भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता
भारतीय संस्कृति पर लेख लिखने के लिए गाँधी जी ने कलम उठाई। उन्होंने प्रािम वाक्य लिख-भारत की संस्कृति से तुलना करने वाली विश्व की कोई भी संस्कृति नहीं है।” पहला वाक्य पूरा लिख पाये थे कि कलम रुक गई। अभी तो बहुत कुछ लिखना शेष था। अब बार-बार उस वाक्य पर ही उनकी दृष्टि जाने लगी। वे स्तब्ध हो गये। और आगे कुछ लिखने के स्थान पर उनके नेत्रों से आँसुओं की धारा बहने लगी।
गाँधी जी से उनकी आत्मा ने पूछा-तुम तो सत्याग्रही हो, फिर क्या सोचकर अपनी संस्कृति की इतनी प्रशंसा करने लगे। क्या तुम्हें ध्यान नहीं कि देश के लाखों अस्पृश्य नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे है। इनसे अच्छी स्थिति तो पशु-पक्षियों की है। फिर यह तुमने कैसे लिख दिया कि इस संस्कृति की समानता विश्व की अन्य कोई संस्कृति नहीं कर सकती।” और बाद को भारतीय संस्कृति की महिमा पर लेख लिखने का विचार ही छोड़ दिया।