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April 1941

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विपत्ति के समय धैर्य धारण करना, उसके निवारण का आधा उपाय कर लेने के बराबर है।

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घृणा करना असुरों का काम है, क्षमा मनुष्यता का लक्षण है और प्रेम देवताओं का स्वभाव है।

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पानी से शरीर, धर्म से आत्मा, ज्ञान से बुद्धि और सत्य से मन पवित्र होता है।

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पानी की बूँद गरम लोहे पर पड़कर नष्ट हो जाती है, वही बूँद कमल के पत्र पर मोती की तरह चमकती है और स्वाति के संयोग से सीप में प्रवेश करके सच्चा मोती बन जाती है। यह सब संगति का ही गुण है।

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जिसमें सद्गुण है , वही बुद्धिमान है, वही सज्जन है । जो सज्जन है,वही सदा सुखी है।

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जो मनुष्य सद्गुणों से प्रेम करता है उसे अभिन्न मित्रों, हितकारी उपदेशकों और विनोदी साथियों की कमी नहीं रहती ।


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