पूरी साँस

April 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले. श्री नारायणप्रसाद तिवारी ‘उज्जवल’ कन्हीबाड़ा)

हम लोग भोजन के सम्बन्ध में हानि-लाभ की कुछ थोड़ी बहुत बातें जानते हैं, परन्तु वायु जो भोजन से भी अधिक आवश्यक है, उसके सम्बन्ध में बहुत ही कम जानते हैं। स्वास्थ्य रक्षा के लिये प्राण वायु (शफ्ब्द्दद्गठ्ठ) जितनी आवश्यक है, उतनी और कोई वस्तु नहीं। हम लोग सड़े गले भोजन को खाना पसन्द नहीं करते, किन्तु सड़ी और गन्दी वायु से उन्हें कुछ भी परहेज नहीं होता। डॉक्टर रौडस्मंड के मतानुसार प्राण वायु(ओषजन) एक खुराक है, जिसका महत्व खाने पीने की अन्य चीजों की अपेक्षा बहुत अधिक है। वे कहते हैं कि यह बात असत्य है, कि हृदय के द्वारा रक्त का दौरा होता है, वरन् सच बात यह है, कि प्राण वायु रक्त में मिल कर उसे दौरा करने की शक्ति देता है। मनुष्य के शरीर को अपना काम चलाने के लिये जिस शक्ति की जरूरत होती है, वह कहाँ से आती है, इस विषय पर इस युग के धुरन्धर शरीर शास्त्री श्री बरनर मेकफेडन ने जो अनुसंधान किया है, वह जानने के योग्य है, वे लिखते हैं-”हम प्रत्येक श्वाँस के साथ जो वायु खींचते हैं, उसके साथ एक विद्युत शक्ति शरीर में जाती है और विद्युत शक्ति अन्य कोई वस्तु नहीं, ऑक्सीजन वायु का ही परिवर्तित रूप है। जब यह वायु रक्त में मिलती है, तो स्नायु मंडल से ग्रहण कर लेता है ओर स्नायविक केन्द्र में पहुँचा देता है और उसी की शक्ति से शरीर के सारे काम चलते हैं।” भोजन पचाने, बात-चीत करने, चलने फिरने आदि के कार्य इसी शक्ति द्वारा पूरे किये जाते हैं। बहुत से लोग समझते हैं, कि हमें तो दिमागी काम करना पड़ता है। इसलिये दिमागी ताकत बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिये। हमें शारीरिक मेहनत से क्या प्रयोजन? उन्हें याद रखना चाहिये कि मानसिक श्रम में भी स्नायविक शक्ति व्यय होती है। यह शक्ति शारीरिक स्वास्थ्य एवं स्नायु विद्युत से ही आती है, उस शक्ति का मूलसोत आक्सीजन है, जो वायु में ही प्राप्त होता है।

कितने अज्ञान की बात है, कि लोग इस प्राण शक्ति से डरते हैं, और खुली हवा में रहने की अपेक्षा बन्द मकानों में काम करना पसन्द करते हैं। जाड़े के दिनों में आप किसी मोहल्ले में चले जाइये, सारी खिड़कियाँ बन्द मिलेंगी, लोग अपने कमरे बन्द करके उनके अन्दर मुँह ढ़ककर सो रहे होंगे। यह प्रथा स्वास्थ्य के लिये बहुत ही हानिकर है। तेज या ठण्डी हवा में निकलने से लोग भयभीत होते हैं और समझते हैं कि इससे जुकाम आदि हो जाएगा। यह भ्रम मिथ्या है, तेज, या ठंडी हवा से कोई बीमारी नहीं होती। यदि जुकाम होता भी है, तो वह तुम्हारे लिये अच्छा है। अगर शरीर में दोष भरे पड़े हैं, तो जुकाम होकर बलगम द्वारा ही उनका निकल जाना भला है, उन्हें रोक कर या दबाकर रखा जाय तो आगे चल कर वे किसी भयंकर बीमारी के रूप में प्रकट हो सकते हैं। बन्द कमरे में बार-बार साँस लेने से शरीर का कार्बोनिक ऐसिड गैस नामक विष वायु में मिल जाता है और उसी विषैली वायु को बार-बार ग्रहण करने पर वह उत्तरोत्तर और भरी अधिक विषैली होती जाती है, बहुत देर तक उस विषैली गैस में रहने से शरीर की बड़ी क्षति होती है। इस बात की परीक्षा आप स्वयं कर सकते हैं, बन्द कमरे में मुँह ढक कर सोने पर सुबह उठते हुए शरीर भारी सा मालूम पड़ेगा। तन्द्रा और आलस्य छाये होंगे, खाट पर से उठना अच्छा न लगेगा और दिन भर सुस्ती बनी रहेगी। खुली हवा में सोने पर यह बातें नहीं हो सकतीं। रात भर जिसने ऑक्सीजन (प्राणप्रद वायु) प्राप्त की है, वह प्रातःकाल प्रसन्न वदन उठेगा और दिन भर फुर्ती का अनुभव करेगा।

फेडन महोदय कहते हैं कि लोग शुद्ध तरीके से साँस लेना भी नहीं जानते और स्त्रियाँ तो उस विषय में बहुत ही अज्ञ होती हैं। छोटे बालक का पेट उघाड़ कर देखिये, वह पेडू तक साँस लेता हुआ मिलेगा। जब वह साँस छोड़ेगा तो उसका पेडू सुकड़ेगा। इससे जाना जाता है कि श्वाँस लेने का प्राकृतिक नियम क्या है। अधिक कपड़ों से लदा रहने, आराम से पड़े रहने, एवं झुककर बैठने के कारण अधूरी साँस लेने की आदत पड़ जाती है। पूरी साँस लेने पर पेट फूलता एवं सिकुड़ता है जिससे (Diaphragm) नामक पेट का वह अंग जो पेट और आंतों को फेफड़े से अलग करता है, नीचे जाता है और फेफड़ों के निचले भाग का दबाव हलका करके उसमें पूरी हवा भर जाने देता है। इस प्रकार फेफड़ों की पूरी शुद्धि होती रहती है। इसके अतिरिक्त जब क्पंचीतंहउ नीचे खिसकता है तो, आमाशय, जिगर एवं आंतों की क्रिया तेज हो जाती है। क्योंकि उन पर इसका एक हलका धक्का सा लगता है। जो लोग अधूरी साँस लेते हैं, वे पूरी साँस लेकर देखें। उनकी पाचन शक्ति पहले की अपेक्षा बहुत तीव्र हो जायगी और फेफड़े मजबूत होने लगेंगे। क्योंकि पूरी साँस लेने से ही अधिक मात्रा में ऑक्सीजन वायु प्राप्त की जा सकती है। ऋषियों ने प्राणायाम की श्वास प्रश्वास क्रियाओं पर इसीलिये अधिक जोर दिया है, कि इनके द्वारा मनुष्य की स्नायविक शक्ति बढ़े और यह कार्यवाहिनी विद्युत को पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करके स्वास्थ्य की उन्नति करता रहे। पर्याप्त मात्रा में ओषजन को शरीर में पहुँचाना निरोग रहने का सर्वोत्तम साधन कहा जा सकता है।

खुली हवा में गहरी साँस लेने की आदत डालिये। फेफड़ों में पूरी हवा भरिये, परन्तु याद रखिये पहले पेट को फुलाना चाहिए। कुछ दिनों के प्रयत्न से यह अभ्यास आदत के रूप में बदल जाता है और तब स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक उन्नति हो जाती है। पूरी साँस लेने की आदत डालने के लिये यह आवश्यक है कि अपने मन में यह बात अच्छी तरह जमा लो कि गहरी साँस लेना मनोरंजन का एक साधन है। इस भार रूप में समझोगे और ज्यों त्यों करके कुछ देर बेगार भुगतोगे तो कुछ लाभ न होगा। मन उसी काम में लगता है, जिसे मनोरंजन समझ कर किया जाता है। जब कभी खुली हवा में चलने का अवसर मिले तो खेल की तरह गहरी साँस खींचो और साथ ही गिनते जाओ कि जितने समय में एक साँस ली उतने समय में तुम कितने कदम चल लिए, उतने ही कदम चलने में साँस छोड़ो। फेफड़ों को पूरा भरना और पूरा खाली करना एवं पेडू का उठाना सिकोड़ना यह स्वाभाविक श्वास क्रिया की कसौटी है। इस सरल प्राणायाम से रक्त की सजीवता बहुत बढ़ जाती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118