नेआखाली में हिन्दू-मुस्लिम दंगे के शिकार एक चौधरी परिवार के मकान में जब गाँधी जी गये तो उन्होंने एक आदर्शजनक भयानक दृश्य देखा। इस विशाल मकान के बड़े आँगन में तीन नरकंकाल पड़े हुये थे। चारों तरफ हड्डियाँ बिखरी हुई थीं। एक काला कुत्ता इन हड्डियों के दिन से कुछ नहीं खाया। वह पागल जैसा मालूम हो रहा था। सब उसको देखकर डर गये। गाँधी जी को देखते ही वह उनके पास धीरे-धीरे आया। उस कुत्ते को इस मकान के लोग और गाँव वाले कालू कहकर पुकारते थे। जब कालू गाँधी जी के पास आया तो सब डर गये कि वह कहीं काट न ले।
किन्तु गाँधी जी बिलकुल विचलित न थे। कालू को अपनी ओर आते देखकर वे रुक गये। कालू उनके पैरों के पास माथा टेककर रो उठा। कुछ लोग उसको मार कर भगाने की चेष्टा करने लगे। किन्तु गाँधी जी ने उनको ऐसा करने से रोक दिया। उन्होंने कालू के मस्तक पर हाथ लगाया और पुचकार कर कहा-कोई डरो मत कुत्ता है तो क्या यह भी तो आत्मा है, हमारी, आपकी तरह इसमें भी समझ है।
कालू जिस परिवार के साथ उस परिवार के आठ व्यक्ति नोआखली के दंगों में इसी मकान में मारे गये थे। कालू शायद गाँधी जी को इस भयंकर नर-हत्या काण्ड की घटनायें दिखाने के लिये हो प्रतीक्षा कर रहा था।
कालू गाँधी जी को मार्ग दिखता चलने लगा। गाँधी जी धीरे-धीरे उसके पीछे चलने लगे। उस विशाल मकान के एक-एक कमरे में कालू उनको ले जाता और चिल्लाकर रोता है, फिर मकान के बाहर बगीचे में वह गाँधी जी को ले गया। एक जगह वह रुक गया और अपने नाखून से मिट्टी खोदने लगा। उसकी इसे हरकत से ऐसा प्रतीत हुआ कि वहाँ छिपा हुआ है। वहाँ खोदने पर मकान के मालिक और चौधरी परिवार के मुखिया का मृत देह वहाँ से निकाला गया।
यह घटना हृदय-विदारक थी। उस विशाल मकान में जहाँ एक परिवार में 80 लोग रहते थे, आज केवल कालू ही अकेला बचा था। गुण्डों द्वारा बनाये गये इस श्मशान में कालू की कहानी चिरस्मरणीय रहेगी लोगों को यह प्रेरणा देती रहेगी कि मानवेत्तर जीवों में भी बुद्धि, विवेक, ज्ञान और संवेदनशीलता होती है। वह भी आत्मा हैं, यह समझकर किसी भी जीव की हिंसा न करें।