वातावरण परिशोधन (kavita)

July 1979

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कर सकेगी वृद्धि इस वातावरण की। धर्म से प्रेरित व्यवस्था आचरण की। हट गया है आज मानव धर्म-पथ से। कृष्ण का सम्बन्ध टूटा कर्म-रथ से॥

अब निरकुँश और दुर्योधन हुआ है। नित्य घर-घर में यहाँ होता जुआ है॥

बढ़ रही सम्भावनाएँ नित्य रण की। कर सकेगी शुद्धि इस वातावरण की। धर्म से प्रेरित व्यवस्था आचरण की॥

है जरूरत-आचरण में धर्म आए। और अर्जुन कृष्ण को जाकर मनाए॥

द्रौपदी ताना न मारे परिजनों को। प्रेम से जीते परस्पर सब मनों को॥

बात हो संवेदना के संचरण की। कर सकेगी शुद्धि इस वातावरण की। धर्म से प्रेरित व्यवस्था आचरण की॥

प्रभु समर्पित कर्म हों सारे हमारे। स्वार्थ के आगे कभी कोई न हारे॥

दूसरे का हित हमेशा ध्यान में हो। गहन आस्था मनुज की, भगवान में हो॥

ललक जागे सद्गुणों के शुभवरण की। कर सकेगी शुद्धि इस वातावरण की। धर्म से प्रेरित व्यवस्था आचरण की॥

- माया वर्मा

*समाप्त*


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