चन्द्रमा ने डाँट कर कहा-सिंधुराज तुम्हें सारा जल अपने उदर में समेटते लाज नहीं आई। सारी नदियों का जल पीकर भी तुम्हें सन्तोष नहीं।
समुद्र ने गम्भीर होकर कहा-ऐसा न कहें देव! यदि अनावश्यको से लेकर संसार में जल-वृष्टि का उत्तरदायित्व पूरा न करें तो सृष्टि कैसे चले। शशि को अपने कथन पर बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने सिर झुका लिया।