क्या यह सच है?

April 1941

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अखंड ज्योति के पाठकों के कुछ पत्र नीचे दिये जाते हैं। अब तक हमारे पास इस प्रकार के कितने ही पत्र आ चुके हैं । संकोचवश अभी तक हम इन्हें दबाये हुए थे। पर जब बहुत पत्र आये हैं तो उन्हें पाठकों के सामने रख रहे हैं । हर एक पाठक से अनुरोध है कि वह इस सम्बन्ध में अपने यहाँ भी जाँच करे, जो अनुभव हो, उसे हमारे पास लिख भेजें। उन्हें ‘ज्योति’ में छापेंगे जिससे अन्य पाठक भी लाभ उठा सकें।

-संपादक

(1)

‘.................मुकदमे बाजी से हम तबाह हो गये हैं पिछले सात वर्षों से हमेशा दो चार मुकदमे फौजदारी आदि के लगे रहते थे, पर जब से अखंड ज्योति हमारे घर में आई है, परिस्थिति बिलकुल बदल गई है । मुकदमों से अब बिलकुल मुक्ति मिल गई है।

- केशव नरायन भटनागर , भिमसार

(2)

‘..............मेरी उम्र इस प्रकार 32 साल है । पहला विवाह 12 वर्ष की उम्र में हुआ था, जब बीस वर्ष उम्र तक कोई सन्तान न हुँई तो पिता ने मेरा दूसरा विवाह कर दिया। किन्तु दोनों स्त्रियों से अब तक कोई सन्तान न हुई थी। सारा घर दुखी था। अखण्ड ज्योति जब से मँगाई, तब से घर में बहुत खुशी है। दोनों स्त्रियों का इस समय गर्भ है।

-राजेन्द्रपाल सिंह कछवाहा, पटियाला।

(3)

‘..............हम दोनों स्त्री , पुरुषों में कभी नहीं पटी। सदा कलह रहता था। जैसे-तैसे तीन संतानें तो हो गईं, पर आप सच समझिये हम विवाहित होते हुए भी रडुआ और राँड रहे हैं। न जाने ईश्वर की क्या कृपा हुई है कि इस साल घर वाली का स्वभाव बदल गया है। अब मैं अपने को विवाहित अनुभव करने लगा हूँ। अखंड ज्योति का मँगाना हमारे यहाँ शुभ हुआ ।

-गोमती नन्दन डाकोर

(4)

‘..............मैं ऐसी परिस्थितियों में रहा हूँ। जिन्हें वर्णन करके आपका भी दिल दुखाना नहीं चाहता। बस मृत्यु को छोड़ कर और सब कष्ट मेरे ऊपर समझें । तीन वर्ष तीन युग की बराबर काटे हैं पर अब धीरे-धीरे सभी स्थितियाँ सुधरी जाती है। ऐसा मालूम पड़ता है कि कोई फंसी पर से उतार रहा है। क्या यह आपकी सहायता है?

-अयोध्याप्रसाद माथुर, सूरत

(5)

‘..............हमारे यहाँ मठ पर दश वर्षों से सत्संग और नियमपूर्वक आध्यात्मिक साधन होता है। होली पर अघोरी कुवलियानन्द जी आये थे उन्होंने अखंड ज्योति को अखरी तक पढ़ा था और कहा था कि इस कागज में ऐसे भाव भरे हुए हैं कि जहाँ यह रहेगा , मौज करेगा । सो आप पन्द्रह अखबार भेज दीजिए, हम लोग अपने अपने घरों में रक्खे रहेंगे ।

-शुभचरण गंगली, गोपालपुर

(6)

‘..............ऐसे लेख मैंने पढ़े हैं। इस प्रकार के विचारों वाली हिन्दी और अँग्रेजी की सैकड़ों पुस्तकें पढ़ चुका हूँ, परन्तु अखंड ज्योति में कुछ विशेष आकर्षण है। पढ़ते समय ऐसा मालूम पड़ता है कि एक-एक शब्द पेट में इठता हुआ उतर रहा है। कि एक अवश्य ही आपकी आन्तरिक प्रेरणाएं हमारे ऊपर सीधा आघात करती हैं।

-ए.एम. डागा, बलरामपुर।

(7)

सोच रहा था पास में कुछ नहीं है। अखंड ज्योति का चन्दा चुक गया। अब कहाँ से भेजूँ, अकस्मात एक ऐसे मनुष्य ने लाकर 2) रु. दिये जिससे मिलने की कोई उम्मीद न थी। चार वर्ष पहले वह उधार ले गया था। माँगने पर लड़ता था, पर बिना माँगे यह रुपया आ जाने पर मुझे बड़ा अचंभा हुआ । शायद अखंड ज्योति के भाग्य ने जोर मारा है। इस साल का चन्दा भेज रहा हूँ।

-गनपतिलाल बर्मा, मुचकंदगढ़


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