प्रभाव पीढ़ी दर पीढ़ी चलता हुआ चला जाता है। यह बात हमें इन उदाहरणों से देखने को मिलती है। भारतीय अपने आपको देव-शक्तियों का अंश ऋषि पुत्र आदि मानते है उनके ज्ञान, गुण, सौंदर्य आदि को समता पाश्चात्य जगत नहीं कर सकता।

कौरव भ्रूण सन्तान थे। अंजनी पुत्र हनुमान पितृहीन सन्तान थे। महापुरुष रामकृष्ण परमहंस का जन्म पिता के संयोग के बिना ही हुआ और उससे यह सिद्ध हो गया कि संसार में ऐसे तथ्य विद्यमान् है, जो गुण और स्वभाव से मानव प्रकृति के होकर भी ज्ञान, शक्ति और गुणों की दृष्टि से बहुत विकसित होते है, उनसे अतीन्द्रिय सम्पर्क स्थापित कर कोई भी स्त्री या पुरुष अपने आपमें उन दैवी प्रतिभाओं को विकसित कर सकता है।

प्रमाण और वैज्ञानिक व्याख्याएँ इस तथ्य का समर्थन ही करती हैं। बच्चे का जन्म, स्त्री के अण्ड (ओवम) और पुरुष के शुक्राणु (र्स्पम) के मिलने से होता है। अभी तक लोगों को पता था कि अण्ड और शुक्राणु की भेंट केवल सम्भोग से ही सम्भव है, किन्तु डा० स्टीवर्ड ने गाजर पर कई तरह के प्रयोग करके यह सिद्ध कर दिया है कि प्रत्येक कोशिका (सेल) में जीव-निर्माण की क्षमताएँ विद्यमान् रहती है। इसलिये केवल अण्ड (आवम) से ही सन्तान का जन्म सम्भव है, यह मान बैठना उचित नहीं। इस दिशा में विज्ञान की शोध अब काफी आगे तक बढ़ चुकी है।

1899 में डा० जैम्बीस लौब ने एक प्रयोग किया। उन्होंने समुद्र में पाये जाने वाले ‘अर्चिन’ नामक जन्तु की मादा के अण्ड को मैग्नीशियम क्लोराइड से उद्दीप्त किया, उससे अण्ड में गर्भाधान (फरटलाइजेशन) बिना किसी शुक्राणु की सहायता से हो गया। इस घटना से वैज्ञानिक जगत् में तीव्र प्रतिक्रिया हुई और कृत्रिम गर्भाधान की खोज के लिए वैज्ञानिकों में सर्वत्र होड़ मच गई।

स्त्री के अण्ड (ओवम) में गर्भाधान के लिये यह आवश्यक है कि 24 गुणसूत्र (क्रोमोसोम्स) स्त्री के और 24 गुणसूत्र पुरुष के मिलना आवश्यक है। पुरुषे मिलना आवश्यक है पुरुष के गुणसूत्रों में एक विशेषता यह होती है कि एक ग्रुप में 24 गुणसूत्र समान होते है। किन्तु दूसरे ग्रुप में 23 गुणसूत्र समान धर्म वाले होते है और एक गुणसूत्र ऐसा होता है, जो शेष 47 से किसी प्रकार भी नहीं मिलता। यह एक गुणसूत्र ही पुरुष के जन्म का कारण है, यदि स्त्री और पुरुष के वह ग्रुप मिलें, जिनमें 24 गुणसूत्र समान (इन्हें अंग्रेजी में एक्स एक्स क्रोमोसोम कहते है) होते है तो कन्या जन्म लेगी, किन्तु यदि स्त्री के 24 गुणसूत्रों से पुरुष के गुणसूत्रों का वह ग्रुप मिले, जिसमें एक गुणसूत्र भिन्न प्रकृति का होता है (इसे बाँई क्रोमोज़ोम कहते है) तो सन्तान पुत्र होगा। अर्चिन के मामने में शुक्राणु का कार्य मैग्नीशियम द्वारा सम्पन्न होना यह बताता है कि अन्तरिक्षीय शक्तियों के माध्यम से गर्भ में पितृहीन सन्तानों को स्थापित किया जा सकता है। इस बा डा० यूजीन बटाइलोन में मेढ़क के अण्ड में पिन चुभोकर निषेचन की क्रिया के लिये प्रयास किया और इसमें उन्हें सफलता भी मिल गई। निषेचन का अर्थ है, गुणसूत्रों की संख्या दुगुनी हो जाना। यदि गुणसूत्रों की संख्या दुगुनी हो जाती है तो बिना पिता की सहायता से अण्ड में सन्तान रह सकती है। इस प्रयोग में ऐसा ही हुआ, पिन चुभाने से मेढ़क का निषेचन हो गया और उसको इस कृत्रिम गर्भाधान से ही सन्तान हो गई। यह प्रयोग खरगोशों पर भी सफल हुये। 15 जुलाई 1967 को, लन्दन से प्रकाशित होने वाली ‘टिटबिट्स’ पत्रिका में डा० जिराल्ड मैकनाइट ने यह लिखा है कि ब्रिटेन में इस तरह का क्रमबद्ध प्रयोग चल रहा है। 100 स्त्रियों ने अपने आपको कृत्रिम निवेचन के लिये प्रस्तुत किया। जिनमें कम से कम 8 महिलायें ऐसी थीं, जिन्हें बच्चा पैदा करने में किसी प्रकार पुरुष के सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ी। श्रीमती एमोनेरी जोन्स ने ‘मोनिका’ नामक पुत्री को जन्म दिया। वैज्ञानिकों ने जोन्स की पूरी देख-रेख की थी। वे इनके बारे में निर्विवाद थे, मोनिका के रंग-रूप आकृति, प्रकृति में मानवोचित गुण, धर्म एवं प्रकृति में बिलकुल अन्तर नहीं था। वैज्ञानिक अब उन तत्त्वों की खोज में है, जो कृत्रिम गर्भाधान की क्रिया में शुक्राणु (स्पर्म) का स्थान ले सकते है। इन प्रयोगों की सफलता देवाँ या ब्रह्माण्ड स्थित चेतन शक्तियों के रहस्यों की भी उद्घाटन करेगी।

अब एक ही प्रश्न शेष रह जाता है वह है, स्त्री के प्रजनन कोषों में बाई किस्म के गुणसूत्र की विद्यमानता अभी तक स्त्रियों के शरीर में इस गुणसूत्र की उपस्थिति का समर्थन नहीं हो पाया। यदि इतना और हो जाये तो किसी को यह मानने में आपत्ति शेष न रहेगी कि अमैथुनी सृष्टि का सिद्धान्त गलत है।

वैज्ञानिक स्पष्ट रूप से व्याख्या भले ही न कर पाये हों, किन्तु ऐसे प्रमाण मिल चुके है, जिनमें पुरुषों में पर्याप्त मात्रा में स्त्रियोचित गुण और स्त्रियों में पुरुषोचित गुण पाये गये है। अमेरिका में इन दिनों यौन-परिवर्तन सामान्य आपरेशन की श्रेणी में आता जा रहा है। वहाँ के अखबारों में आये दिन किसी लड़की को लड़का और लड़के को लड़की की योनि में बदल जाने के समाचार छपते रहते है। यह आपरेशन उन दशाओं में ही सम्भव है, जब कि यौन परिवर्तन की इच्छा करने वालों में परिवर्तन के लिए उपयुक्त गुण किसी न किसी अंश में पहले से ही विद्यमान् हों। इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है, जिससे पता चलता है कि स्त्रियों में पुरुषों के और पुरुषों में स्त्रियों के तत्त्व भी होते है और यह तभी सम्भव है जब कि उनके वंश को निर्धारित करने वाले गुणसूत्रों में भी यह विशेषताएँ विद्यमान् हों। यदि यह सच है तो यह मानने में किसी को कोई आपत्ति ने होगी कि प्रकृति के प्रत्येक कण में पुरुष और स्त्री दोनों स्वभाव सनातन है, इसी को प्रकृति और परमेश्वर की-गिरा अरथ जल-बीच सम” अभिन्नता कहते है। मैड्रिक (स्पेन) में मेडिकल फैकल्टीके एक सर्वेक्षण में डा० जान केस्लर नामक एक डा० का बयान छपा है डा० केस्लर ने बताया कि लोजानो नामक व्यक्ति की स्त्री की दो जुड़वा सन्तानें हुई। एक बालक था, एक बालिका माँ के स्तनों में उतना दूध नहीं होता था, जितने से बच्चों की भूख मिट जाती। इस कारण बच्चे दिन भर रोया करते थे। संयोग से लोजानो के स्तन सामान्य पुरुषों के स्तनों से कुछ बड़े थे, सो वह बच्चों को बहलाने के लिये उन्हें अपने स्तनों में लगा लेता। बच्चे दूध पीने लगते, धीरे धीरे लोजानो के स्तनों से दूध निकलने लगा। दूध इतना निकलने लगा कि उसने अपने बच्चे को 5 माह तक दूध पिलाया, पिता का दूध पी पीकर बच्चा खूब स्वस्थ हो गया।

नीमेस के डा० रेवाल ने एक 15 वर्षीय बालक का परिचय छापा था, जिसके दोनों स्तन बालिकाओं की तरह के थे, कुछ दिन में उनसे इतना दूध निकलने लगा कि उसे शर्म से स्तनों में रुई बाँधे रहना पड़ता था।

जनवरी 1924 के एक अमेरिकन समाचार पत्र में जबोटा जियोबिच नाम के 22 वर्षीय सर्वियन युवक का समाचार छपा है और उसमें आश्चर्यपूर्वक स्वीकार किया गया है कि बेलग्रेड के अस्पताल में उसके पेट का आपरेशन करके 10 और 5 इंच लम्बे दे भ्रूण निकाले। इन भ्रूणों के गर्दन, छाती, हाथ, पाँव काफी पुष्ट हो चुके थे।

यह घटनायें पुरुषों की है और यह प्रमाणित करती है कि पुरुषों में स्त्रियोचित संस्कार होना असम्भव नहीं है। भले ही वे प्रसुप्त अवस्था में हों पर यदि वे विकसित किये जा सकें तो मनुष्य स्वयं भी अपने शरीर में अमैथुनी सृष्टि पैदा कर सकता है।

यही बात स्त्रियों के सम्बन्ध में भी है। उनमें अनेक बार पुरुषोचित गुण स्पष्ट रूप से देखने में आते है, यह तभी सम्भव हो सकता है, जब पुरुषों के गुण धर्म वाले सूत्र उनके शरीर में पहले से ही विद्यमान् हों।

अमेरिका की श्रीमती टेलर जैसे वृद्ध होती गई, उनकी दाढ़ी मूँछें काफी बड़ी निकल आई। इनकी दाढ़ी के बाल स्तनों के नीचे तक पहुँच गये थे। 1732 में ड्रेसडेन में रोजिने मार्गरेट मुलर का निधन हुआ। उनके निधन का समाचार छापते हुये डा० गाल्ड और डा० पाइले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एनामलीज एण्ड क्युरियासिटीज आव मेडिसन’ में लिखा है कि श्रीमती मार्गरेट मुलर के खूब घनी और लम्बी-लम्बी दाढ़ी-मूँछें थी।

नील्स होपर ने अपनी पुस्तक पुरुष-स्त्री (मैन इनटू अमैन) में लिखा है कि ड्रेसडन (जर्मनी) के शल्य चिकित्सक डा० वार्नेक्रुत्सने ने ईनर वेलनर नामक एक चित्रकार की शल्य-चिकित्सा की और उसे मनुष्य से स्त्री बना दिया। इसके जीवन का मनोरंजक वृत्तान्त भी इसमें छपा है। 18 अप्रैल 1943 के ‘हिन्दुस्तान स्टैर्ण्डड’ (जो कलकत्ता से छपता है) में जोरहाट के पास चारबाल गाँव के केवट की 17 वर्षीया सईदा खातून के पुरुष बन जाने का समाचार छापा है।

ऐसे समाचारों की हमारे पास इतनी अधिक जानकारी है, जिनसे एक स्वतन्त्र पुस्तक ही लिखी जा सकती हैं। यह समाचार, यह घटनायें, यह प्रमाणित करती हैं कि पुरुषों में स्त्रियोचित और स्त्रियों में पुरुषोचित गुणों की विद्यमानता प्रकृति का विलक्षण रहस्य है और उससे अमैथुनी सृष्टि का सिद्धान्त सत्य प्रमाणित होता है। प्रमाण और विज्ञान दोनों ही उसकी पुष्टि करते हैं। क्रमशः;


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