कर्तव्य परायणता-मानव-जीवन की आधार शिला

October 1969

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(पू० श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित और युग-निर्माण योजना मथुरा द्वारा प्रकाशित

‘जो करें मन लगाकर करें पुस्तिका का एक अंश)

आकाश में अधर में लटके हुए ग्रह-नक्षत्र एक दूसरे को आकर्षण शक्ति के बल पर ड़ड़ड़ड़ हुए टंगे रहे हैं। यदि यह आकर्षण शिथिल हो जाय तो अन्तरिक्ष के शोभायमान यह सितारे अपनी कक्षा से च्युत होकर किसी दूसरे ग्रह से जा टकरायें या अनन्त आकाश की किसी दिशा में डूबकर विलीन हो जायें। इन्हें अतीत काल से यथास्थान स्थिर रखने वाला और अपनी निर्धारित क्रिया प्रणाली से नियोजित किये रहने वाली शक्ति एक ही हैं। ग्रहों की ‘पारस्परिक आकर्षण क्षमता’। इसके बिना किसी नक्षत्र का अस्तित्व एवं क्रिया-कलाप एक क्षण भी स्थिर नहीं रह सकता।

मनुष्य जीवन की स्थिरता एवं प्रगति का अस्तित्व एवं आधार शिला है, उसकी कर्तव्य परायणता। यदि हम अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ दें और निर्धारित कर्तव्यों की उपेक्षा करे तो फिर ऐसा गतिरोध हो जाय कि प्रगति एवं उपलब्धियों की बात तो दूर मनुष्य की तरह जीवन यापन कर सकना भी सम्भव न रहें।,

जीवन की हर विभूति, कर्तव्य परायणता पर निर्भर है। हर ड़ड़ड़ड की स्थिरता एवं सुरक्षा, कर्तव्य-निष्ठा पर ही निर्भर है। हमें बहुमूल्य शरीर मिला है। उसे निरोग, परिपुष्ट एवं दीर्घजीवी तभी बनाया जा सकता है, जब शौच, स्नान, स्वच्छता, कठोर श्रम, समय का पालन, ड़ड़ड़ड़ की सुव्यवस्था, इन्द्रिय संयम, विश्वास आदि की जिम्मेदारियों को ठीक तरह निभाया जाय। मन की प्रखरता एवं समर्थता इस बात पर निर्भर है कि चिन्ता, शोक, निराशा, भय क्रोध, आवेश आदि से उसे बचाये रखने और उत्साह, उल्लास, धैर्य, साहस, सन्तोष, विश्वास, संतुलन, स्थिरता, एकाग्रता जैसे सद्गुणों से सुसज्जित रखा जाय। यदि मन को ऐसे ही जंगली घास-फूस और झाड़-झंखाड़ की तरह चाहे जिस दिशा में बढ़ने दिया जाय तो वह आप ही अपने लिए सबसे बड़ा शत्रु सिद्ध होगा। मन को साधने और सुसंस्कृत बनाने की जिम्मेदारी उस प्रत्येक व्यक्ति की है, जिसे मानसिक क्षमता का वरदान मिला है।

परिवार से जीवन में बहुत सुविधा और सुव्यवस्था रहती है। पर वे उपलब्धियाँ केवल उन्हीं को प्राप्त होती है, जो परिवार के हर सदस्य के साथ के साथ अपनी जिम्मेदारियों की पूरी तत्परता, सावधानी और ईमानदारी के साथ निबाहते है। स्ऋाी केवल सेवा के लिए ही नहीं मिली है। उसके विकास, सुविधा, सन्तोष एवं स्वास्थ्य की हर आवश्यकता को पूरा करना भी कर्तव्य है। गाय उसी की दूध देगी, जो भर पेट चारा खिलायेगा। दाम्पत्य-जीवन का आनन्द उसे मिलेगा, जो अपना परिपूर्ण कर्तव्य पालन करते हुए उसके हृदय जीत लेगा। बच्चे उसी के सुसंस्कृत और सुविकसित होंगे, जो उन्हें प्यार, समय और सहयोग देकर विकासोन्मुख एवं सुसंस्कृत बनाने को निरन्तर तत्पर रहेगा। माता-पिता एवं गुरुजनों का वात्सल्य एवं आशीर्वाद उसे मिलेगा, जो उनकी सुविधा तथा इज्जत में कमी न आने देने का शक्ति भर प्रयत्न करेगा। भाई और बहिनों का अनन्य श्रेय और सहकार पाने की आशा उन्हें ही करनी चाहिये, जो उनके लिए जान देता और भरपूर प्यार करता है। परिवार का आनन्द केवल कर्तव्य परायण ही करनी चाहिये, जो उनके लिए जान देता और भरपूर प्यार करता है। परिवार का आनन्द केवल कर्तव्य परायण ही लेते है। इसके विपरीत जिन्होंने सुविधायें पाने का अधिकार तो जाना, पर कर्तव्य परायण ही लेते हैं। इसके विपरीत जिन्होंने सुविधायें और भरपूर प्यार करता है। परिवार का आनन्द केवल कर्तव्य पालन की शर्त भूल गये, उनके लिए घर और नरक में कोई अन्तर न रहेगा। मनोमालिन्य और कलह से घर का वातावरण विषाक्त बना रहेगा। न पत्नी जीवन-संगिनी बनकर रहेगी, न बच्चे आज्ञानुवर्ती होंगे। माता-पिता का असन्तोष और भाई-बहिनों का ड़ड़ड़ड़ धरमें मरघट बनाये रहेंगे। परिवार स्वर्ग उनके लिए है, जो पग-पग पर जिम्मेदारियाँ निबाहने में साथियों की कमियाँ सहन करने में तत्पर हैं। नरक उनके लिए है, जो घर वालों से बड़ी-बड़ी आशाएँ रखते हैं, पर अपनी जिम्मेदारियों की ओर से आँख मूँद कर बैठे है।

धन सबको अच्छा लगता है, उसे पाना और बढ़ाना सभी चाहते हैं पर कठोर श्रम, सतर्क जागरूकता, क्रमबद्ध सुव्यवस्था, हिसाब की स्वच्छता और मिलनसारी, ईमानदारी के गुण जिनमें हैं, उचित रीति से स्थिर सम्पदा वे ही कमा सकते है। उपार्जन-पुरुषार्थ और प्रतिभा पर निर्भर हैं। इन दोनों गुणों को बढ़ाते रहने की जिम्मेदारी जिससे समझी और उसके लिए सतत प्रयत्न किया, वह सम्पन्नता का अधिकारी बना। जिसने मितव्ययिता, बजट, हिसाब, घूर्ता से सतर्कता, सुरक्षा की सामर्थ्य, सदुपयोग की योजना बनाकर पैसा खर्च किया, वह यशस्वी हुआ और कमाने की तरह खर्च का आनन्द लेने का सौभाग्य भी प्राप्त किया। धन आकाश से नहीं बरसता और न जमीन में से निकलता हैं चोरी, चाण्डाली से जो धन आता है, वह हाथ-पाँव जलाकर बारूद की तरह ‘मक्क’ से जड़ जाता है। उससे किसी को न शान्ति मिलती है, न आनन्द आता है। सम्पदा और समृद्धि के उपार्जन एवं उपयोग के साथ उनके उत्तरदायित्व जुड़े हुए है, जो उन्हें निबाहना जानता है, उसी को सार्थक का लाभ मिलता है।

गैर जिम्मेदार, लापरवाह और अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने वाले अपना और सम्बन्धित व्यक्तियों का केवल अहित ही करते है। कर्मचारी जो निरन्तर अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा किया करता है, मालिक के लिए केवल घाटा ही दे सकता है और दुत्कार का भाजन ही बन सकता है। चोर और चालक होते हुए भी तत्पर व्यक्ति लाभदायक रहता है, किन्तु ईमानदार और भला आदमी होते हुए भी लापरवाही और गैर जिम्मेदारी का व्यवहार करने वाला अधिक हानिकारक सिद्ध होता है। बेईमान नौकर भी मालिक की हानि करते है पर गैर जिम्मेदार तो जहाँ रहेंगे वहाँ का बंटा धार करके रहेंगे।

महत्त्वपूर्ण कार्य सदा उन्हीं के द्वारा सम्पन्न होते है, जो कर्तव्य पालन को प्राणों से भी अधिक प्यार करते हैं सैनिक का सबसे बड़ा पुण्य अनुशासन और अपने महान् उत्तरदायित्व का शानदार ढंग से निर्वाह कर देना ही तो है। सन्त, ब्राह्मण, पुरोहित, नेता ओर प्रवचनकर्ता अपनी जिम्मेदारियों के प्रति निष्ठावान् रहे तो वे मानव जाति का भारी हित साधन कर सकते है।

शासन तन्त्र की गैर जिम्मेदारी ने इस देश की कितनी क्षति पहुँचाई है, उसका लेखा-जोखा लिया जाय तो वह अकाल, बाढ़, भूकम्प एवं दैवी प्रकोप से उत्पन्न होने वाली समस्त क्षति की अपेक्षा कई गुना संकट उत्पन्न करने वाला सिद्ध होगा। लाल फीता शाही, रिश्वत, कामचोरी, बेगार भुगतने और टालने की वृत्ति आदि दोषों ने शासन तंत्र को लुँज-पुँज करके रख दिया है। इस गैर जिम्मेदारी ने अराजकता से भी बढ़कर क्षति पहुँचाई हैं यदि हमारे शासकीय कार्यकर्ता अपने-अपने कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी ओर जिम्मेदारी से पालन करें तो देश का कायाकल्प होने में देर न लगे।

समाज के सदस्य-राष्ट्र का एक नागरिक होना भी मानवीय उत्तरदायित्वों से लदा हुआ है। अपनी सुविधा उसी सीमा तक चाहे जिससे दूसरों की सुविधा में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो यह हर किसी की नैतिक जिम्मेदारी है। सड़कों पर केले और नारंगी के छिलके फेंक कर हम दूसरों को फिसल कर गिरने की कठिनाई उत्पन्न करते हैं बाई ओर रहने की अपेक्षा सारी सड़क को घेर कर चलना, सड़ ओर गलियों पर यों ही घर का कूड़ा फेंक देना, बच्चों का नालियों पर टट्टी करना, बहुत रात गये तक लाउडस्पीकर चलाना, सार्वजनिक स्थानों को घेर कर बैठ जाना या गन्दा करना, नियत समय पर वचन का पालन न करना आदि ऐसी बातें है, जो देखने में छोटी लगती है पर इन्हीं के पारस्परिक सद्व्यवहारों में भारी क्षति पहुँचती है। सभ्य समाज का हर नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को समझता है और नैतिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहकर अपनी और अपने देश की प्रतिष्ठा बढ़ाता है।

अपने समाज के प्रति, हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। हम समाज के एक सदस्य है। समाज का वातावरण हमें अतिशय प्रभावित करता है। वैयक्तिक और सामूहिक प्रगति का द्वार तभी खुलता है, जब लोग अपने शरीर और परिवार की तरह सामाजिक सुव्यवस्था और उत्कर्ष का समुचित ध्यान रखें और उसके लिए कष्ट सहने और त्याग करने को तैयार रहें। सामूहिक उत्कर्ष में जो जितनी रुचि लेता है और लोक-मंगल के लिए जो जितना त्याग एवं सहयोग प्रस्तुत करता है, वह उतना ही बड़ा महामानव गिना जाता है।

आत्मा के प्रति हमारी जिम्मेदारी है। ईश्वर के प्रति भी। उन्हीं के कारण हमारा अस्तित्व है। आवश्यक है हम आत्मा की आवाज सुनें ओर परमात्मा द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करते हुए मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए प्रयत्नशील रहे।


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