भूख न लगने की शिकायत

January 1966

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मनुष्य स्वस्थ है यह उसकी गतिविधियों को देखकर जाना जा सकता है। यह आवश्यक नहीं कि चिकित्सक प्रमाणित करें तभी यह माना जाय कि अमुक व्यक्ति का स्वास्थ्य चंगा है। कुछ सामान्य नियम हैं जिनके व्यवहृत होने से स्वस्थ होने, न होने का सहज अनुमान किया जा सकता है।

आपको काम करते समय आलस्य और जम्हाई नहीं आती तो समझिये आपका स्वास्थ्य सही है। उल्लास, उत्साह और काम करने की रुचि निरोग आदमी में ही हो सकती है। गिरे हुए शरीर वाला रुक-रुक कर भिंचभिंच कर अरुचिपूर्वक काम की बेगार उठायेगा। इसी प्रकार यदि प्रगाढ़ निद्रा आ जाती है और दुःस्वप्न नहीं आते तो भी यह समझना चाहिए कि स्वास्थ्य ठीक है और शरीर के प्रति कोई चिन्ता करने की जरूरत नहीं है।

तीसरा महत्वपूर्ण नियम यह है कि आपको भूख भी खुलकर लगनी चाहिए। यदि आपको भूख न लगने की शिकायत रहती है तो यह समझना चाहिए कि आपके स्वास्थ्य की दिशा और भविष्य अच्छा नहीं। आजकल यह समस्या बहुसंख्यकों की है। अनेक कारणों से लोगों की स्थिति ऐसी बन गई है कि उन्हें ऐसी तीव्र भूख नहीं लगती जैसी सड़क कूटने वाले मजदूरों की होती है। भोजन में तरह-तरह के स्वाद उत्पन्न करने की आवश्यकता इसी कारण उत्पन्न हुई जान पड़ती है अन्यथा भूखे को रोटी चाहिये, स्वाद नहीं। रोटियों में, रूखी सब्जी में ही वह दम होता है जो शरीर को मजबूत और निरोग बनाये रख सके, पर प्रश्न यह है कि आपको मन्दाग्नि की, अपच की, भूख न लगने की शिकायत न होनी चाहिए।

भूख की तीव्रता जितनी अधिक होगी, पाचन-क्रिया भी उतनी ही सशक्त होगी। पाचन-क्रिया ठीक होगी तो रक्त भी पर्याप्त मात्रा में बनेगा और मल का निष्कासन भी सरलता से होगा। रक्त की पर्याप्त मात्रा बनती रहे और पेट में मल न रुके तो फिर शरीर के बीमार होने का कोई कारण नहीं रह जाता। यह सन्तुलन बना रहे इसके लिए आपको तीव्र भूख लगने की ओर ध्यान रखना चाहिए। भोजन से शक्ति और तृप्ति तो मिलती है। मानसिक समाधान तथा सन्तोष भी होता है पर यह सन्तोष और समाधान तभी संभव है जब भूख का डॉक्टर भी आप से सहमत हो, अन्यथा उदरस्थ आहार पेट से बगावत कर देगा और उसकी चिनगारियाँ रोग शोक की दशा में सारे शरीर में फूट पड़ेंगी। शरीर की विकृत अवस्था का संकेत आहार के प्रति अरुचि से हो जाता है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आपको भूख ऐसी लगे कि समय पर भोजन न मिलने पर आप तिलमिला उठें और जो कुछ मिल जाय उसे ही प्रेमपूर्वक खा लें।

कोष्ठबद्धता जो स्वास्थ्य का प्रबल शत्रु है, भोजन की अरुचि का परिणाम है। भूख लगे नहीं, खाना खाते जायें तो पेट में मल की दीवारें चढ़ती जायेंगी और आंतें मल के कारण फूलकर कमजोर हो जायेंगी और शक्ति -उत्पादन क्रिया में शिथिलता आ जायेगी।

आइये विचार करें आपको भूख न लगने की शिकायत कैसे पैदा हुई?

एक बात तो यह है कि असमय भोजन के कारण मन्दाग्नि उत्पन्न होती है। भोजन के उपरान्त पेट के लिए एक निश्चित विश्राम का समय होता है। उतने समय में शक्ति -ग्रहण और मल को मलाधार की ओर धकेल देने की क्रिया आँतें पूरी करती हैं। इसके बाद अगले मोर्चे के लिए उन्हें पर्याप्त विश्राम की भी आवश्यकता होती है। दो क्रियायें करने के बाद पेट आराम करने लगता है पर जो लोग इसमें बाधा उत्पन्न करते हैं और समय के पूर्व आहार लेकर उसे छेड़ते हैं, पेट उनसे रुष्ट हो जाता है। यह नाराजी मन्दाग्नि द्वारा प्रकट होती है और उसका स्वास्थ्य पर तत्काल दूषित प्रभाव पड़ता है।

प्रातःकाल हलका पेय, दोपहर को रोटी-दाल या चावल सब्जी आदि जो रुचि और प्रकृति के अनुकूल पड़े, ग्रहण कर लीजिए। सायंकाल दलिया, दूध, फल या हल्का शाकाहार कर लीजिए। बस, इस नियम को भंग न कीजिए। कभी चाय, कभी बिस्किट, कभी चाट, कभी पकौड़े-यह बुरी आदत है। असमय, बार-बार भोजन करते रहेंगे तो पेट ठीक नहीं रहेगा और आपका स्वास्थ्य भी गिर जायेगा।

भोजन की दिनचर्या भी नियमित होनी चाहिये। ऐसा करने पर पेट का सन्तुलन खराब न होगा। अच्छा तो यह रहे कि जब तक तीव्र भूख नहीं लगती तब तक आप खाइये ही नहीं।

आपके पेट का स्वभाव आप जैसा ही है यह जान लीजिये। सप्ताह में एक दिन रविवार का सरकारी छुट्टी मिलती है। वह आपको न मिले तो आप नाशुख हो जायें। कृपा कर अपने पेट को भी सप्ताह नहीं तो 15 दिन, इतना भी नहीं तो एक माह में एक दिन का अवकाश अवश्य दीजिये।

पेट का अवकाश उपवास है। अभी तक आपने उपवास नहीं किया इसलिये आपको अच्छी भूख नहीं लगती। अब आगे से ऐसा नियम बना लीजिये कि प्रति रविवार, एकादशी या जो दिन उपयुक्त हो उस दिन आप पूरे दिन या एक बार भूखे रहने का अभ्यास किया कीजिये।

पर कहीं ऐसा न करें कि आज एक बार न खाकर पाव-भर अन्न बचाया और दूसरे दिन आज का एक पाव+पिछला एक पाव अर्थात् आधा सेर खाना एक साथ खा लिया। ऐसा करेंगे तो पेट खराब हो जायगा और शेष भूख भी मर-मिट जायेगी।

कहीं आपके आहार में अन्न की मात्रा अधिक और जल की मात्रा कम तो नहीं? पानी आहार से अधिक लिया कीजिये। आहार के एक घण्टे बाद शीतल जल पीने का नियम बड़ा उपयोगी है। इससे पेट साफ रहता है, भूख खुली रहती है।

अपने आहार में गरिष्ठता न बढ़ाइये। मिठाइयाँ, मावे की बनी वस्तुयें कम खाइये। नमक, मिर्च, गुड़, तेल, शकर, खटाई आदि का प्रयोग जितना कम कर सकें अच्छा है। अधिक दूध और घी भी भूख को शिथिल करते हैं। माँस, मद्यपान, बीड़ी, सिगरेट, चाय आदि की गर्मी से भी भूख कमजोर होती है, इनसे जितना बच सकें बचिये। तीखी औषधियों के सेवन से बचना आवश्यक है, यह आपके पेट की क्रिया-शक्ति को नष्ट कर डालती हैं।

आहार लेते समय जलवायु का भी ध्यान रखना चाहिये। गर्मियों के दिन में विचारवान् लोग मोटा आहार कम कर देते हैं और तरल पेय-पदार्थों की मात्रा बढ़ा देते है। यह स्मरण रखिये कि आहार जठराग्नि को मन्द न करे उसी के अनुसार भोजन और पेय की मात्रा ऋतु के अनुकूल कम या अधिक कीजिए।

दो बार खाना खाते हैं तो दो बार शौच भी जाया करें। मल की सड़ती हुई गर्मी भोजन के प्रति अरुचि पैदा करती है। दुबारा भोजन तब करना चाहिए जब पहला शौच हो जाय और आप स्नान कर लें। शौच और स्नान से भूख खुल जाती है।

यह दोनों क्रियायें जल्दबाजी में कभी मत करिये। इनका सम्बन्ध भीतरी और बाहरी सफाई से है। यह सफाई सुव्यवस्थित और पूर्ण हुई तो शरीर निरोग, मन प्रसन्न जठराग्नि प्रदीप्त रहेगी। शौच गन्दे स्थानों में न जाया करें। पाखानों की दुर्गन्ध भी भूख को मारती है। अतः यदि संभव हो तो शौच दूर जंगल की ओर जाना चाहिए।

किन्तु कृपया शक्तियों को अपव्यय भी तो न करें। आहार ठीक किया सही, परिश्रम भी पर्याप्त करते हैं पर यह न भूलें कि ब्रह्मचर्य तोड़ना भी भूख रोकने का बड़ा जबर्दस्त कारण है। अति कामुकता का, भोग का प्रभाव सीधे पेट की क्रियाओं पर पड़ता है। विषयी व्यक्ति का आहार भी ठीक रहना कठिन है। इसलिए इन्द्रिय-सेवन की अधिकता से शक्तियों का तेजी से पतन होता है और एक ऐसी ध्वंसात्मक गर्मी भीतर पैदा होती रहती है जो खून को सुखाती रहती है। इससे उन्हें ठीक भूख लगना बन्द हो जाती है।

यह तीन नियम हैं जिन पर भूख का कम-ज्यादा लगना निर्धारित है। इन्हें ठीक कर लिया जाय तो मन्दाग्नि की शिकायत दूर हो सकती है।

आपका आहार और उससे सम्बन्धित क्रियायें दुरुस्त होनी चाहिए। परिश्रम करने से जी न चुराना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यह बातें आपको मंजूर हों तो विश्वास कीजिए आपकी मन्दाग्नि ठीक हो जायेगी। इनका उल्लंघन करना ही भूख न लगने का कारण है, और इसी से स्वास्थ्य को जबर्दस्त धक्का लगता है।


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