रंगों का मस्तिष्क पर प्रभाव।
डॉक्टर पोलोडस्की ने अपनी पुस्तक ‘दी डॉक्टर प्रेस क्राइब्स कलर’ नामक पुस्तक में एक मजेदार बात कही है। उनका मत है, कि श्वेत वस्त्र धारण करने वाली लड़कियों को, काले वस्त्र धारण करने वाली लड़कियों की अपेक्षा आसानी से वर मिल जाते हैं। डा पोलोडस्की ही नहीं, दूसरे बहुत से विशेषज्ञों का भी यही कहना है, कि रंग का शरीर और मस्तिष्क दोनों ही पर प्रभाव पड़ता है। डाक्टरों ने पता लगाया है, कि नीले कमरों में रखे जाने वाले रोगी चमकदार और खूब सजे हुए कमरों की अपेक्षा अधिक सरलता पूर्वक सोते हैं और उन्हें आराम भी जल्दी होता है। किन्तु यह बात रामजदा रोगियों के सम्बन्ध में नहीं है। उनके आसपास उज्ज्वल और मनोमुग्धकारी वस्तुएं रहनी चाहियें। इस बात की परीक्षा लन्दन के एक विशेषज्ञ ने हाल ही में की थी। उसने बम से आहत सैनिकों को एक उज्ज्वल और रोशनी दार कमरे में रखा, जिसके फलस्वरूप वे शीघ्र अच्छे हो गए।
काले रंग से उदासी फैलती है। एक बार विलायत के ‘ब्लेक फ्रैअर्स’ नामक पुल को काले रंग से रंगवाया गया। फल यह हुआ कि बहुत से आदमियों ने उस पर से कूद-कूद कर आत्म-हत्याएं कीं! इस पर पुल को हरा रँगवाया गया, तब जाकर आत्म-हत्याओं की संख्या घटी।
प्रेत कैसे रहते हैं?
इंग्लैंड में लेडी फ्लाँरे वैरेस नाम की एक प्रसिद्ध लेडी डॉक्टर हैं, जो पिछले 12 वर्षों से अपने मृत पति से सन्देश प्राप्त करती हैं। उनके पति सर डबल्यू आफ बेरेट, डबलिन के रायल कालेज में प्रोफेसर थे। उनकी मृत्यु सन् 1925 में हुई थी। उन्हें अंतर्जग की बातों पर विश्वास था और अपने जीवन काल में उन्होंने इस विषय में खोज करने के लिये एक संस्था भी स्थापित की थी । लेडी वैरेट ने अपने पति की आत्मा से एक बार उनके लोक के खान-पान और रहन-सहन के विषय में कुछ पूछा था, उसके उत्तर में सर विलियम वैरेट ने बतलाया- मैं कुछ खाता या पीता नहीं हूँ। मेरे शरीर के चर्म छिद्रों से पोषक तत्व अपने आप पहुँचते रहते हैं। रहने का घर करीब-करीब बिलकुल वैसा ही है, जैसा कि पृथ्वी पर था। मैं कपड़े भी पहनता हूँ। हम लोग कपड़े अपनी इच्छा मात्र से उत्पन्न कर लेते हैं। मैं सूट पहनता हूँ। क्योंकि मुझे उसमें आराम मिलता है। लेकिन अगर मैं चाहूँ तो दूसरा कोई भी वस्त्र पहन सकता हूँ। हर आदमी अपने-अपने पेशे का काम करते हैं, ऐसा करने में वह कुछ समय तक खुश रहता है। “
लेडी वैरेट का कहना है कि कभी मेरे पति अपने सन्देशों द्वारा मेरे डाक्टरी के काम में भी मदद पहुंचाते हैं। एक बार उन्होंने मेरे स्वास्थ्य सुधार के लिये क्या भोजन उपयुक्त होगा, यह बताया था।
पूर्व जन्म की स्मृति।
कन्नौल के एक संवाददाता लिखते हैं, कि मौजा भाटन की सरैया तहसील कन्नौज में ता0 26 अप्रैल सन 1936 को पं0 छक्कूलाल दरोगा अपनी जमींदारी में बन्दूक से मारे गये थे और जला दिये गये थे। अब सरैया के पास ही मौजा रामपुर में उनका पुनर्जन्म हुआ है। वहाँ के पं.उजागर लाल का 4 वर्षीय बालक भगवानदीन कहता है, कि मेरा बाप छक्कूलाल दरोगा है और मेरा मकान भाटन सरैया में है। बालक को उस गाँव में ले जा जाकर छोड़ा गया तो उसने अपना मकान तथा सभी बच्चे पहचान लिये तथा बहुत सी बातें बतलाई । उसने कहा कि मैं गढ़िया में सो रहा था कि किसी ने मुझे बन्दूक से मार डाला और एक काँता मेरे मस्तक पर मारा तथा मुझे जला दिया गया।’ बालक के शरीर पर गोली का और मस्तक पर काँते का निशान भी है।