यान संकट और सुरक्षा-अनुष्ठान

July 1979

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अन्तरिक्षीय हलचलों में प्रकृति प्रेरणा अनेक ज्ञात एवं अविज्ञात घटनाओं के लिए उत्तरदायी होती है पर उन पर सर्वोपरि प्रभाव मानवी स्तर का ही होता है। मनुष्य समुदाय जब अचिंत्य चिन्तन और अभद्र आचरण पर उतारू होता है तो उसकी प्रतिक्रिया व्यक्तिगत समस्याओं, समाजगत कठिनाइयों के रूप में ही नहीं प्रकृति संतुलन बिगड़ने के रूप में भी सामने आती है। सतयुग की श्रेष्ठ परिस्थितियों में उस समय की सामूहिक मनःस्थिति की उत्कृष्टता ही प्रधान कारण थी। इन दिनों जन समुदाय की अभिरुचि, विचारणा एवं कार्य पद्धति निकृष्टता की दिशा में बढ़ रही है फलतः समस्याओं, विपत्तियों के अतिरिक्त दैवी प्रकोपों की विभीषिका का अनुपात निरन्तर बढ़ रहा है। अति वृष्टि, अनावृष्टि और समुद्री तूफानों के कारण हुई दुर्घटनाओं के समाचार अक्सर सुनने को मिलते रहते है।

यदि मनुष्य अपनी चाल नहीं बदलता तो दैवी प्रकोप और बढ़ेंगे। फरवरी 79 की अखंड ज्योति में पृष्ठ 49 पर एक बुरी खबर शीर्षक से संसार के मूर्धन्य ब्रह्माण्ड जीव विज्ञानी एवं भविष्य वक्ता श्री क्रूम हेलर का वह कथन छपा है जिसमें उन्होंने अगले दिनों मनुष्य जाति के सामने आने वाले संकटों का संकेत किया है। यह सकारण है। मनुष्य ने जो रवैया अपनाया है उसकी प्रतिक्रिया व्यक्तिगत संकट, समाज विग्रह के रूप में ही नहीं दैवी संकटों के रूप में भी प्रस्तुत होती है तो उसे विधि व्यवस्था के अनुरूप ही कहा जायेगा।

इन दिनों “स्काई लैब” यान का मलवा धरती पर गिरने और भीषण विनाश का संकट आ खड़ा होने की चर्चा जन-जन के मुख पर है। पिछले दिनों अन्तरिक्ष में संव्याप्त शक्तियों और उनकी गति विधियों का पता लगाने के लिये अमेरिका व रूस आदि समृद्ध देशों द्वारा लगभग 1000 उपग्रह भेजे और पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किये गये “स्काई लैब” अमेरिका द्वारा संचालित उन्हीं में से एक है। 85 टन भारी यह यान 1973 छोड़ा गया था। यह पृथ्वी के चारों ओर विषुवत रेखा के 50 अंश उत्तर दक्षिण चक्कर काटता रहा। आशा की गई थी कि वह सन् 83 तक अपना काम करता रहेगा। पर वैसा हो नहीं सका। अन्तरिक्षीय शक्तियाँ उसके मार्ग में आड़े आई। इसमें एक कारण सूर्य धब्बों की गति विधियों में असाधारण वृद्धि हो जाना भी बताया जाता है। स्मरण रहे सूर्य धब्बों का 11 वर्षीय गति चक्र चलता है और लाखों मील क्षेत्र अपनी भीषण अग्नि ज्वाला में लपेट लेता है। सौर विकिरण की इस लपेट में स्काई लैब भी आ गया और अपनी क्षमता गँवा बैठा, यान की यंत्र-प्रणाली में गड़बड़ भी कारण हो सकती है, बात जो भी हो संकट अति गहरा हो गया है करोड़ों व्यक्तियों के विनाश की विभीषिका उठ खड़ी हुई है।

प्रारम्भ में यह स्काईलैब 276 मील की ऊँचाई पर कक्षा में स्थापित किया गया था किन्तु यान्त्रिक गड़बड़ी और अपना भार न सम्भाल पाने के कारण वह गिरते हुये अब 180 मील से भी कम ऊँचाई पर निष्प्राण प्रेत की तरह परिभ्रमण कर रहा और अपनी अन्त्येष्टि के दिन गिन रहा है। उसके कुछ टुकड़े तो 3 अप्रैल 1975 शेष बचे भाग का गिरना निश्चित है तब घोषणा की गई कि उसका मलबा 6 जुलाई से 28 जुलाई के बीच कभी भी पृथ्वी पर गिर सकता है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वह उन दिनों धरातल से कराने के लिये तेजी से टकराने के लिये दौड़ेगी और वायु मंडल की रगड़ से असंख्य छोटे बड़े टुकड़ों में बँट जायेगी। इनमें से कुछ तो मार्ग में ही जल जायेंगे। अनुमान है कि 400-500 भारी धातु खंड वायुमंडल को पार करके धरती तक आ पहुँचेंगे और 4000 मील लम्बे तथा 100 मील चौड़े भू-क्षेत्र को प्रभावित करेंगे। यह टुकड़े भयानक तेजी से भीषण तापमान सहित पृथ्वी पर आवेंगे। उनके वेग से उत्पन्न ऊर्जा पृथ्वी-वासियों के लिये हर दृष्टि से घातक होगी। जिसे क्षेत्र में यह गिरेंगे वहाँ जन-धन की क्षति का अनुमान लगाना कठिन है पर वह होगी रोमाँचकारी। तापमान विकिरण बढ़ने के कारण सारे वातावरण का संतुलन बिगड़ जायेगा, परोक्ष रूप से समूचे मानवीय अस्तित्व को संकट ग्रस्त होना पड़ेगा।

यान को गिने से रोकने के सभी वैज्ञानिक प्रयास असफल रहे अतएव अब उसका विस्फोट सुनिश्चित है यान की परिभ्रमण कक्षा अधिकाँश समुद्र के ऊपर से गुजरती है तो भी वह भू-खण्ड भी कम नहीं जहाँ उसका मलवा गिरेगा। ऐसे क्षेत्रों में लाओस, मनीला, पनामा, अटलांटिक देश तथा नाइजीरिया आते हैं। भारत का बड़ा क्षेत्र जिसमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, आन्ध्र तथा प. बंगाल प्रमुख हैं उससे प्रभावित होंगे। होल्कर साइन्स कालेज के प्रोफेसर डा. श्री वास्तव ने खतरे के क्षेत्रों में बम्बई, पूना, नासिक, कोल्हापुर, शोलापुर, औरंगाबाद, नागपुर, भुवनेश्वर, भवानी पाटन, फूलबनी, कटक, कलकत्ता, खड़गपुर, भिलाई, रायपुर, सारंगढ़, जगदलपुर, सूरत तथा निजामाबाद को प्रभावी क्षेत्र घोषित किया है।

तेज चमक वाले इस मलबे को बिना काला चश्मा पहने खुली आँखों से न देखने की चेतावनी दी गई है। इसमें अन्धा होने का खतरा है। आवासीय क्षेत्रों से ज्वलन शील पदार्थ दूर रखने को कहा जा रहा है उसके विषैले धुयें ने भी बचना अनिवार्य होगा। संभावित संकट की सूचना उन क्षेत्रों में भी अधिकाधिक पहुँचाई जानी चाहिये जहाँ संचार और यातायात के साधनों का अभाव है। ग्रामीण जनों को आतंकित तो न होने दिया जाय पर सतर्कता बरतने को हर एक से कहा जाये?

इस संकट को टालने के लिये वैज्ञानिक अपने ढंग से प्रयत्न कर हार चुके। उसे ऊँचा उठाने ‘अन्तरिक्ष में हो विस्फोट कर नष्ट कर देने’ समुद्र में धकेल देने जैसे उपाय अभी भी खोजे जा रहे हैं पर यह हाथ-पाँव फूल जाने पर किये गये प्रयत्नों जैसा लगता है। खतरा तो स्पष्ट है पर पूर्ण निश्चित समय की सही जानकारी नहीं है पहले यह विस्फोट जून में संभावित था, अब 6 जुलाई से 28 के मध्य ही हो सकता है या आगे और खिसक जाये?

संकट प्रत्यक्ष हो या परोक्ष निवारण के उपाय तो किये हो जाने चाहिये प्रत्यक्ष उपाय उपचारों के समतुल्य की अध्यात्म क्षेत्रों के प्रयास पुरुषार्थ भी है वैयक्तिक संकटों के निवारण में निजी तपश्चर्या और सामूहिक विपत्तियों को निरस्त करने के लिये सामूहिक साधना का महत्व है। बँगला देश के उपद्रवों, आपात्काल स्थिति के निवारण और रजत जयंती वर्ष के महापुरश्चरण इसी श्रेणी में आते हैं जो अप्रत्याशित रूप से सफल रहे। स्काई लैब का संकट सामयिक स्थानीय और छोटा मालूम पड़ता है पर गम्भीरतापूर्वक विचारने पर इसे उस श्रृंखला का सूत्र पात समझा जा सकता है जिसकी ओर भविष्य वक्ता क्रूम हेलर ने संकेत किया था। घटना बड़ी भी है दूरगामी भी। इसलिये उपाय उपचारों की दृष्टि ले अध्यात्म वादियों को भी अपने कर्तव्य पालन करने सुरक्षात्मक प्रयास करने में पीछे नहीं रहना चाहिये।

गायत्री परिवार के प्रत्येक परिजन को 1 जुलाई से 31 जुलाई तक चलने वाले “सुरक्षा अनुष्ठान में उसी उत्साह के साथ सम्मिलित होना चाहिये जैसा कि गत वर्ष महा पुरश्चरण के लिये अपनाया गया था। ब्रह्मवर्चस शान्ति कुँज में यह साधना 1 जुलाई से ही आरम्भ की जा रही है इन दिनों मथुरा प्रेस हड़ताल चल रही है अतएव पत्रिकाओं द्वारा समय पर सूचना भेजनी कठिन जान पड़ी अतएव इस अनुष्ठान की सूचना आकस्मिक रूप से दी जा रही है। जहाँ जहाँ यह संदेश पहुँचे उसके बाद यथा संभव जल्दी ही यह, सामूहिक साधना प्रारम्भ कर दी जाये। आशा की गई है कि पहली जुलाई से न सही 6 जुलाई से अधिकांश परिजन इस साधना की सामूहिक व्यवस्था बना लेंगे। इसके बाद बन सके तो भी हर्ज नहीं। पूरा महीना न बन पड़े तो कम से भी कम चल सकता है पर साधना में सम्मिलित सभी साधकों और शाखाओं को होना चाहिये। साधना विधि इस प्रकार है-

(1) सुरक्षा अनुष्ठान के लिये कोई शान्त, स्वच्छ स्थान चयन किया जाये सभी साधक नौ बजे से पौने दस बजे तक सामूहिक साधना में सम्मिलित हों।

(2) चौबीस बार सामूहिक गायत्री जप एक स्वर से एक साथ किया जावे-आगे पीछे ऊँचे नीचे स्वर से न बोला जाये। इसका अभ्यास पहले करलें ताकि भूल करने वालों को पहले से ही सुधार लिया जा सके।

(3)गायत्री गान के बाद सभी लोग ध्यान मुद्रा में बैठें। शांत चित्त स्थिर-शरीर, कमर सीधी, हाथ गोद में-आँखें बंद इन पाँच प्रक्रियाओं का समन्वय कही ध्यान मुद्रा है।

(4)ध्यान करें गायत्री परिवार के लाखों सदस्यों की सामूहिक संकल्प शक्ति अन्तरिक्ष में सुरक्षा-ढाल की तरह प्रखर परिपक्व हो रही है। उस ढाल के नीचे बैठी मनुष्य जाति अधिकाधिक सुरक्षा प्राप्त कर रही है।

(5)ध्यान किया जाय कि इस सामूहिक संकल्प शक्ति का प्रहार अन्तरिक्ष में उतरते संकट को निरस्त करने के लिये हो रहा है। विपत्ति को ऊपर धकेला और अन्यत्र खदेड़ा जा रहा है। यह प्रहार और प्रयोग पूरी तरह सफल हो रहा है। विपत्ति का प्रभाव न्यूनतम की शेष रह रहा है।

(6)यह ध्यान ठीक नौ बजे प्रारम्भ किया जाय, पन्द्रह मिनट सामूहिक जप के लिये और तीस मिनट ध्यान के लिये रखे जायें। ठीक नौ बजकर पैंतालीस मिनट पर प्रयोग को समाप्त कर दिया जाये। नियत समय पर ..... अ सकने वाले साधकों को भी सम्मिलित तो कर लिया जाये पर उन्हें दूसरी पंक्ति में बिठाया जाय। सामूहिक संकल्प बल के उपार्जन में एक जैसी विचारणा होना और नियत समय का पालन आवश्यक है।

(7) इस अनुष्ठान की पूर्णाहुति सर्वत्र 31 जुलाई को होगी। जो साधक इस अनुष्ठान में भाग लेते रहे हों वे ही यज्ञ में सम्मिलित हो। पूर्णाहुति की एक आहुति अन्य लोग भी दे सकते हैं। अनुष्ठान सम्पन्न होने के समाचार पूर्णाहुति के तुरन्त बाद भेजे जाँय?

विलम्ब के कारण रहने वाली कमी की पूर्ति का एक ही उपाय है कि जिन्हें यह संदेश मिले वे अपने समीप वर्ती शाखाओं तक साधक समुदाय तक स्वयं सूचना पहुँचा दें। जहाँ यह संदेश पहुँचे रात्रि के समय पौन घंटे के उपरोक्त सुरक्षा अनुष्ठान को तुरन्त आरम्भ करने का प्रयत्न किया जाये।


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