सारे कार्य पूर्ण हो चुके थे
सागर के तट पर खड़े होकर मनुष्य ने आवाज दी—”ऐ सागर के अन्तराल में निवास करने वाले ज्वार! आओ और मेरे अस्तित्व को समेट कर इस अनन्त सागर में मिला दो।
ज्वार ने उठकर मनुष्य को देखा और चुपचाप फिर सिन्धु-हृदय में शान्त हो गया। मनुष्य ने देखा और निराश होकर वापस चला आया।
कुछ समय बाद मनुष्य सागर-तट पर फिर गया और आवाज दी। ज्वार उठा और उसके चरण पखार कर वापस चला गया। मनुष्य फिर निराश होकर वापस चला आया।
कुछ समय बाद मनुष्य पुनः सागर के तट पर गया और चुपचाप किनारे बैठ गया। न उसने ज्वार को आवाज दी और न कोई इच्छा प्रकट की।
ज्वार ने देखा और बड़े वेग से उसे समेटने के लिये बढ़ा, किन्तु सागर के अंतर्तम से उठी सुन्दर स्निग्ध लहरों ने उसे रोक दिया और स्वयं मंथर गति से आकर नाचती और गाती हुई उस मौन मानव को अपनी गोद में उठाकर ले गई।
मनुष्य का सारा प्रयोजन पूर्ण हो गया।