अब्राहम लिंकन (kahani)

July 1979

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अब्राहम लिंकन के एक मित्र ने समाचार-पत्र की एक कटिंग उनके सामने रखते हुए कहा, ‘देखिये न! लोग किस तरह से आपकी आलोचना करने में लगे हैं और आप चुप्पी ही साधे बैठे हैं क्यों इनका प्रतिवाद आप भी समाचार-पत्र को भिजवा दीजिए।’

अमेरिका के महान् राष्ट्रपति लिंकन का साधारण-सा उत्तर था, ‘‘मेरे प्यारे दोस्त यदि मैं आलोचकों की हर आलोचना को देखूं और उनके उत्तर छपाने का प्रयास करूं तो राष्ट्र के महत्वपूर्ण कार्य करने का भी समय न रहेगा। यह तो आप सब जानते हैं कि अच्छे ढंग से राष्ट्र की सेवा शक्ति भर में करता हूं, यदि मेरे कार्यों के परिणाम देश की जनता के हित में निकलते हैं तो आलोचकों की बातें स्वतः ही निरर्थक सिद्ध हो जायेंगी और यदि लोक-कल्याण की भावनायें नहीं होती, देशवासियों को सुख-सुविधाएं नहीं मिल पातीं, तो मैं क्या देवता भी आकर मेरे कार्यों का पक्ष लें तो भी कोई उस बात को सुनने के लिए तैयार न होगा।’’


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