शुद्धि का साधन

January 1963

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कुछ ब्राह्मण गंगा स्नान करने को आये थे। पानी बहुत गहरा था जिससे धार में उतर कर स्नान करने में उन्हें डर लग रहा था। उनके पास कोई पात्र भी नहीं था जिससे पानी ले लेकर वे नहाते। सभी बड़े असमंजस में थे।

उसी तट पर सन्त कबीर दास जी भी स्नान कर रहे थे। उन्होंने अपना लोटा माँजकर एक व्यक्ति को देते हुये कहा-इसे इन लोगों को दे दो, बेचारे स्नान कर लेंगे। इनके पास कोई पात्र भी नहीं है। यह सुन कर सभी ब्राह्मण एक दम चिल्ला उठे- नहीं भाई इस जुलाहे का लोटा लेकर हमें अपवित्र नहीं होना है इसे हमारे पास न लाओ।

“क्यों भाइयो जब यह लोटा भी कई बार मिट्टी लगाकर साफ करने पर इस गंगा जल से पवित्र नहीं हुआ तो दुर्भावनाओं से भरे इस मानव शरीर की पवित्रता कैसे होगी। स्नान से” सभी ब्राह्मण एक दूसरे का मुँह देखने लगे, उत्तर उन्हें कुछ भी न सूझ पड़ा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles