स्वामी विवेकानन्द के जीवन की एक घटना है। भ्रमण एवं भाषणों से परिश्राँत स्वामी विवेकानन्द अपने निवास-स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहाँ ठहरे थे। वे अपने ही हाथों भोजन बनाते थे। अपने स्वभाव के अनुसार वे भोजन करने की तैयारी ही कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास में आकर खड़े हो गये। उनके पास बहुत बच्चे आया करते थे।
बच्चे भूखे थे। स्वामी जी ने अपनी सारी रोटियाँ एक-एक करके बच्चों में बाँट दीं। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। बड़ा आश्चर्य हुआ उसे। आखिर पूछ ही बैठी-”आपने सारी रोटियाँ तो उन बच्चों को दे डालीं, अब आप क्या खायेंगे? “
स्वामी जी के अनधरों पर मुस्कान दौड़ गयी। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा-”माता, रोटी तो पेट की ज्वाला शान्त करने वाली वस्तु है। यदि इस पेट में न सही, तो उस पेट में सही।” देने का आनन्द पाने के आनन्द से बड़ा है।