किसे कौन वस्तुएं कितनी मात्रा में मिलीं, इस आधार पर किसी के सौभाग्य की नाप तोल नहीं की जानी चाहिए। सौभाग्यशाली वह है जिसने वस्तु का महत्व समझा और उसके सदुपयोग का रास्ता बनाया।
कितनों के ही पास धन दौलत होती है, पर वे उसे विलासिता-अह’कार की पूर्ति और स्त्री-बच्चों की शौक मौज के लिए खर्च करते है, कई तो उससे व्यसन व्यभिचार और शोषण- उत्पादन के कुकृत्य करते है, अपना पतन करते है, दूसरों को दुःख देते है, ईर्ष्या भड़काते हैं और बहुतों को उसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। धन मिला, पर उसका उपयोग न आया तो उसका मिलना सौभाग्य का चिन्ह कहाँ हुआ?
अच्छा स्वास्थ्य मिलने की सार्थकता तभी है जब उस शरीर से आत्म-कल्याण और लोक-कल्याण की रीति- नीति अपनाई जाय। ऐसे कर्म किये जाँय जिनसे सत्य परम्पराओं को प्रोत्साहन मिलता हो। अनाचार न करना और न करने देना, स्वयं उन्नति के पथ पर बढ़ना, यही अच्छे स्वास्थ्य का सदुपयोग हैं। यदि ऐसा न किया जा सके, उलटी गतिविधियाँ अपनाई जाँय। शारीरिक बलिष्ठता का उपयोग शोषण, उत्पीड़न, आक्रमण आतंक, अनाचार के लिए किया जाय तो उससे स्वयं भी पछताना पड़ेगा और समाज में शोक संताप बढ़ेगा। दुरुपयोग में प्रयुक्त होने वाले स्वास्थ्य को सौभाग्य कैसे कहा जाय। इससे तो वह रुग्णता, दुर्बलता अच्छी जो उद्धत कर्म करने में असमर्थ तो बनाये रहती है।
बुद्धिमान, विद्वान, चतुर होना सौभाग्य का चिन्ह कैसे माना जा सकता है? यदि विद्या पाकर विनयशीलता और सज्जनता नहीं बढ़ी, अहंकार और स्वार्थ ही बढ़ा तो साँप को दूध मिलने जैसी बात हुई। साँप अधिक अत्याचार करने में समर्थ हुआ और दूध जो रोगी या बच्चे के लिए आवश्यक था, वहाँ न जा सका। दूध और सर्प दोनों का संयोग दुर्भाग्य ही कहा जायगा। विद्या की प्रशंसा और गरिमा तभी है जब वह सज्जनता के साथ शोभायमान हो। दुष्ट की बुद्धिमत्ता तो प्रत्यक्ष अभिशाप है। उससे न जाने कितनों को किस-किस प्रकार दुःखित, पतित और भ्रमित किया जायेगा। दुर्बुद्धि की अपेक्षा मंद बुद्धि होना श्रेयस्कर है। अनाचारी को विद्या और बुद्धि का अनुदान मिलने में प्रसन्न होने को कोई बात नहीं। यह तो शोक संताप का ही प्रसंग है।
सत्ता किसी को मिले, ऊँचा पद मिले सो ठीक है। पर प्रश्न तब भी यही बना रहेगा कि सत्ता किस स्तर के व्यक्तित्व को मिली। श्रेष्ठता और सत्ता का समन्वय हो सके तो ही उसकी सार्थकता है, अन्यथा वह एक विपत्ति ही सिद्ध होगी। रावण, कंस, जरासंध, हिरण्यकश्यप- भस्मासुर, सहस्रबाहु आदि के हाथ में सत्ता आई, दुष्टता और सत्ता का मिलन सर्वत्र हाहाकारी परिस्थितियाँ ही उत्पन्न करता रहा सत्ताधारियों की दुर्गति हुई और असंख्य लोगों को त्रास सहना पड़ा। सत्ता को सराहा तभी जायगा जब वह रामराज्य, धर्मराज्य की सुव्यवस्था बनाने के लिए प्रयुक्त हो।
किसे क्या मिला? किसके पास क्या है? इस आधार पर किसी को सौभाग्यशाली नहीं माना जाना चाहिए महत्ता ‘पात्र’ की नहीं वरन सदुपयोग कर सकने की क्षमता की है। संसार में कितने ही लोग साधनहीन अथवा स्वल्प साधन सम्पन्न हुए किन्तु उनने जो कुछ मिला था, उसका श्रेष्ठतम सदुपयोग करने की बात सोची और वैसी ही रीति-नीति अपनाई यही बुद्धिमता और सौभाग्यशाली होने का चिन्ह है। जो ऐसी सदुपयोग की दूरदर्शिता दिखा सके वे स्वल्प साधन रहते हुए भी सौभाग्यशाली कहलाये - सुखी हुए, सराहे गये। जबकि विपुल वैभववान होते हुए भी उसका मूल्य महत्व और उपयोग न समझने वाले स्वयं दुख पाते और दूसरों को दुख देते हुए इस संसार से विदा हुए।