(ले. श्री गिरधर चतुर्वेदी, अलीगढ़)
सुन्दर महिमा जीवन की जो अति पुनीत दिखलाती ।
माया पर उसे सदा ही निज पाश फैंक उलझाती॥
वैभव का लालच देकर भोले मन को तरसाती।
कितने हा दम दिखाकर हम जीवों को फुसलाती ॥
इस माया ने भरमाया तपसी ऋषियों मुनियों को ।
नर नारी नरपतियों को कवियों वीरों गुणियों को॥
कोई भी ऐसा है जो
माया में नहीं फंसा हो?
गिरिधर सौभाग्य उसी का
गिरिधर जिस हृदय बसा हो॥