तुच्छ स्वार्थों को छोड़िये

April 1941

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(महात्मा जेम्स ऐलन)

जो व्यक्ति अपने स्वार्थ का परित्याग कर देता है और मिथ्या अभिमान को उठाकर एक तरफ पटक देता है, उसकी सारी पेचीदगियाँ हल हो जाती हैं। वह बहुत ही सादा और विनम्र बन जाता है। यहाँ तक कि कई बार लोग उसे बेवकूफ तक समझने लगते हैं। इस अवस्था में उस मनुष्य का व्यवहार संसार की परिवर्तनशील घटनाओं पर अवलम्बित नहीं रहता, वरन् वह अपने सिद्धान्तों पर दृढ़ रहता है और वही काम करता है जिसे करने के लिए उसकी आत्मा गवाही देती है, चाहे इसके फलस्वरूप उसे कितने ही साँसारिक कष्ट क्यों न उठाने पड़े। जीवन की यही एक ऐसी पवित्र स्थिति है, जिसमें मनुष्य अनुभव करता है कि वह वस्तुतः अमर है।

निःस्वार्थ भावना से जीवन व्यतीत करने के लिए संसार में निरुत्साह, पश्चाताप और दुख की कोई बात नहीं है। जरा सी बात के आवेश में आकर जब लोग मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं, वह किसी से नहीं लड़ता, बल्कि अपने विरोधियों पर दया और प्रेम की वर्षा करता रहता है। सद्भावना से दिव्य दृष्टि मिलती है। जिसके हृदय में समस्त प्राणियों के प्रति सद्भावना भरी हुई है यथार्थ में वही दिव्य ज्ञान का अधिकारी है। मनुष्यों में देवता वह पुरुष है जो पवित्र है, निःस्वार्थ है, प्रेमी है। अपने तुच्छ शारीरिक स्वार्थों का परित्याग करने के उपरान्त जो सन्तोष प्राप्त होता है, वह संसार को अपने अधीन कर लेने के सुख से भी हजारों गुना अधिक है।

इसलिए आप स्वार्थ को त्यागने का अभ्यास आरम्भ कीजिए। ज्ञान के द्वारा अपनी पाशविक वृत्तियों को काबू में लाने का प्रयत्न कीजिए। सुख और भोग विलासों के गुलाम बनने से इनकार कर दीजिए। नम्रता, भलमनसाहत, क्षमा, दया और प्रेम को अपने अन्दर धारण करने से हृदय के अन्दर शाश्वत शान्ति का आविर्भाव होता है। प्रेम के महान नियम में अपने को केन्द्रस्थ करना, संतोष,शीतलता, विश्राम और ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग पर पदार्पण करना है ।


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