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April 1941

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संसार में अप्रिय घटनायें होती हैं, तुम विश्व की समस्त घटनाओं को अपने अनुकूल नहीं बना सकते। इससे दुख से छूट कर सुख प्राप्त करने का यह उपाय है कि घटनाओं को ईश्वर की इच्छा समझ कर शान्त रहो और धर्म समझकर अपने कर्तव्य का पालन करते जाओ।

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न तो निन्दा पर विचार करो और न प्रशंसा की चाह करो। दूसरे तुम्हारे लिये क्या कहते हैं, इसके लिये चिंतित होने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है। जिस कार्य को तुम्हारी अन्तरात्मा ठीक समझती है, उसी पर सच्चे हृदय से आरुढ़ रहो। विरोधी लोग एक दिन समर्थक बन जायेंगे।

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मूर्खों की मित्रता में खतरा है। आरम्भ में वह हँसावे तो भी अन्त समय रुलाये बिना न रहेगी।


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