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January 1966

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अद्यैव कुरु यच्छ्रेयो वृद्धः सन्किं करिष्यसि। स्वागात्नाण्यपि भाराय भवन्ति हि विषर्यये॥

जो अपने कल्याण की बात है उसे आज ही कर। वृद्ध होकर क्या करेगा? क्योंकि वृद्धावस्था में अपने शरीर भी भारभूत हो जाते हैं।

धनमस्तीति वाणिज्यं किञ्चिदस्तीति कर्षणम्। सेवा न किंचिदस्तीति भिक्षा नैव च नैव च॥

धन होने पर वाणिज्य करना चाहिए। थोड़ा धन हो तो कृषि करनी चाहिए। कुछ भी धन न होने पर सेवा करनी चाहिए। भिक्षा तो कभी भी न करनी चाहिए।


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