स्वास्थ्य- नदी का प्रवाह

July 1979

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यज्जाग्रतो दूर मुदैति दैवं, तदु सुप्तस्थ तथैवैति। दूरं गमं ज्योतिषां ज्योतिरंकं, तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥

यजुर्वेद संहिता में इस तरह के अनेक मंत्र हैं, जिनका चौथा पाद है- ‘तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु’ अर्थात् मेरे मन का संकल्प शिव हो, शुभ हो, कल्याणकारी हो। उसमें किसी व्यक्ति के प्रति पाप की भावना न हो।

मन के शुभ विचारों से सब प्रकार के घाव भर जाते हैं। जैसे वर्षा के जल से अकालग्रस्त क्षेत्र नंदन वन की तरह लहराते हैं, वैसे ही मन की शक्ति से एकाग्रता, प्रसन्नता और शांति प्राप्त होती है। अमेरिकी लेखक स्वेट मार्डेन ने कहा है- ‘यदि आप अस्वस्थ विचारों को मन में स्थान देंगे तो शरीर पर उनका बुरा प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। जैसा बिंब होगा वैसा ही प्रतिबिंब होगा।’

स्वास्थ्य नदी के प्रवाह की तरह है। जब तक सब अंग ठीक से काम करते हैं, तब तक शरीर में शक्ति और ताजगी रहती है। नदी के स्रोत की भांति स्वस्थ शरीर का भी स्रोत है, और वह है आपका मन।

चिकित्सा-विशेषज्ञों के अनुसार स्वार्थ-भावना, काम वासना और ईर्ष्या का प्रभाव यकृत तथा प्लीहा पर पड़ता है। घृणा और क्रोध का प्रभाव गुर्दों तथा हृदय पर पड़ता है। योग सूत्र में कहा गया है- ‘‘नाम उभयता बहति, पापायच बहति पुण्याय च बहति।’’ अर्थात् चित्त रूपी नदी दोनों तरफ बहती हैं- पाप की ओर भी और पुण्य की ओर भी।

लोग प्रायः रोगों के विषय में पुस्तकें पढ़कर यह सोचने लगते हैं कि उनमें किन्हीं रोगों के लक्षण मौजूद हैं। वे चिंतातुर हो जाते हैं। मन में किसी रोग के बारे में विश्वास जम जाने से शरीर अस्वस्थ होने लगता है, और उससे फिर चिकित्सा में भी अनावश्यक झंझट और बाधा उपस्थित हो जाती है। संकल्प का अर्थ है अच्छा इरादा। संकल्प महान रक्षक का काम करता है। शुभ संकल्प से व्यक्ति शिखर पर चढ़ सकता है, केवल कोरी कल्पना से नहीं। कुछ वर्ष एक विचित्र समाचार छपा कि एक पादरी बहुत बीमार हो गया। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। वह इतना कमजोर हो गया था कि सिर भी न उठा सकता था। उसने बतलाया कि मैंने भूल से अपने नकली दांत निगल लिए हैं और वे उसके आमाशय को चीरे डार रहे हैं। डॉक्टर ने एक्सरे द्वारा उसके पेट की जांच की और कहा कि आपका पेट ठीक है, आप अपने मन से यह विचार निकाल दें, परंतु इस बात का उस पर कोई असर नहीं हुआ। कुछ दिनों बात पादरी के घर से तार आया कि आपके नकली दांत बिस्तर पर पड़े मिले हैं। बस पादरी का सारा दर्द हवा हो गया। अस्पताल के सभी लोग हंसने लगे।

छूत की बीमारी भी मानसिक दुर्बलता है। अगर व्यक्ति अपने खाने-पीने और सफाई का पूरा ध्यान दे, तो उस पर छूत का कोई असर नहीं हो सकता। यदि छूत की धारणा सत्य हो तो डॉक्टर उसकी पकड़ में क्यों नहीं आते? हमें सदैव रोग का विचार छोड़कर आरोग्य का चिंतन करना चाहिए। घृणा और पाप के विचार त्याग कर प्रेम और स्नेह के विचार पैदा करने चाहिए।

सारे कामों का आरंभ मन से होता है। मन श्रेष्ठ है। सारे कार्य मन की स्थिति पर निर्भर हैं। मनुष्य यदि दुष्ट मन से बोलता या काम करता है, तो दुख उसका वैसा ही पीछा करता है, जैसे गाड़ी में बैल के पीछे-पीछे चाक भागता है। यदि मनुष्य प्रसन्न और शुद्ध अंतःकरण से बोलता या काम करता है, तो सुख मनुष्य के पीछे-पीछे भागने वाली छाया की तरह उसका पीछा नहीं छोड़ता।

ईमानदारी से भी रोग दूर हो जाते हैं। यदि स्वास्थ्य खराब होने का बहाना करके हम अपने दैनिक कर्तव्यों को पूरा नहीं करते तो मन पर उसका उल्टा प्रभाव पड़ता है। मनुष्य आप ही अपना मित्र और आप ही अपना शत्रु। सच्चरित्रता में विश्वास रखने वालों का आधार यही है। वेद-व्यास से लेकर आधुनिक विचारक इमरसन तक सभी महापुरुषों ने नैतिकता पर ही बल दिया है।


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