ईश्वर पर विश्वास

January 1963

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उत्तरी अमरीका में नाइग्रा नामक एक प्रपात है। इसमें पानी की एक बहुत चौड़ी धार 160 फीट ऊँचाई से गिरती है। यदि प्रपात के पास कोई खड़ा हो तो जल का कल-कल शब्द बहुत ही भयानक प्रतीत होता है। यदि कोई प्रपात के पानी में गिर पड़े तो जीवित रहने की कोई आशा नहीं हैं।

अभी कुछ वर्षों की बात है एक अमरीकन पहलवान ने यह घोषणा की कि वह एक तार पर चलकर नाइग्रा प्रपात पार करेगा। नाइग्रा प्रपात के एक किनारे से दूसरे किनारे तक एक हवाई जहाज की सहायता से ठीक प्रपात के ऊपर से तार फैलाया गया।

पहलवान ने जो दिन निश्चित किया था उस दिन उसके इस कौशल को देखने को बहुत भीड़ इकट्ठी हुई। ईश्वर का नाम लेकर उसने तार पर चलना प्रारम्भ किया। भीड़ की आँखें उस पहलवान की ओर लगी थीं। वह धीरे-धीरे चलकर उस पार कुशलता से पहुँच गया। ज्यों−ही उस पार पहुँचा भीड़ उसकी प्रशंसा में चिल्ला उठी। बहुतों ने उसको इनाम दिया।

उस समय उसने लाउडस्पीकर पर ईश्वर का धन्यवाद दिया और भीड़ से पूछा, “क्या आपने मुझे तार पर चलकर प्रपात पार करते देखा?” भीड़ ने उत्तर दिया “हाँ।”

उसने दूसरा प्रश्न पूछा, “क्या मैं इस पार से फिर उस पर तक इसी प्रकार पार कर सकता हूँ?” भीड़ ने उत्तर दिया “हाँ।”

उसने तीसरा प्रश्न किया, “क्या आप लोगों में से कोई मेरे कन्धे पर बैठ सकता है, जब मैं इस प्रपात को पार करूं?” इस प्रश्न पर भीड़ में सन्नाटा छा गया। कोई भी उसके कन्धे पर पार करते समय बैठने को तैयार नहीं हुआ। फिर उसने अपने 16 वर्षीय इकलौते बेटे को कन्धे पर बैठने को कहा। पुत्र पिता के कहने पर कन्धे पर बैठ गया। पिता ने धीरे-धीरे तार पर चलना आरम्भ किया। भीड़ की आँखें उनकी ओर लगी हुई थीं। कोई कहता था “अभी दोनों गिरते है-अब मरे इत्यादि।” परन्तु ईश्वर की कृपा से पहलवान अपने पुत्र सहित सरलता से पार हो गया।

भीड़ ने इस बार पहिले से अधिक उसकी प्रशंसा की और बहुत से इनाम दिये। उसने लाउडस्पीकर से ईश्वर की महिमा पर छोटा-सा भाषण दिया। उसने कहा, “आप लोगों में से किसी को मेरी सफलता या योग्यता पर विश्वास न था। इस कारण आप लोगों में से कोई मेरे कन्धे पर बैठने को तैयार नहीं था।


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